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मोदी के सम्मान से हुई है योगी की पुनरावृत्ति

-डा. रवीन्द्र अरजरिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्थापित हो गई। विशालता के पैमानों पर शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया। दिनेश शर्मा से छीनकर ब्रजेश पाठक को उप मुख्यमंत्री पद सौंपा गया। ब्राह्मणों के जातिगत समीकरणों और छात्र राजनीति को प्रभावित करने हेतु भारतीय जनता पार्टी ने ब्रजेश पाठक पर दांव लगाया है। अतीत गवाह है कि वे अपने अध्ययन काल में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में हमेशा ही विवादास्पद रहे। तत्कालीन छात्र नेता समरपाल सिंह, सरोज तिवारी, रामवीर सिंह, राकेश सिंह राना आदि के सामने वे हमेशा ही बौने ही दिखते रहे। बाद में राकेश सिंह राना ने समाजवादी पार्टी की नीतियों-रीतियों से प्रभावित होकर अपना सफर साइकिल पर सवार होकर शुरू किया जब कि ब्रजेश पाठक ने सन 1990 में छात्र संघ अध्यक्ष पद पर विजयी होने के बाद लम्बे समय तक राजनैतिक धरातल की तलाश की। अन्तोगत्वा सन 2002 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं को पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा के प्रति आश्वस्त करते हुए हरदोई जिले की मल्लावां विधानसभा क्षेत्र से टिकिट पाने में सफलता प्राप्त कर ली। स्वयं के जन्म क्षेत्र से चुनाव लडने के बाद भी उन्हें पराजय का मुह देखना पडा।

चुनाव में हारने के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी और अपने जन्म क्षेत्र को अलविदा कह दिया। बहुजन समाज पार्टी के तात्कालिक सिध्दान्तों को स्वीकारते हुए ब्रजेश पाठक ने एक बार फिर अपनी छात्र राजनीति और ब्राह्मण होने की दुहाई पर सन 2004 में उन्नाव संसदीय क्षेत्र से टिकिट प्राप्त कर लिया। इस बार दलित मतदाताओं की दम पर वे चुनाव जीतकर दिल्ली दरवार पहुंच गये। बसपा सुप्रीमो मायावती की कृपा से उन्हें सन 2009 में राज्यसभा भेज दिया गया। हाथी पर सवार श्री पाठक को पार्टी ने पुन: सन 2014 में लोकसभा का उम्मीदवार बनाया मगर इस बार उन्हें हार का मुह देखना पडा। पराजित होते ही उन्होंने फिर पाला बदली। भारतीय जनता पार्टी के बढती लोकप्रियता को देखते हुए इसमें घुसपैठ जमाने की कोशिश में लग गये। इस दौर मे भाजपा को भी एक ब्राह्मण चेहरे की तलाश थी। सो सन 2016 में उन्हें पार्टी की सदस्यता दी गई और सन 2017 के चुनावों में लखनऊ मध्य क्षेत्र से उन्हें टिकिट मिल गया। तब समाजवादी पार्टी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और समर्पित समाजवादी रविदास मेहरोत्रा को इसी सीट पर टिकिट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया। यहां पर सितारों की मजबूती के कारण ब्रजेश की जीत हुई और उन्हें योगी सरकार में विधि स्नातक होने के कारण कानून मंत्री पद मिला।

यूं तो लखनऊ की छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति में आये वीरेन्द्र कुमार तिवारी पहले से ही पार्टी में सक्रिय थे मगर उनके सितारे गर्दिश में होने के कारण उनका कद ब्रजेश के सामने छोटा हेता चला गया। यूं तो पार्टी में बुंदेलखण्ड कालेज के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष तथा बुंदेलखण्ड क्षेत्र के लोकप्रिय ब्राह्मण नेता राकेश गोस्वामी ने भी दूसरी बार महोबा विधानसभा क्षेत्र में कमल को विजय सिंहासन पर स्थापित किया है मगर सीधे, सरल और पारदर्शी राकेश ने कभी भी चाटुकारिता मे विश्वास नहीं किया। ऐसे ही अनेक सशक्त ब्राह्मणों की मौजूदगी के बाद भी पार्टी ने ब्रजेश पर दाव लगाया है। ठीक इसी तरह योगी 2.0 में दूसरे उप मुख्यमंत्री के रूप में केशव प्रसाद मौर्य ने शपथ ग्रहण की है जबकि वे सिराथू सीट से पराजित हो चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी ने ओबीसी को सीधा प्रभावित करने की गरज से उन्हें एक बार फिर बडी जिम्मेदारी दी है। चाय और अखबार बेचकर संघर्षमयी जीवन गाथा के प्रारम्भिक पलों को सजीव करने वाले केशव ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन और गौ रक्षा अभियान के माध्यम से विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल से नजदीकियां बनाईं। आंदोलन और अभियान के कारण उन्हें जेल जाना पडा। विश्व हिन्दू परिषद के साथृसाथ वे आरएसएस के कार्यक्रमों में भी सक्रिय हो गये। यहीं से उनका सक्रिय राजनीति में प्रवेश हुआ।

पहली बार वे सन 2002 में बांदा विधानसभा सीट से चुनावी जंग में कूदे, जहां उन्हें पराजित होना पडा। दूसरी बार सन 2007 में उन्होंने इलाहाबाद पश्चिम सीट से किस्मत आजमाई मगर इस बार भी हार ने उनका पीछा नहीं छोडा। संघर्ष से नाता जोडते हुए उन्होंने सन 2012 में सिराथू सीट से ताल ठोकी। इस बार विजयश्री ने उन्हें माल्यार्पण किया और वे पहली बार उत्तर प्रदेश की विधान सभा में पहुंचे। पार्टी ने उन्हें सन 2014 में इलाहाबाद की फूलपुर सीट से लोकसभा का टिकिट दिया। इस बार भी किस्मत ने जोर लगया और वे दिल्ली दरवार पहुंच गये। अब तक उनकी पहचान एक बडे ओबीसी नेता के रूप में होने लगी थी। सो सन 2017 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले उन्हें पार्टी ने प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व सौंपा। परिणाम अपेक्षित आये। उनका नाम प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में चर्चित होने लगा। कहा जाता है कि योगी आदित्यनाथ ने स्वयं के संगठन और पार्टी के अन्दर लामबंदी करके आलाकमान पर भारी दबाव बनाया और मुख्यमंत्री पद पर काबिज हो गये। इस खींचतान के मध्य केशव को उप मुख्यमंत्री पद पर ही संतोष करना पडा। हालिया चुनावों में कुछ खास कारणों से केशव को हार का सामना करना पडा। मगर पार्टी ने उन्हें योग्यता के आधार पर पुन: उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाकर योगी आदित्यनाथ के समक्ष खडा कर दिया।

उल्लेखनीय है कि योगी की अप्रत्यक्ष नीतियां कभी भी व्यक्तिवादी और जातिवादी दायरे से बाहर नहीं निकल पाईं। इसी का परिणाम हुआ कि केन्द्र की राजनीति से प्रदेश में पहुंचने के बाद उनकी अपनी सीट पर पार्टी के ब्राह्मण प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पडा। उनके पिछले कार्यकाल में पुलिस मुठभेड में ज्यादातर ब्राह्मणों की ही मौतें हुईं। ब्राह्मण विधायकों के क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम विकास हुआ और उनके क्षेत्रों में जानबूझकर ब्राह्मण विरोधी विचारधारा वाले अधिकारियों की पदस्थापना की गई ताकि उन्हें मतदाताओं के मध्य प्रभावहीन नेता के रूप में परिभाषित कराया जा सके। ब्राह्मण जनप्रतिनिधियों के पर कतरने के अनेक उदाहरण आज भी कहे-सुने जा रहे हैं। राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी की मानसिकता से आत्मसात करने वाले ब्रजेश जहां योगी के खास बनते जा रहे हैं वहीं संघ के चहेते केशव प्रसाद मौर्य आज भी मुख्यमंत्री की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। चौराहों से लेकर चौपालों तक होने वाले संवादों में कहा जा रहा है कि योगी ने अपने पिछले कार्यकाल में सम्प्रदायों से लेकर जातियों तक में आंतरिक खाई बढाने का ही काम किया है। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि मोदी के सम्मान से हुई है योगी की पुनरावृत्ति अन्यथा पार्टी की जीत पर आशंकाओं के बादल कब की बरसात कर चुके होते। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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