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अपनी मांग को लेकर इंटीग्रेटिड मेडिकल एसोसिएशन ने डॉ. हर्षवर्धन को भेजा ज्ञापन

नई दिल्ली, 01 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट अमेंडमेंट रूल्स के अंतर्गत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों द्वारा चीफ डिस्ट्रिक्ट मेडिकल ऑफिसर (सीडीएमओ) को रिपोर्ट करने के प्रस्तावित प्रावधान पर इंटीग्रेटिड मेडिकल एसोसिएशन ने एतराज जताया है। एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. आर.पी. पाराशर का कहना है कि आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सकों का नियमन आयुष विभाग द्वारा होता है जबकि सीडीएमओ एलोपैथिक विभाग के अंतर्गत आते हैं। एसोसिएशन की मांग है कि उन्हें जो भी रिपोर्ट करनी है, उसके लिए आयुष विभाग के अधिकारियों को अधिकृत किया जाए। प्रस्तावित रूल्स के विभिन्न प्रावधानों में बदलाव की मांग को लेकर एसोसिएशन द्वारा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को ज्ञापन भेजा गया है। प्रस्तावित रूल्स के अंतर्गत एलोपैथिक व भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों के लिए अलग अलग प्रावधान किए गए हैं लेकिन इंटीग्रेटिड मेडिसिन के प्रैक्टिशनर्स के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है जबकि अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा आयुष चिकित्सकों को एलोपैथिक दवाओं के प्रयोग का अधिकार दिया हुआ है। आयुष चिकित्सकों द्वारा संचालित क्लीनिक के लिए न्यूनतम 100 वर्ग फीट क्षेत्रफल प्रस्तावित किया गया है। दिल्ली व अन्य मेट्रो शहरों के लिए न्यूनतम क्षेत्रफल 50 वर्ग फीट करने की मांग की गई है। सभी चिकित्सकों द्वारा क्लीनिक में फार्मासिस्ट नियुक्त करने की सिफारिश प्रस्तावित रूल्स के अंतर्गत की गई है। डॉ. पाराशर का कहना है कि भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रशिक्षित फार्मासिस्ट उपलब्ध ही नहीं है। इसके अलावा प्रशिक्षित फार्मासिस्ट की नियुक्ति करने से जो खर्चा बढ़ेगा उसका बोझ अंततः मरीजों पर ही पड़ेगा। आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सक मुख्य रूप से गांवों और झुग्गी झोपड़ी कॉलोनियों में प्रैक्टिस करते हैं और गरीब लोगों को सस्ती चिकित्सा उपलब्ध कराते हैं। एसे में आयुष चिकित्सकों द्वारा फार्मासिस्ट नियुक्त करने की अनिवार्यता में छूट दी जाए। सरकार भी विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं और कार्यक्रमों के अंतर्गत आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं द्वारा दवा वितरण का कार्य कराती है। ऐसे में विषम परिस्थितियों में समाज के निचले तबके के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले आयुष चिकित्सकों के लिए ऐसी अनिवार्यता का कोई औचित्य नहीं है।

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