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पतंगों के व्यापार पर कोविड का असर, बाजार से रौनक गायब

नई दिल्ली, 13 अगस्त (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में पतंगबाजी का रिवाज रहा है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी का इस पर असर दिख रहा है। हर साल 15 अगस्त से पहले दिल्ली के दो इलाकों में पतंग का बाजार सजता है लेकिन इस बार बाजार में रौनक फीकी है, दुकानें कम लगी हैं, दूसरे प्रदेशों से व्यापारी नहीं आए और ग्राहक भी नदारद हैं।

दुकानदारों का दावा है कि कोविड महामारी के कारण उनका व्यापार 70 फीसदी तक कम हो गया है और बाजार में ग्राहक न के बराबर हैं। महामारी की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर प्रशासन की सख्ती की वजह से दुकानें जल्द बंद करना पड़ रहा है और इसका असर भी व्यापार पर पड़ रहा है।

करीब 60-70 सालों से पुरानी दिल्ली के लाल कुआं इलाके में 15 अगस्त से पहले बड़ी संख्या में पतंगों की दुकानें सजती हैं। दिल्ली के दूर-दराज के इलाकों से लोग पतंगबाजी के लिए पतंगे, चरखी, मांझा आदि खरीदने यहां आते थे, लेकिन इस बार बाजार से रौनक नदारद है और पिछले सालों की तुलना में दुकानें भी कम लगी हैं।

व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान से हर साल दुकान लगाने के लिए पुरानी दिल्ली आने वाले व्यापारी कोविड की वजह से इस बार नहीं आए हैं, इसलिए दुकानों की संख्या आधी रह गई है।हालांकि शहर के उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबद इलाके में पतंगों के बाजार में कुछ व्यापारी दूसरे राज्यों से आए हैं, लेकिन उन्होंने ज्यादा निवेश नहीं किया है।

लाल कुएं में करीब 40 साल पुरानी पतंगों की दुकान ‘बिशनचंद एंड सन्स’ के मालिक हिमांशु ने ‘भाषा’ से कहा, “ कोविड-19 के कारण व्यापार पर करीब 70 प्रतिशत का असर पड़ा है। बाहर से आने वाले ग्राहक नहीं आ रहे हैं। दिल्ली के बाहर से दुकानें लगाने के लिए हर साल व्यापारी आते थे लेकिन वे इस बार नहीं आए हैं, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां रुकने से लोगों के पास पैसा नहीं है।”

उन्होंने कहा, “ व्यापारी इस काम में पैसा निवेश नहीं करना चाह रहे, क्योंकि पतंगबाजी एक शौक है और अगर आदमी के पास पैसा होगा तभी वह अपने इस शौक को पूरा करेगा। इसी वजह से इस बार दिल्ली के बाहर से इक्का-दुक्का ही दुकानदार आए हैं।”

हिमांशु के मुताबिक, कोविड महामारी से पहले माता-पिता बच्चों को पतंगें और चरखियां दिलाने आते थे, लेकिन महामारी के बाद से स्थिति पूरी तरह पलट गई है। अब न बच्चे आ रहे हैं और न उनके माता-पिता।

लघु हथरघा पतंग उद्योग समिति के उप प्रधान सचिन गुप्ता ने बताया, “ लाल कुएं के इलाके में कोविड से पहले करीब 100 दुकानें लगती थीं। इस बार सिर्फ 40-45 दुकानें लगी हैं।” वह कहते हैं कि कोविड महामारी की वजह से 15 अगस्त पर पतंगबाजी का जोश फीका पड़ गया है। स्वतंत्रता दिवस से चंद दिन पहले बाजार गुलजार रहता था, दुकानों पर भारी भीड़ रहती थी, लेकिन इस बार जितनी दुकानें लगी हैं, वे सूनी पड़ी हैं।’’

गुप्ता का कहना है कि इसका एक बड़ा कारण बाजार को रात आठ बजे बंद करा देना है, क्योंकि दफ्तर जाने वाला शख्स रात में खरीदारी करने निकलता था लेकिन यह कोविड संबंधित दिशा-निर्देशों की वजह से मुमकिन नहीं है।

हालांकि राजस्थान के जयपुर में रहने वाले सिराज पतंगों की दुकान लगाने के लिए इस बार भी जाफराबाद आए हैं। उनका कहना है कि वह करीब 20 सालों से अपने पिता के साथ यहां हर साल 15 अगस्त से पहले पतंगों की दुकान लगाने आते हैं। उन्होंने बताया कि पहले वह अच्छा मुनाफा कमाते थे, लेकिन पिछली बार भी और इस बार भी कारोबार की नजर से हालात अच्छे नहीं है। उनके मुताबिक, जो ग्राहक आ रहे हैं, वे ज्यादा पतंगे और चरखियां नहीं खरीद रहे हैं।

इलाके में अन्य व्यापारी एहतिशाम ने 15 दिन के लिए नौ हजार रुपये के किराये पर दुकान लेकर पतंगों का व्यापार शुरु किया है। उनका कहना है कि उन्होंने दुकान में 50,000 रुपये का माल भरवाया था लेकिन अबतक 10,000 रुपये का माल भी नहीं बिका है। “मुझे चिंता है कि मेरा लगाया हुआ पैसा मुझे वापस मिल भी पाएगा या नहीं।”

वहीं नवीन शाहदरा में रहने वाले 35 वर्षीय हरीश ने बताया कि वह एक कंपनी में अकाउंटेंट की नौकरी करते हैं और लॉकडाउन के दौरान का उन्हें वेतन नहीं मिला है। हालांकि उनकी नौकरी सलामत है। वह कहते हैं कि वह बचपन से ही 15 अगस्त पर पतंगबाजी करते थे और इस बार भी उनका इरादा पतंगबाजी करने का है, लेकिन उन्होंने अपने इस शौक के बजट में कटौती की है। हरीश ने बताया कि इस बार वह सिर्फ 50 पतंगे खरीद रहे हैं और पिछले साल का बचा हुआ पुराना मांझा तथा अन्य डोर इस्तेमाल करेंगे।

 

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