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बढ़ती महंगाई, आम आदमी व आर्थिकी

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

इन दिनों रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने से वैश्विक जिंस बाजार के अस्त-व्यस्त होने से दुनिया के सभी देशों की तरह भारत में भी महंगाई बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। यद्यपि महंगाई की ऊंचाई अमेरिका, ब्रिटेन, तुर्की, पाकिस्तान आदि अधिकांश देशों में भारत की तुलना में कई गुना अधिक है। लेकिन फिर भी भारत में महंगाई से आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था की मुश्किलें कम करने हेतु नए रणनीतिक प्रयासों की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। गौरतलब है कि अब देश की सरकारी तेल विपणन कंपनियां पेट्रोल और डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि करने की डगर पर आगे बढ़ी है। हाल ही में 22 मार्च को सरकारी तेल विपणन कंपनियों ने जहां पेट्रोल और डीजल के दाम में 80 पैसे प्रति लीटर और घरेलू रसोई गैस सिलिंडर के दाम में 50 रुपए का इजाफा किया, वहीं 23 और 25 मार्च को पेट्रोल-डीजल के दाम में फिर 80-80 पैसे की वृद्धि की गई है।

इसके पहले 21 मार्च को तेल कंपनियों ने थोक खरीददारी के लिए डीजल के दाम में एकबारगी 25 रुपए प्रति लीटर का इजाफा किया था। ज्ञातव्य है कि विधानसभा चुनावों के कारण रिकॉर्ड 137 दिनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतें नहीं बदली गई थीं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का क्रूड बास्केट 4 नवंबर 2021 के 73.47 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 24 मार्च को 121.4 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम भी इस बीच तेजी से बढ़ते रहे और 7 मार्च को 139 डॉलर प्रति बैरल तक चढ़ गए थे। ऐसे में अगले कुछ दिनों में पेट्रोल-डीजल के दाम में किसी बड़ी बढ़ोतरी से इंकार नहीं किया जा सकता है। अब तेल विपणन कंपनियां कच्चे तेल की तेज उछाल के बोझ को अधिक दिनों तक सहन कर सकती हैं। कर ढांचे के आधार पर और कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहने के मद्देनजर डीजल और पेट्रोल की कीमत मौजूदा दर से करीब 19 रुपए तक महंगी हो सकती है। पिछले कुछ समय से देश में खाने के तेल के दाम आसमान पर पहुंचे हुए हैं।

उर्वरक के दाम पहले से ही बढ़े हुए हैं। 14 मार्च को सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर फरवरी में बढ़कर 6.07 फीसदी रही जो इससे पिछले महीने 6.01 फीसदी थी। इसमें बढ़ोतरी मुख्य रूप से खाद्य एवं पेय, परिधान एवं फुटवियर और ईंधन एवं बिजली समूहों में तेजी की वजह से हुई है। देश में खुदरा महंगाई फरवरी में बढ़कर 8 महीनों के सबसे ऊंचे स्तर पर रही है। यह लगातार दूसरे महीने केंद्रीय बैंक के 6 फीसदी के सहजता स्तर की ऊपरी सीमा से अधिक रही है। इसी तरह थोक महंगाई की दर लगातार 11वें महीने दो अंकों में रही है। उद्योग विभाग द्वारा जारी नए आंकड़ों से पता चलता है कि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई दर फरवरी में 13.11 फीसदी रही, जो जनवरी में 12.96 फीसदी थी।

अब पेट्रोल-डीजल और गैस की मूल्य वृद्धि से महंगाई का ग्राफ और बढ़ता हुआ दिखाई देगा और महंगाई से विभिन्न मुश्किलें निर्मित होंगी। निःसंदेह कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से गरीब व मध्यम वर्ग की मुश्किलें बढंेगी तथा आर्थिक पुनरुद्धार को झटका लग सकता है। महंगाई एक छिपे हुए प्रतिगामी कर की तरह है। जब तेल और जिंस की कीमतें बढ़ती हैं तो गरीब व मध्यम वर्ग के साथ आर्थिक वृद्धि प्रभावित होती है। उद्योग-कारोबार का मुनाफा कम होता है, जिसका सीधा असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि पर पड़ता है। चूंकि उद्योग-कारोबार कीमतों का बोझ अंतिम उपभोक्ता पर डालते हैं, अतएव इससे उपभोक्ताओं की खर्च करने वाली आय कम होती है और इसका उपभोक्ता मांग पर असर पड़ता है। महंगाई बढ़ने के साथ ब्याज दरें बढ़ने व कर्जा महंगा होने की आशंका बढ़ती है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से बजट घाटे में वृद्धि होगी। बजट लक्ष्य भी गडबड़ाएंगे। वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट यूक्रेन संकट के पहले तैयार हुआ है।

इसमें कच्चे तेल की कीमतों का झटका शामिल नहीं है। बजट तैयार करते समय कच्चे तेल की कीमत 70-75 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान लगाया गया था। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि इस समय दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में भारत में महंगाई को तेजी से बढ़ने से रोकने में कुछ अनुकूलताएं स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। देश में अच्छी कृषि पैदावार खाद्य पदार्थों की कीमतों के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। भारत के पास मार्च 2022 में करीब 622 अरब डॉलर का विशाल विदेशी मुद्रा भंडार चमकते हुए दिखाई दे रहा है। मौजूदा संकट के बीच भारत के चालू खाते का घाटा काफी कम है।

ऐसे में बढ़ती महंगाई से आम आदमी और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक के द्वारा नई रणनीति के साथ कदम आगे बढ़ाए जाने होंगे। चूंकि कोविड-19 का महंगाई से सीधा संबंध है, अतएव पूर्ण टीकाकरण व बूस्टर खुराक पर पूरा ध्यान जरूरी है। सरकार को बारीकी से आवश्यक चीजों के बढ़ते दाम पर नजर रखनी होगी। कालाबाजारी पर नियंत्रण करना होगा। देश को प्रतिदिन करीब 50 लाख बैरल पेट्रोलियम पदार्थों की जरूरत होती है। चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी आयात करता है, इस आयात का करीब साठ फीसदी हिस्सा खाड़ी देशों मुख्यतया इराक, सऊदी अरब, यूएई आदि से आता है। ऐसे में अब कच्चे तेल के देश में अधिक उत्पादन व कच्चे तेल के विकल्पों पर ध्यान देना होगा। कच्चे तेल के वैश्विक दाम में तेजी के बीच तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम में दिलचस्पी और बढ़ाना होगी।

यद्यपि रूस से भारत का तेल आयात एक प्रतिशत से भी कम है, लेकिन अब रूस से तेल आयात में वृद्धि की जाना लाभप्रद होगी और कच्चे तेल आयात का भुगतान रूबल में किया जाना लाभप्रद हो सकता है। चूंकि मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के अप्रैल से दिसंबर के बीच पेट्रोलियम उत्पादों पर सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क के रूप में सरकार को करीब 24 फीसदी अधिक राजस्व मिला है, अतएव आने वाले महीनों में सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जो ग्राहकों को पेट्रोल-डीजल की महंगाई से बचाए रखें। जिस तरह पिछले वर्ष 2021 में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 100 रुपए प्रति लीटर से अधिक होने पर केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर सीमा व उत्पाद शुल्क में और कई राज्यों ने वैट में कमी की थी, वैसे ही कदम अब फिर जरूरी दिखाई दे रहे हैं। सरकार कच्चे तेल की कीमतों में हो रही वृद्धि को रोकने के लिए सामरिक सुरक्षित भंडार से कच्चा तेल जारी करने पर भी विचार कर सकती है। अब भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा महंगाई से लड़ने हेतु वृद्धि दर को बढ़ावा देना जारी रखना होगा। विनिमय दर में स्थिरता लाने की दिशा में भी काम करना होगा। साथ ही अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को पर्याप्त तरलता सुनिश्चित करनी होगी। देश के करोड़ों किसानों के द्वारा अच्छे कृषि उत्पादन और करोड़ों श्रमिकों के द्वारा अधिकतम औद्योगिक उत्पादन के लिए अधिक प्रयास करना होंगे। ऐसे विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से महंगाई को नियंत्रित रखा जा सकेगा।

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