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यूपी की सियायत शतरंज की खेल में संभावना की अटकलें तेज

-विनोद तकियावाला-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

महाभारत के रणभुमि में दो पक्ष थें, एक पांडवों का, दुसरा पक्ष कौरवों का था।पांडव अपने अधिकारो के लिए धर्म के मार्ग पर थें। वहीं दुसरा पक्ष कौरव अधर्म के मार्ग पर रह कर अपने भाई का अधिकारो पर कब्जा करना चाहता था। पांडव पक्ष का नेत्तृत्व स्वयं कृष्ण कर रहे थें ‘जब कि कौरव पक्ष की ओर भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य समेत असंख्य महारथी’ अक्षुण्य सेनाओं की थी।पांडवो की ओर बार-बार विनीत कर महाभारत के युद्ध को रोकने का प्रयास विफल रहा था। पांडवो की ओर कृष्ण ने इस शर्ते के साथ युद्ध में उतरने की अपनी सहमति दी कि मै युद्ध में हथियार नही उठाऊंगा। धर्म अधर्म के बीच चली 18 दिनों के इस युद्ध में श्री कृष्ण के नेत्तृत्व में लडी गई।परिणाम अंहकारी व अधर्मी कौरवो को पराजित पांडवो को विजय दिलाई व सिंहासन पर बिठाया।
महाभारत की यह कथा कोई कपोल कल्पित कल्पना की अवधारणाओं पर आधारित नही ‘ब्लकि राजनीति व सता के सिंघासन पर आसीन होने वाले को राजनीति पार्टी के नेताओ को हमेशा ही याद दिलाता रहेगी कि सता की शक्ति के अंहकार मे वह अपना धर्म कर्म’ कर्तव्य को कभी ना भुले ब्लकि हमेशा ही धर्म के मार्ग पर चलते है हुए अपने राज धर्म का पालन करे। भारतीय राजनीति के वर्तमान परिपेक्ष मे सता के सिंघासन पर आसीन केन्द्र व राज्यो के सरकारों को अपना राज धर्म व जनता के प्रति उतर दायित्वो का निर्वाह का पालन विना किसी धर्म जाति लिंग भेद भाव का विना करना चाहिए’ क्योंकि हमारे देश राजतंत्र नही ब्लकि प्रजातंत्र है। प्रजातंत्र में जनता ही सर्वोपरि होता है। जनता ही अपना गुप्त मतदान कर राजनीतिक दल को अपना जर्नादन बना कर पाँच वर्षो के लिए भेजता है।
पिछला बीता हुआ वर्ष कोरोना के संकट काल में भारतीय राजनीति अर्थ व्यवस्था में काफी ही उथल पुथल से गुजरना पड़ा है। नव वर्ष का आगमन कोरोना के नये अवतार के रूप ओमिक्रान के रूप में प्रचण्ड रूप में अवरित हुआ है वही इस वर्ष के शुरूआत में पाँच राज्यो के विधान सभा के चुनाव होने वाले है।इन पाँच में सवसे महत्वपूर्ण व रोचक चुनाव उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव है। क्योकि भारतीय राजनीति के मर्मज्ञ के अनुसार दिल्ली दरबार की सता की चाबी नबावों के शहर लखनऊ से जाती है। यानि भारतीय राजनीति में इस वर्ष होने वाले उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के परिणाम की अपनी अंहम भूमिका रहेगी। इसकी साफ झलक भाजपा के शीर्ष नेतृत्व व भाजपा की केन्द्र सरकार प्रधान सेवक व मंत्री मण्डल के शीर्ष मंत्रियो व नेता कि चेहरे पर चिंता की स्पष्ट लकीरों से झलकती है।
हालाकि उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीख भले ही अभी चुनाव आयोग ने घोषित नही कि है। लेकिन इन दिनो राजनीति क दलो के चुनावी रैली ‘शिलान्यस’ ‘उद्घाटन’ चुनावी वादो के बहती ब्यार से स्प्यष्ट हो गया है कि भाजपा किसी हालत में उत्तर प्रदेश मे सता पर पुन आसीन होना चाहती है। डब्ल ईंजन की सरकार वाली पार्टी इसके लिए अपने सारे शाम दण्ड भेद को एक साथ लगा रही है। इस कडी मे पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी समेत भाजपा के तमाम नेता ताब ड़तोड़ रैलियां करने में जुटे हैं वही दुसरी ओर विपक्ष अपने युवा अखिलेश यादव सपा के लिए अकेले ही रण क्षेत्र मे निकल पड़े हैं।
बसपा और कांग्रेस ने भी अपनी कमर कस ली हैं, अब प्रजातंत्र के सजग प्रहरी के रूप जनता जनार्दन तय करेगा कि उत्तर प्रदेश की जनता के लिए कौन सच्चा सेवक है।इस संदर्भ में चुनाव के पूर्व कराये एबीपी-सी वोटर के द्वारा किये गये सर्वे में उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव को लेकर बड़े-बडे अनुमान लगाए गए हैं।वही जनता की राय में भले हीअब भी भाजपा पहले नंबर पर है, लेकिन सपा की शक्ति को नाकारा नही जा सकता है।उत्तर प्रदेश के राजनीति पंडितो की राय में उ प्र विधान सभा के चुनाव का मुकाबला काँटे की टक्कर की रहने की संभावना है। सर्वे के पूर्वानुमान के मुताबिक यूपी के जनता की राय.. मे.49 फीसदी लोगों ने माना योगी की सत्ता में पुनःवापसी कर सकती है।यह आंकडे भाजपा एबीपी-सी वोटर की ओर से 29 दिसंबर को जनता की राय ली ।इसके अलावा 30 प्रतिशत लोग सपा के पक्ष में दिखाई दिए।इस सर्वे में शामिल जनता की राय मे 8 फीसदी लोग मायावती की सरकार के पक्ष में दिखे तो 6 फीसदी लोगों ने कांग्रेस को भी मजबूत दावेदार माना है।2 प्रतिशत ने अन्य और 3 प्रतिशत ने उत्तर प्रदेश विधानसभा त्रिकुंश होने की बात कही है।शेष तीन प्रतिशत लोगों ने पता नहीं में जवाब दिया था।
राज्य वे विधान सभा के क्षेत्रवार भी बात करें तो पूर्वांचल से लेकर अवध, बुंदेलखंड और पश्चिम तक में भाजपा की बढत दिखाई दे रही है।सवसे बडे दिलचस्प बात यह है कि जिस पश्चिम यूपी किसान आंदोलन का असर माना जा रहा था, वहां भी वह सपा, बसपा जैसे दलों से आगे की बात कही जा रही है।
जहाँ तक मतदान का प्रशन है वह
अवध में भाजपा को 44 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं, जबकि सपा को 31 और बसपा को महज 10 पर्सेंट वोट ही मिलने का अनुमान है।कांग्रेस 8 फीसदी वोट हासिल कर सकती है। पश्चिमी यूपी में भाजपा का ही दबदबा है।यहां उसे 40 फीसदी वोट शेयर मिलता नजर आ रहा है।इसके अलावा सपा को 33 फीसदी मत मिल सकते हैं।यहां बसपा 15 फीसदी मत पा सकती है। कांग्रेस यहां भी 7 फीसदी पर ही सिमट सकती है।पूर्वांचल में130 सीटें हैं, जो किसी भी पार्टी को सत्ता के शीर्ष पर ले जाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। यहां भाजपा को 41 तो सपा को 36 पर्सेंट वोट मिल सकते हैं। बुंदेलखंड में 19 सीटें हैं।यहां भाजपा 42 फीसदी वोट पा सकती है।सपा यहां मुकाबले में काफी करीब है और 33 फीसदी वोट पा सकती है।
उपर दर्शाये गये मात्र एक जनता के मध्य कराये गये शेम्पल सर्वेक्षणों का पुर्वानुमान है।अभी तो उत्तर प्रदेश के विधान सभा के रण क्षेत्र में राजनीतिक दलो के नेताओं व नीति कारो ने विजय की रण नीति बनाने में लग गए है। अभी बहुत उतार चढ़ाव के दौर से राज्य की जनता का गुजरना है। राज्य की जनता को अपनी सुझ बुझ से काम लेना होगा कि उनका व राज्य का कौन सच्चा साथी है। धर्म की आड में भावना के रथ पर सवार होने वाले ‘विकाश की साईकिल पर सवार होकर समाज वाद की अलख जगाने वाला ‘ समाज के निम्न तपको सच्ची मद् हाथी पर बहुजन के हितो के विगुल बजाने वाली बहिन जी या गंगा-यमुना के तहजीब की दुहाई देने वाली युवा नवोदित नेत्री प्रियंका पर या देश की राजधानी दिल्ली की जनता की सच्चे सेवक शिक्षा ‘स्वास्थ्य सेवा ‘ मुफ्त बिजली पानी उपलब्ध कराने वाले गरीबों का मशीहा-करिश्माई व्यक्तित्व केजरीवाल के झाडु पर ये ‘आने वाले समय व प्रदेश की जनता जनार्दन को निर्णय लेना है।उसके लिए कौन सच्चा सेवक ‘धर्म के रक्षक ‘व रिस्ते के सच्चे हितेशी है।अभी तो बहुते ही सर्वे के आयेगें सारे राजनीति क दल अपने-अपने जीत की दावेदारी ठोकेगी !राज्य की जनता इतनी भोली भाली नही है जितना राजनेता समझ रहे है। क्योकि ये पब्लिक है सब जानती है।फिल हाल हम अपने प्रिय पाठको से यह कहते हुए- ना ही काहूँ से दोस्ती ‘ना ही काहूँ से बैर। खबरी लाल तो माँगे, सबकी खैर ॥
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं के साथ आप से विदा लेते है फिर मिलेगे तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग ‘तब तक के लिए अलविदा।

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