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रस्म अदायगी तक सीमित न रहे धूम्रपान जागरूकता अपील

-डॉ. रमेश ठाकुर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

धूम्रपान की लतें फैशन में तब्दील होती जा रही हैं। ये समस्या किसी महामारी से कम नहीं है। दूसरी मर्तबा है जब हम कोरोना काल में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मना रहे हैं, वरना प्रत्येक वर्ष धूम्रपान से छुटकारे के बाबत केंद्र सरकार से लेकर राज्यों की सरकारों व सामाजिक संगठनों द्वारा कई जागरूक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसमें सामूहिक रूप से जनमानस को धूम्रपान से होने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराया जाता है। लेकिन कई बार ‘तंबाकू निषेध जागरुकता’ कार्यक्रमों के मंचों पर कुछ हास्यास्पद तस्वीरें भी देखने को मिलती हैं। मंचासीन विशिष्ट अतिथि खुद मुंह में गुटखा चबाते हुए, दूसरों को कैंसर से बचने और धूम्रपान नहीं करने की सलाह देते हैं। धूम्रपान ऐसी लत है जिसकी चपेट में इस वक्त प्रत्येक तीसरा व्यक्ति है। तंबाकू चबाने और सिगरेट पीने को युवा पीढ़ी स्टेटस सिंबल मानने लगी है। धूम्रपान करने वालों की तादात अब पूजापाठ करने वाले श्रद्वालुओं से भी कहीं ज्यादा हो गई है। इस असंख्य आंकड़ों को हम आप बिल्कुल झुठला नहीं सकते।

फिल्मों के स्मोकिंग दृश्यों में स्क्रीन पर ‘धूम्रपान की वैधानिक चेतावनी लिखना’ और सिगरेट के डिब्बों पर ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’-लिख देने भर से काम नहीं चलेगा। धूम्रपान पर विराम लगाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों और सामाजिक स्तर पर ईमानदारी से बहुत कुछ करने की दरकार है। वैसे, धूम्रपान के संबंध में एक बात पानी की तरह साफ है। इस समस्या के मूल रूप से दो पहलू हैं। अव्वल, धूम्रपान से संबंधित पदार्थों का उत्पादन और दूसरा धूम्रपान की वस्तुओं की डिमांड। दोनों की गंभीरता को हमें अपने विवेक से समझना होगा। जब लोग गुटका, खैनी, सिगरेट व तंबाकू आदि की भारी डिमांग करते हैं, तभी धूम्रपान पदार्थों के उत्पादन में उछाल आता है। उत्पादन को बढ़ाने और रोकने की कमान बेशक हुकूमत के पास हो। पर, इस विषय में सरकारें हाथ इसलिए नहीं डालती, क्योंकि ये ऐसा क्षेत्र है जिससे उनका खजाना भरता है। धूम्रपान की चीजों में लगने वाला भारी भरकम टैक्स ही तो सरकारों के राजस्व में बढ़ोतरी करता है। इसके बाद सोचने समझने की शायद हमें जरूरत नहीं है कि ये विषय सरकारों के लिए कितना लाभदायक है और आमजन के लिए कितना नुकसानदायक?

समूचे संसार में आज भी तंबाकू-खैनी से होने वाली आक्समिक मौतों का आंकड़ा दूसरे नंबर पर है। आंकड़े डराने के अलावा सोचने पर भी मजबूर करते हैं। एक रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि अस्सी के दशक तक धूम्रपान की वस्तुओं के सेवन से उतना नुकसान नहीं होता था जितना अब होता है। तो क्या कंपनियां जानबूझकर लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रही हैं। क्या धूम्रपान से संबंधित पदार्थों में ज्यादा केमिकल झोंका जाता है? मौलिक सच्चाई सामने भी है, खैनी चबाने वाला प्रत्येक दसवां व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है। सभी जानते हैं कि मुंह का कैंसर तंबाकू के सेवन से फैलता है। एकबार शुरुआत हो जाए, तो एकाध वर्ष में इंसान निपट भी जाता है। तंबाकू ने घरों के चिराग बुझा दिए, औरतें विधवाएं हो गईं, घर के कमाने वाले की असमय मौत हो गई। तमाम तरह के दुष्परिणामों को जानते हुए भी लोग सारी कमाई तंबाकू चबाने में उड़ा देते हैं।ये ऐसी लत है जो एकबार लग गई, फिर आसानी से नहीं छूटती। धूम्रपान को त्यागना हम आप पर ही निर्भर करता है, इसमें दूसरा कोई भूमिका नहीं निभा सकता। तंबाकू निषेध दिवस के दिन जो जागरूकता कार्यक्रम हम देखते हैं, दरअसल वह सरकारों द्वारा रस्म अदायगी के प्रहसन मात्र होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन जब पूरे विश्व का सालाना धूम्रपान से मौतों का आंकड़ा जारी करता है, तो उसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कुदरती आपदाएं हों, या आक्समिक घटनाएं उनमें होने वाली जनक्षति के बाद दूसरा नंबर धूम्रपान का होता है। एक अरब के आसपास मरने का आंकड़ा जारी होता है। कोरोना काल में इसमें और वृद्धि हुई है। लॉकडाउन के दौरान धूम्रपान की सीमाओं को लोगों ने पार कर दिया। हालांकि सरकार और समाज के संयुक्त प्रयासों ने इस समस्या को कम करने की भरसक कोशिशें की, पर स्थिति सुधरने के जगह और बिगड़ गई। भारत की सरकार हो, चाहे दूसरे मुल्क की हूकूमतें, जब उनका आम बजट संसद में पेश होता है, तो धूम्रपान जैसे निषेध पदार्थों की कीमतों में ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाया जाता है जिससे कीमतों में उछाल हो और ग्राहक खरीदने से कतराए। हुकूमतों का मकसद मात्र इतना होता है, धूम्रपान पदार्थों के महंगे होने से शायद तंबाकू, गुटखा व खैनी चबाने वाले कम खरीदें, लेकिन वैसा होता नहीं। इसके उलट निषेध वस्तुओं में और उछाल आ जाता है।

आज 31 मई है महीने का आखिरी दिन और पूरा संसार विश्व तंबाकू निषेध दिवस घर बैठे मना रहा। इस दिवस को मनाने का मकसद धूम्रपान के विभिन्न तरीकों जैसे, सिगरेट पीना, खैनी चबाना, गुटखा खाना व तंबाकू सेवन के व्यापक प्रसार और नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर लोगों को ध्यान आकर्षित कराना होता है। वैसे, एक जिम्मेदार इंसान होने के नाते हमें इसकी शुरुआत अपने घरों से ही करनी चाहिए। अगर घर का कोई सदस्य खुलेआम या चुपके से धूम्रपान करता है, तो उन्हें दुष्परिणामों से अवगत कराएं और उसका घर के दूसरे सदस्यों पर कितना असर पड़ता है उससे परिचित कराएं। क्योंकि चेतना का आरंभ खुद से हो, तभी समाज से अपेक्षाएं की जानी चाहिए। क्योंकि गुटका मुंह में दबाकर कैंसर से बचने के दिखावटी उपाय नहीं होने चाहिए। धूम्रपान त्याग कर हमें और अपनों को बचाना है।

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