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नई जल नीति भौगोलिक नियोजन के आधार पर बने

-मुकेश तिवारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

बेहतर कल के लिए राष्ट्रीय जल नीति जो 2012 में लाई गई थी कन्वेंशन जल के उपयोग, क्षमता और उसके संरक्षण पर आधारित थी। यह वर्तमान चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, नगरों में पेयजल संकट, गंगा की सफाई और जल के फिर से उपयोग आदि से अछूती रही है अत वक्त आ गया है कि हम जल के विभिन्न भौगोलिक आयामों तथा नियोज नों पर आधारित एक समेकित नीति लाए। जल, खाद, ऊर्जा तथा मानव स्वास्थ्य को इकट्ठा कर रखने वाला तत्व है। हिंदुस्तान में पर्याप्त जल है, यदि हम विश्व के संदर्भ में देखें तो यहां18 फ़ीसदी मानव जनसंख्या है जो 2.4 फ़ीसदी भौगोलिक क्षेत्रफल पर है मगर विश्व का मात्र 4% जल हिंदुस्तान में उपलब्ध है। हमें जल नीति में इस बात को ध्यान रखना पड़ेगा।
100 रेनी डे आधारित जल नीति
हिंदुस्तान में तकरीबन 60 फ़ीसदी
क्षेत्र वर्षा पर आधारित है। जहां कृषि मानसून पर निर्भरहै हिंदुस्तान में चार मुख्य फसल 48 फ़ीसदी जी डीपी में भागीदारी निभाती है। सर्वप्रथम हमें हिंदुस्तान में 100 रेनी डे पर आधारित जल नीति तैयार करनी होगी क्योंकि हिंदुस्तान में अधिकांश वर्षा इसी 100 दिन में होती है। जल नीति बनाते वक्त हमें खास तौर से ध्यान रखना होगा कि जल भौगोलिक सीमा का अनुकरण करता है। न कि राजनीतिक सीमा का, इसलिए वर्षा जल को 100 र्वर्षा के दिनों में संग्रहित करने वाटर शेड मैनेजमेंट (जिसमें 130 मिलियन हेक्टर की संभावना है)’ पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अभी तक 40 _50 मिलियन हेक्टर वाटर शेड एरिया का ही उपयोग सरकार कर सकी है। दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता कम होती जा रही है 1951 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 517 7 क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष थी। जो अब घटकर 1400 के आसपास रह गई हैएक अनुमान के अनुसार 2050 में यह 11 40 क्यूबिक मीटर पहुंच जाएगी। विश्व के 70 फ़ीसदी हिस्से जिसके अंतर्गत हिंदुस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा है। 2025 तक वॉटर स्ट्री स् की श्रेणी में आ जाएगा इसकी झलक अभी हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में उत्पन्न हुए जल संकट में देखी जा सकती है। इसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, आदि इलाके आएंगे। यदि हम वार्षिक वर्षा के अनुमान 4000 क्यूबिक किलोमीटर से तुलना करें तो जो पानी अभी उपयोग हो रहा है वह 1123 क्यूबिक किलोमीटर ही है हिंदुस्तान में वर्षा की विभिन्नता पर ध्यान देना जरूरी है। पश्चिमी घाट में अधिक बारिश होती है पूर्वी समुद्री क्षेत्र में भी अधिक बारिश हैलेकिन तमिलनाडु केंद्रीय शैडो एरिया में आता है। इस वजह से यहां अल्प वर्षा होती है हिंदुस्तान के केंद्र में मध्यम वर्षा होती है। जबकि पूर्वी भाग में काफी अधिक। पश्चिम में राजस्थान में बारिश की मात्रा बहुत कम होती है। हमें 12 मुख्य नदियों बेसिन तथा 46 मध्य नदी बेसिन का समेकित संदर्भ में प्रबंधन करना होगा। जिससे 1208 किलोमीटर वार्षिकवर्षा का समुचित उपयोग किया जा सके करीब 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर वार्षिक औसत वर्षा में मानसून के दिनों की बारिश करीब 3000 बिलियन क्यूबिक मीटर है। पेयजल हमारी मुख्य समस्या बन गई है। तकरीबन 23 फ़ीसदी टप वाटर कुआं 20 फ़ीसदी हेड पंप 47 फ़ीसदी नदी जल सिस्टम के भौगोलिक क्षेत्र तथा औसत वार्षिक जल की संभावना आदि को ध्यान में रखकर हमें उपयोग में लाने
योग्य स्थली जल संसाधन का नियोजन करना होगा। उसके अनुसार सबसे अधिक गंगा बेसिन, इसके बाद गोदावरी, कृष्णा, महानदी और सिंध क्षेत्र आते हैं हिंदुस्तान के औसत 54 फ़ीसदी भूमिगत जल का कम होना तय है।
एक अनुमान के अनुसार हिंदुस्तान में तकरीबन 100 मिलियन लोग खराब जल वाले क्षेत्र में रहते हैं। राष्ट्रीय जल नीति में हमें गौर करना होगा कि करीब 80 फ़ीसदी स्थ लिए
जल और 60फ़ीसदी भूमिगत जल कृषि क्षेत्र में उपयोग होता है अतः हमारी कृषि की उत्पादकता और देश की खाद्य सुरक्षा जल पर आधारित है। यह जनसंख्या वृद्धि के साथ- बढ़ता जाता है दूसरी ओर वर्षा की किल्लत तथा अधिकतम होना हिंदुस्तान में प्राकृतिक आपदा का कारण बन जाता है। तकरीबन 70 फ़ीसदी हिंदुस्तान का भूभाग सूखा पीड़ित है। 5%( 40 मिलियन क्टरक्टर बाढ़ से पीड़ित होता है। 8% भूभाग जो 8000 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है। चक्रवात से प्रभावित होता है। तकरीबन सभी तालाबों और नदियों में सीवरेज का गंदा पानी गिरने से प्रदूषित है। भूमिगत जल का विघटन रिचार्ज की अपेक्षा तेजी से कम हो रहा है। यह सब हिंदुस्तान में प्राकृतिक आपदा के प्रमुख कारण है। जलभराव, जल सुरक्षा, जल उत्पादकता, जल सुशासन, वर्चुअल जल तथा वॉटर फुटप्रिंट और खरा नीला जल हमारी जल नीति के मुख्य अंग होने चाहिए।
वर्षा पर निर्भरता कम करनी होगी
हमें बरसा आधारित कृषि पर निर्भरता कम करनी होगी इसके लिए भौगोलिक टाइपोग्राफिक पर आधारित चल संगठित क्षेत्र बनाने होंगे इजराइल के पेटेंट पर जल की क्षति को कम करने के लिए की स्पेलिंग सिंचाई पद्धति अपनानी होगी जल की उपलब्धता के आधार पर फसल प्रतिरूप लाने होंगे जैसे अधिक जल क्षेत्रों में धान आदि लगाई जा सकती है जल प्रदूषण के लिए थर्मल पावर प्लांट कसूरवार हैं उनका समाधान भी नीति का भाग होना चाहिए भूमिगत जल को उपयोग करने के लिए स्पेसिफिक कौन सी होनी चाहिए पेयजल के लिए मीटर लगाना बहुत सारे क्षेत्रों में उपयोग किए गए जल को पुनः उपयोग किया जा सकता है कंसेप्ट और ऑफ इकोलॉजिकल सैनिटेशन या मनुष्य तथा पशुओं के मूर्ख आगे को होम गार्डन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है की तरफ ध्यान देना होगा जल समस्या रीजन है जैसे गुजरात, कर्नाटक, मराठवाडा राजस्थान, दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश में स्थित बुंदेलखंड क्षेत्र हैदराबाद, हिमाचल प्रदेश, आदि उपचार की सहूलियत जो है मगर काम नहीं करती इसके चलते तमाम सारी नदियों का पानी पुलिस होता है कुछ इलाकों में समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए लगाए गए हैं इस तरह ध्यान देकर तथा क्षेत्र की समस्या हल की जा सकती है रेन वाटर हार्वेस्टिंग और भूमिगत जल का कृत्रिम रूप से रिचार्ज पंचायत तथा प्रत्येक गांव का कर्तव्य होना चाहिए नमामि गंगे परियोजना को स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ने के साथ-साथ पर्यटन जलमार्ग उपयोग मछली पालन, सब्जी उत्पादन, गरीबों के जीवन यापन के साधनों को मिलाना होगा नदी बेसिन को प्रदेशिक विकास के साथ जुड़ना आवश्यक हो गया है हमें दक्षिण कोरिया तथा चीन के कुछ क्षेत्रों में असफलताओं को सामने रखकर जल नीति बनानी होगी जल नीति बनाते वक्त देश में प्रचलित परंपरागत तथा सांस्कृतिक सामुदायिक जल प्रबंधन को भी ध्यान में रखना होगा।

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