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नेता जी परदे के पीछे मुलाकातों का मकसद व मसौदा ?

सब हेडिग – आल ईज नॉट वेल

-विनोद तकिया वाला-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

सता व सिंघासन के सियासी समर में मुलाकातो का दौर से भारतीय जनता भली भाँति परिचित है। चाहे वह केन्द्र की राजनीति हो या राज्यो की राजनीति। आज कल सता पक्ष व विपक्ष के नेता ओ के मुलाकातो का सिलसिला रुकने का नाम नही ले रही है। चाहे वह लोक कल्याण मार्ग स्थिति निवास स्थान हो ‘ या दीन दयाल उपाध्याय मार्ग के विशाल ,भव्य व आलिशान परिसर स्थित पार्टी का मुख्यालय के बन्द कमरे में परदे के पीछे मुलाकातो का दौर का हो। केन्द्र – राज्य के नेताओ के बीच मुलाकातो का दौर निरन्तर चल रहा है। इन बन्द कमरो मे मेंमुलाकातो के मकसद व मसोदे भले कुछ हो , लेकिन यह तो स्पष्ट है कि सता के गलियारों मे ष्आल इज नॉट वेल ष् यानि केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच सब ठीक – ठाक नही चल रहा है। ऐसे मुझे पुरानी कहावत याद आ रही है कि ष् दुर से उठते धुन्धे घुँये , आग होने की पुष्टि करता है। यहाँ पर मै स्पष्ट कर दूँ कि मेरी मनसा किसी घर मे आग लगाने का नही है , ब्लकि केंद्र की सरकार व राज्यो के मुख्यमंत्री के बीच अगले वर्ष होने वाले विधान सभा के चुनाव की रणनीति बनाने को ले कर है। सन् 2022 मे जिन राज्यो मे विधान सभा के चुनाव होने वाले है ‘ उन राज्यो मे सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश है। राजनीति के रणनीति कार ये भली – भाँति जानते है कि उत्तर प्रदेश मे जिस पार्टी की सरकार होगी वे पार्टी केन्द्र की राजनीति को दिशा व दशा तय करती है। उत्तर प्रदेश के विधान सभा की जीत 2024 मे होने वाले लोक सभा के आम चुनाव बहुत ही प्रभावशाली भुमिका अदा करेगी। उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव जीतने के लिए इस बार भी भाजपा में अजीब सी बेचैनी है।दिल्ली दरबार से लेकर नबावो के शहर लखनऊ तक और संघ मुख्यालय से लेकर केंद्रीय पार्टी कार्यालय के शीर्ष नेतृत्व तक आत्म चिन्तन व मंथन के अक्रामक मूड में दिख रहा है। भाजपा के केन्द्रीय नेत्तृत्व को यह भय सताने लगा हैं कि कहीं वे उत्तर प्रदेश के विधान सभा का महत्वपूर्ण चुनाव को हार न जाएं। आने वाले बर्ष 2024 के लोकसभा के चुनाव की भी चिंता की लकीरे दिखनी अभी से शुरू हो गई है।
कुछ दिन पहले सम्पन्न हुए पं॰ बंगाल विधान सभा चुनाव के परिणाम से भाजपा को खास कर केन्द्रीय नेतृत्व के शीर्ष प्रधान सेवक व पार्टी के स्वंयभु चाणक्य जी अकेली बंगाल की शेरनी की दहाड़ व हार की पछाड़ को पचा नही पा रही है। शायद इस बात को ध्यान मे रखते हुए पार्टी के भीष्म पितामह कहने जाने वाले
संघ ने पार्टी को सुझाव दी है कि 2022 वर्ष में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मोदी नाम की माला व पार्टी के करिश्माई थके हुए चेहरे का इस्तेमाल नहीं किया जाए। पार्टी के शीर्ष नेताओ का मानना है कि ओ – दीदी , ओ दीदी ताने मारने वाले को जनता के समक्ष ना लाया जाए। किसी भी हाल मे भाजपा उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव मे भी बंगाल की तरह हारना नही चाहती है।
अगर गोपनीय शुत्रो की माने तो राज्य के वर्त्तमान 250 विधायक योगी आदित्यनाथ के काम करने के तौर तरीको से नाखुश चल रहे हैं। पार्टी के शीर्ष नेता व संघ के वरीय नेतृत्व हिन्दुत्व चहेते योगी के चेहरे पर ही आगामी विधान सभा चुनाव लड़ना चाहती है। विगत दिनो दिल्ली दरबार मे प्रधान सेवक व मोटा भाई व भाजपा की आलाकमान से मंहत जी मुलाकात के बाद फिलहाल उत्तर प्रदेश की सता की रेल पटरी पर दिख तो रही है ‘लेकिन योगी मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर अभी तक कोई साफ तस्वीर नजर नहीं आ रही है।
इन दिनो जनता मे दबी जुबान से सरकार के विफलता के रूप मे किसान आन्दोलन,बेरोजगारी और कोरोना के कुप्रबंधन देखी है।
भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले जैसे सरेआम अलग-अलग जातियों के नेता से सम्पर्क साधने की कोशिश की जा रही है। इससे तो यही लग रहा है कि भाजपा का हॉट हिंदुत्व ऐजन्डा फेल हो चुका है। विगत दिनो राज्य में सम्पन्न हुए पंचायत चुनावों के परिणाम इस ओर साफतौर पर संकेत दे चुके हैं कि भाजपा ने जो गैर यादव और गैर जाटव का कुनबा जोड़ा था।वह बिखर गया है।पिछड़ी जातियों को और गैर ठाकुर सवर्णों को खासकर ब्राह्मणों को उत्तर प्रदेश में नजरंदाज किया गया जिसकी वजह से तमाम विधायक असंतुष्ट थे।फेक एनकाउंटर अपने आप में बुरी चीज है , लेकिन इसमें भी जाति और धर्म देखकर फैसले लिए गए।भाजपा को यह सोचने का मौका ही नहीं मिला कि इससे समाज में किस तरह का असंतोष फैलेगा!2017 के विधानसभा चुनाव में पिछड़ों के दम पर ही भाजपा सत्ता में आई थी ‘ लेकिन सत्ता में आते ही पार्टी ने केशव प्रसाद मौर्य की जगह मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने की बात की गई। अंतत केन्द्र से पैराशूट कंडीडेट योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया। मुसलमानों से घृणा करने वाला व्यक्ति खुलेआम जातिवादी मानसिकता का परिचय देने लगा। आप को याद होगा कि हिंदुत्व भी एक जुमला है योगी आदित्यनाथ इस बात को साबित कर चुके हैं। योगी ने इसका छोटा सा नमूना वे सत्ता में आते ही पेश किए- प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव के बंगले का जिस तरह से शुद्धिकरण कराया गया और केशव प्रसाद मौर्य के नेमप्लेट को उखड़वाकर कूड़ेदान में फेंक दिया गया। वही केशव प्रसाद मौर्य को केवल चार मंत्रालय दिया गया जबकि योगी आदित्यनाथ अपने लिए 36 विभाग सुरक्षित रख लिए। यह भी सत्य है कि अलग-अलग दलों को जिनके साथ गठबंधन होता है उन्हें कोई मंत्रालय और लाल बत्ती देकर उनका मान बढाने की पुरानी परम्परा को योगी आदित्यनाथ ने तोड़ दी। कुछ दिन पूर्व
जितिन प्रसाद का भाजपा में शामिल होना ब्राह्मणों को शांत करने के लिए जवाबी कदम के रूप में देखा जा रहा है।क्या ब्राह्मण या भूमिहार जाति इतनी भोली-भाली है कि वह पूर्व नौकरशाह ए के शर्मा और पूर्व कांग्रेसी जितिन प्रसाद की वजह से संतुष्ट हो जाएगी? मेरा व्यक्ति गत विचार है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा के अंदरखाने में बिखराव व टकराव की ओर अग्रसर है। क्या इन सबका प्रभाव व्यापक जनता पर नहीं पड़ेगा।
आपको याद दिलाना चाहुँगा कि 2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नोटबंदी की गई थी। जनता बैंकों के सामने लाईन में अपनी बारी का इंतजार कर रही थी और भाजपा नेताओं की गाड़ियों से गुलाबी 2000₹ के नये नोट के बंडल पकड़े जा रहे थे। लाइन में लगे-लगे कुछ लोग मर गए। अस्पतालों में समय से भुगतान न कर पाने की वजह से भी कुछ लोगों की जान चली गई। नोटबंदी इसलिए की गई थी ताकि विपक्ष के पैसे को पानी बनाया जा सके। भोली भाली जनता को कहा गया कि विदेशो सेकाला धन आएगा ‘नक्सलियों की कमर टूट जाएगी.फिर डिजिटल पेमेंट की बात कर आपके गुस्से को शांत कर दिया गया।आज अर्थव्यवस्था की जो हालत है उसके पीछे कोविड महामारी का हाथ तो है ही नोटबंदी का सबसे बड़ा हाथ है। नोटबंदी का असर पिछले विधानसभा चुनाव पर कुछ यूँ पड़ा कि अखिलेश यादव और मायावती चुनाव से पहले ही मैदान से बाहर कर दिए गए और मोदी लहर पर सवार होकर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए, लेकिन सत्ता में आने के बाद ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया जिसकी सराहना की जा सके। वे सिर्फ मोदी की तारीफ को ही अपना परम कर्त्तव्य समझते रहे है।काम के नाम पर केवल नाम बदला गया और धार्मिक आयोजनों में जनता के टैक्स का पैसा उड़ाया गया।राष्ट्रीय रोजगार चाय बेचना व पकौड़ा तलना तो था। सरकार ने इसलिए रोजगार के लिए अलग से सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी।.इस बार के चुनाव में संघ की लाख कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री की कुनीतियों को ध्यान में रखकर भी जनता वोट करेगी।अगर उन्हें यह गलतफहमी है कि वे योगी आदित्यनाथ पर हार की जिम्मेदारी डालकर खुद को लोकसभा के लिए बचा लेंगे तो यह उनका भ्रम है।
पार्टी के समर्थको का मानना है कि व्यक्तिगत तौर पर योगी आदित्यनाथ के ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। हमें यह समझना चाहिए कि इस तरह की बातें छवि निर्माण के लिए की जाती हैं। उत्तर प्रदेश में व्यापक भ्रष्टाचार हो रहा है।
मुसलमानों और दलितों का इस सरकार में दमन बढ़ा है.मोब लिंचिंग और बलात्कार जैसी घटनाओं पर चुप्पी या मौन समर्थन से भी जनता आक्रोशित है।
इस महामारी में अधिकांश लोगों को यह अहसाह हुआ है कि लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और कुप्रबंधन की वजह से ही गंगा में लाशें तैरती दिखीं और रेत में हजारों लोगों को दफनाना पड़ा. सैकड़ों शव रास्तों के किनारे पड़े रहे.उन्हें चिता के लिए जगह मिलने और अपनी बारी आने का इन्तजार था. गिद्ध और कुत्तों ने लाशों को नोंचा. मृत्यु के बाद भी देह का अपमान हुआ।
भाजपा के लिए जिला पंचायत चुनावो के परिणाम उम्मीद व आशा की एक किरण है।
नेता जी पर्दे की पीछे की मुलाकात का मसौदा व मकसद की तस्वीर भले स्पष्ट ना हो लेकिन अब जनता इतनी भी भोली नही है कि वे आप वे आपके चाल चरित्र से परिचित है।
मै तो आप से विदा लेते है कि फिर मिलेगे – तीरक्षी नजर से तीखी खबर को लेकर।
ना ही काहूँ से दोस्ती,ना ही काहूँ से बैर।
खबरीलाल तो माँगे ‘सबकी खैर॥

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