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होली के बहाने पद हथियाने की सियासत

-डा. रवीन्द्र अरजरिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनावों के बाद सरकारों के गठन का दौर चल रहा है। सत्ताधारी पार्टियों के चयनित विधायक पद हथियाने के लिए युध्दस्तर पर हथकण्डे अपना रहे हैं। मंत्री से लेकर विभिन्न निकायों के अध्यक्ष तक की सर्वसुविधायुक्त कुर्सियों पर कब्जा करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद की चौरंगी चालें अब चरम सीमा पर पहुंच गईं हैं। कहीं भाई-भतीजावाद का नारा खामोशी से बुलंद हो रहा है तो कहीं कान में जातिवाद का डंका सुनाया जा रहा है। अतीत के कामों की दुहाई पर भी जोर आजमाइश चल रही है तो अनेक लोग अपनी पैत्रिक विरासत की गौरवशाली परम्परा का यशगान कर रहे हैं। प्रदेशों के मुख्यालयों से कहीं ज्यादा सरगर्मियां देश की राजधानी में तेज हैं। सत्ताधारी पार्टियों के जीते हुए प्रत्याशी अनेक खेमों में बटे नजर आ रहे हैं। पार्टी के प्रभावशाली नेताओं के आवासों पर सुबह से लेकर देर रात तक महंगी कारों का जमावडा देखा जा सकता है। होली के बहाने वरिष्ठों को सतरंगी भेंट देने का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। चुनावों में जीते हुए प्रत्याशी अपनी-अपनी पार्टियों के प्रति निष्ठा, समर्पण और वफादारी की कहानियां सुनाकर पद पर काबिज होना चाहते हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब दलबदलू नेता भी सत्ता के गलियारे में मालदार होने की संभावनायें तलाशते नजर आते हैं। कहीं जातिगत कोटे की बातें की जा रहीं हैं तो कहीं क्षेत्रगत प्रतिनिधित्व देने की चर्चायें हो रहीं हैं। पदों के लिए लालायित कुछ लोगों ने तो संचार माध्यमों में स्वयं को मंत्री पद के संभावित नामों की सूची में जुडवाकर प्रचारित करवाना तक शुरू कर दिया है। क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों की भीड लेकर पार्टी कार्यालयों में कुछ खास चयनित प्रत्याशी के नारे बुलंद किये जा रहे हैं। सत्ता की शतरंज पर मुहरों की भाग-दौड तेज हो गई है। बहुमत प्राप्त दलों के मुख्यालयों से लेकर ऊंचे कद के नेताओं के घरों में बैठकों का दौर चल रहा है। आश्वासनों की पंजीरी बांटी जा रही है। जिलास्तर के पदाधिकारियों को लेकर राज्य मुख्यालय तथा राष्ट्रीय मुख्यालय तक की दौड जारी है। विपक्ष में बैठने वाले दलों में भी मंथन का दौर चल रहा है। हार-जीत की समीक्षाओं के आधार पर जिलास्तरीय इकाइयों को महात्व दिया रहा है। कहीं परिवार का आंतरिक कलह पार्टी को ले डूबा तो कहीं पाक प्रेम में सराबोर राज्यस्तरीय नेताओं के कृत्यों ने लोकप्रियता के ग्राफ को न्यूनतम सीमा पर पहुंचा दिया। बयानबाजी के शगूफे और नकारात्मक प्रचार का भी मतदाताओं पर खासा असर पडा है। धार्मिक ध्रुवीकरण से लेकर राष्ट्रवाद तक के फार्मूलों ने इस बार के चुनावों को खासा प्रभावित किया है। कुछ और राज्यों के विधानसभा चुनावों की दस्तक अभी से सुनाई देने लगी है। विभिन्न पार्टियों ने अब अपना ध्यान भावी निर्वाचन पर केन्द्रित कर दिया है। मतों के प्रतिशत के आधार पर जोड-तोड के समीकरण बैठाये जा रहे हैं। इस बार की हार को जीत में बदलने के लिए पुराने कार्यकर्ताओं को महात्व देने के साथ-साथ युवाओं को जोडने का काम भी चल निकला है। सुखद भविष्य के सपने दिखाने के लिए पीआर एजेन्सियों का सहारा लिया जा रहा है। जहां भारतीय जनता पार्टी अपनी सफलता पर इठला रही है वहीं आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब की सफलता वाला फार्मूला भावी चुनावों में आजमाने का फैसला कर लिया है। गांधी कुनवा और उनके खास सिपाहसालारों को आइना दिखाने का काम पार्टी के ही वरिष्ठों के व्दारा निरंतर किया जा रहा है। कांग्रेस में वामपंथी विचारधारा के लोगों का वर्चस्व होने के कारण पुराने टोपीधारी हाशिये पर पहुंच गये हैं। देश की राजनीति में निरंतर छोटा होता कद भी पार्टी के कर्ता-धर्ताओं के अहंकार को कम नहीं कर सका। समाजवादी पार्टी के मुखिया ने अपने परिवार के ही एक अन्य सदस्य को महात्व देते हुए नये ढंग की सियासत करने का संकेत दिया है तो वहीं हाथी पर सवार मायावती की सक्रियता कम होने के साथ-साथ उनके वक्तव्यों की संख्या भी न्यूनतम की सीमा पर पहुंच रही है। अकाली दल की समीक्षा बैठकों में संगठन के नये स्वरूप की चर्चा जोरों पर है। ओबैसी का अपना अंदाज एकमात्र मुस्लिम नेता के रूप में स्थापित होने की दिशा में पूर्ववत ही चल रहा है। हालिया चुनावों में मत प्रतिशत के आधार पर पार्टी संतुष्ट ही नहीं है बल्कि आगामी चुनावों में जोरदार ढंग से धार्मिक ध्रुवीकरण की नीतियों पर तेजी से काम करने लगी है। पर्दे के पीछे से चल रहे मीडिया मैनेजमैन्ट को और ज्यादा पुख्ता किया जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ओबैसी को मुस्लिम समाज का बेबाक नेता साबित करने के लिए अनेक संस्थानों के साथ गुप्त अनुबंध करने की खबरें भी कही-सुनी जा रहीं हैं। क्षेत्रीय दलों ने भी अपनी सदस्य संख्या के आधार को मजबूत करना शुरू कर दिया है ताकि निकट भविष्य में वे भी सौदेबाजी करने की स्थिति में पहुंच सकें। सत्ता में पद हथियाने के लिए होली के रंग में रंगी शतरंगी चालें तीव्र से तीव्रतर होने लगीं हैं। इन चालों में कितनी सफल होतीं है और कितनी मात खाकर अगली पारी की प्रतीक्षा करेंगी, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। फिलहाल इतना ही। अगले सप्ताह एक नयी आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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