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भारतीय इतिहास का पृष्ठ काला-हर सरकार में रक्षा घोटाला….?

-ओमप्रकाश मेहता-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

इस नई इक्कीसवीं शताब्दी के साथ ही भारत में भ्रष्टाचार की बाढ़ भी आ गई। इस शताब्दी के अब तक के दो दशकों में यह मौजूदा तीसरी सरकार है, जिसने ”न खाऊँगा – न खाने दूँगा“ के संकल्प के साथ अपनी शुरूआत की थी, किंतु अब जो ‘दिन दूने रात चैगुने’ प्रकरण सामने आ रहे हैं, उनसे भारत का जागरूक नागरिक काफी परेशानी महसूस कर रहा है।
यदि हम अन्य मसलों को छोड़ सिर्फ भारत की सुरक्षा से जुड़े मसलों की ही बात करें तो यह स्पष्ट होता है कि इस शताब्दी की पहली राजनीति के युग पुरूष अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार से लेकर मौजूदा नरेन्द्र भाई मोदी की सरकार तक ने भारतीय सेनाओं के हथियारों व आयुद्ध विमानों की खरीदी में भ्रष्टाचार में कोई कमी नही की। अथार्त अटल जी के समय से शुरू हुआ रक्षा सौदों में दलाली का सिलसिला आज मोदी सरकार तक जारी है और इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की काफी बदनामी भी हुई है।
मौजूदा शताब्दी के प्रारंभिक चार वर्षों में अटल जी की सरकार रही, इस घौटाले की शुरूआत उसी समय से हुई, तत्कालीन रक्षा विशेषज्ञों ने फ्रांस, जर्मनी आदि देशों से रक्षा सौदों की शुरूआत की और दलाली का खेल शुरू किया उसके बाद एक दशक तक कांग्रेस के डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार रही, जिसमें अनेकानेक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित किये, जिनमें रक्षा सौदों से जुड़े राफैल खरीदी घोटाला भी शामिल है। वर्ष 2007 से 2012 के बीच यह सौदा हुआ था। अगस्ता वैस्टलैण्ड नाम के इस सौदे में भी उसी बिचैलिये का नाम सामने आया था, जिसने रॉफैल सौदे में बिचैलिये की भूमिका निभाई थी, जिसका नाम सुषैन गुप्ता बताया जा रहा है, जिसने इस सौदे में 65 करोड़ की दलाली राशि प्राप्त की थी, दावा यह भी किया जा रहा है कि भारत के हर रक्षा सौदे के समय इसी शख्स ने बिचैलिये की भूमिका निभाई। यह शख्स आज जेल में है, भाजपा प्रवक्ता ने तो रक्षा सौदों के संदर्भ में इंडियन नेशनल कांग्रेस का नाम ही बदल कर ”आई नीड कमीशन“ (आईएनसी) कर दिया।
रक्षा सौदों को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी करने में अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया भी पीछे नही रहा, हाल ही में फ्रांस के ”पोर्ट मीडिया पार्ट“ ने भारत की मौजूदा सरकार पर आरोप लगाया है कि भारतीय जांच एजेंसियों के पास रक्षा सौदों में घोटाले के पर्याप्त पुख्ता सबूत है, फिर भी मौजूदा सरकार ने उनकी जांच शुरू नही की। फ्रांस के इस प्रमुख मीडिया पोर्टल का कहना है कि शैल कम्पनी के जरिये रिश्वत या दलाली दी गई। बताया गया कि आईटी कम्पनी आई.डी.एस. भी इस गोरखधंधे में शामिल है। अब एक ओर जहां इन रक्षा सौदों को राजनीतिक खिंचतान का मुख्य माध्यम बना लिया गया है, वहीं रक्षा सौदा रॉफैल की आरोपी कांग्रेस स्वयं ही संयुक्त संसदीय जांच दल (जेपीसी) से सभी रक्षा सौदों की जांच कराने की मांग कर रही है। संसद शीतकालीन सत्र 29 नवम्बर से शुरू होने जा रहा है, जिसके रक्ष सौदों के घोटालों में खो जाने की संभावना वयक्त की जा रही है।
इधर इन दिनों एक नया रक्षा घोटाला राजनीतिक हवा में तैर रहा है, कांग्रेस मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है कि मोदी सरकार ने पिछले दिनों एक रक्षा सौदे में 526 करोड़ की डील 1600 करोड़ में क्यों की? और वह भी बिना टेण्डर के? ये सवाल रॉफैल रक्षा सौदे को लेकर उठाये जा रहे है। आरोप लगाया है कि स्वयं प्रधानमंत्री ने सौदे का एक ‘क्लॉज’ हटाया और इस डील को आगे बढ़ाया था। इस माध्यम से देश को हजारों करोड़ का नुकसान पहुंचाया गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस सौदे के तहत 36 रॉफैल लड़ाकू विमानों की खरीदी की डील हुई थी जो 39 हजार करोड़ की थी, फ्रांस के प्रमुख अखबार मीडिया पार्ट का आरोप है कि इस डील के लिए डसाल्ट एवियेशन ने सुषैन गुप्ता को बिचैलिये के रूप में 7.5 मीलियन डॉलर अर्थात्् 65 करोड़ की दलाली दी थी। और दुनिया भर में इस घोटाले की गूंज के बावजूद भारत सरकार मौन दर्शक बनी रही, उसने इस दिशा में निष्पक्ष जांच सम्बंधी कोई फैसला नहीं लिया जो आज भी राजनीति में विस्मय की दृष्टि से देखा जा रहा है।
इस नई इक्कीसवीं शताब्दी के पिछले दो दशकों को इसीलिए ”घोटाला काल“ कहा जाने लगा है, इन रक्षा घोटालों की शुरूआत अटल जी की सरकार से हुई और ”मौनीबाबा“ (मनमोहन सिंह) की एक दशक की सरकार के बाद मोदी जी की सप्त वर्षिय जारी सरकार को भी इन घोटालों से जोड़कर देखा जाने लगा है, मोदी सरकार पर रॉफैल सौदों में घोटाले के साथ पिछली मनमोहन सरकार के घोटाले की जांच की अपेक्षा उन्हें ”नस्तीबद्ध“ करने के आरोप लगाए जा रहे है, कहा जा रहा है कि मॉरिशस सरकार ने आज से तीन साल पहले अर्थात्् 2018 में जांच के दस्तावेज सीबीआई को सौंप दिये थे, किंतु आज तक मोदी सरकार ने उनकी जांच शुरू नही करवाई, इस कारण अपने आपको साफ सुथरी बताने वाली मोदी सरकार पर भी भ्रष्टाचार के दाग लगे नजर आने लगे है। अब अपेक्षा की जा रही है कि अगले संसद सतर्् में शायद इस बारे में कुछ खुलासा हो?

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