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लखीमपुर खीरी हिंसाः न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से शेष गवाहों के बयान दर्ज करने को कहा

नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि लखीमपुर खीरी मामले के शेष गवाहों के बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराये। इस मामले में राज्य सरकार की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुये न्यायालय ने कहा कि उसे लगता है कि वह ‘‘इस मामले में बहुत धीमे काम कर रही’’ है।

शीर्ष अदालत तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में किसानों के एक प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत के मामले में सुनवाई कर रही थी। न्यायालय को राज्य सरकार ने बताया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 44 में से चार गवाहों के बयान दर्ज कर लिए है।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में दाखिल स्थिति रिपोर्ट पर गौर किया। राज्य सरकार ने पीठ को बताया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष गवाहों के बयान दर्ज कराने की प्रक्रिया जारी है।

शीर्ष अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर की तिथि तय की है। इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। दो वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि इस मामले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए, जिसमें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को भी शामिल किया जाए। इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई शुरू की।

गौरतलब है कि किसानों का एक समूह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की यात्रा के खिलाफ तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहा था, तभी लखीमपुर खीरी में एक एसयूवी (कार) ने चार किसानों को कुचल दिया था। इससे गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक की कथित तौर पर पीट कर हत्या कर दी थी, जबकि हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई।

किसानों के अनेक संगठन ‘कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020’, ‘कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020’ और ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून’ को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले साल नवंबर से आंदोलन कर रहे हैं। पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी फैल गया।

शीर्ष अदालत ने जनवरी में कानूनों को अमल में लाने पर रोक लगा दी थी।

 

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