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“सत्य ही शिव है” वह कभी पराजित नहीं होता_

-विनोद कुमार सर्वोदय-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

“ज्ञानवापी मंदिर को मस्जिद बनाने वाले लुटेरों का अत्याचार कब तक हमें टीस देता रहेगा?” यह अनुत्तरित प्रश्न लगभग 350 वर्षो से करोड़ों-करोड़ों शिवभक्तों को उद्वेलित किए हुए था। अतः हिन्दुओं में अपने गौरवांवित इतिहास को जानने की उत्सुकता बलवती हुई और अपने नष्ट हुए स्वाभिमान को पुनः स्थापित करने की चाहत जगी। उसी परिप्रेक्ष में ज्ञानवापी परिसर में महादेव की मुक्ति के संघर्ष के लिए समर्पित हमारे वरिष्ठ एवं विद्वान अधिवक्ताओं के वर्षो से किए जा रहे अथक परिश्रम को गति मिली। परिणामस्वरूप माननीय न्यायालय के आदेशानुसार ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वेक्षण से अब यह सत्य सामने आ गया है कि सैकड़ों वर्षो से शिवभक्तों को किस प्रकार सत्य से छुपाया गया और उन्हें उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहा। आज जब ज्ञानवापी मंदिर का सत्य प्रमाणित हो रहा है तो यह अवश्य ही “धर्म की जय और अधर्म की पराजय” का परिचायक बन गया हैं।

काशी-विश्वनाथ मंदिर पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण भारत और भारतीयता पर एक कलंक था। यह वास्तव में मुगल आतताईयों की कुफ्र के लिए भारतभक्त हिन्दुओं के मान मर्दन और उत्पीड़न की सैकड़ों वर्षो से चली आ रही श्रंखला का एक और स्पष्ट प्रमाण है। मंदिर तोड़ कर बल पूर्वक मस्जिद बनाने के कुकृत्यों से वहां रहने वाले हिन्दुओं के ह्रदयों की पीड़ा को गंगा-जमुनी संस्कृति के भ्रमित कथनों से कैसे दूर किया जा सकता था और है?

यह कितना अपमानजनक और घृणित कृत्य है कि मुस्लिम समाज वर्षो से हमारे आस्था बिंदु शिवलिंग पर अपने हाथ पैर धोकर वजू करता आ रहा था और हैं? क्या हिन्दुओं में ऐसे अत्याचारियों के विरुद्ध कभी कोई आक्रोश जगेगा? यह स्पष्ट है कि जेहादियों ने हिंसा के बल पर काफ़िर और कुफ्र को मिटाने के लिए हर संभव अत्याचार किए थे, वही दादागिरी और गुंडागर्दी आज भी इनकी नस नाडिय़ों और हड्डियों में रची बसी हुई है। तभी मुस्लिम भड़काऊ नेता बार-बार प्रमाणित सच को झूठ बता कर अपने समुदाय की भीड़ को भड़का कर अराजकता और लूटमार के सहारे देश का वातावरण बिगाड़ने का दुस्साहस कर रहे है। क्या सिरफिरे जेहादियों/तालिबानियों को तथ्यात्मक और न्यायिक पराजय स्वीकार नहीं या कभी हारना नहीं चाहते और आतंक के बल पर अपने को ही सही ठहराना चाहते हैं? यह कैसी विडंबना है कि जहां बुद्धिमान समाज प्रमाणित सच को भी स्वीकार करने के लिए फूंक-फूंक कर आगे बढ़ता है, वहीं मूर्खों के समान जेहादियों की भीड़ आत्मविश्वास से भरपूर होकर सच को भी झूठा बना देने के लिए भिडने के लिए तत्पर है। जिस प्रकार पिछले दिनों दिल्ली स्थित शाहीनबाग और जहांगीरपूरी में हुए मुस्लिम भीड़ प्रशासन के निर्णयों का विरोध करते हुए सुरक्षा बलों पर ही आक्रामक हो गई थी। वहीं 2019–2020 में ‘नागरिक संशोधन अधिनियम’ (सीएए) के विरुद्ध शाहीनबाग में मुस्लिम घुसपैठियों और इनको बसाने वाले जेहादियों के बल पर 101 दिन चला राष्ट्र विरोधी आक्रामक आंदोलन भी भीड़ को भड़का कर आतंक फैलाने का बड़ा प्रमाण था। अब विचार करने वाला बिंदु यह है कि कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने (अब जब मंदिरों पर हुए अत्याचारों का सच सामने आने लगा है तो) कहा है कि मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाते हुए काशी और मथुरा की विवादित मस्जिदों को हिन्दुओं को सौप देने चाहिए। ये मुस्लिम बुद्धिजीवी यह क्यों नहीं कहते कि भारत में बनी मुगलकालीन लगभग समस्त मस्जिदें मन्दिरों को ध्वस्त करके ही बनवाई गई थी?

जब यह एतिहासिक सच सामने आ ही गया है तो उन सभी मस्जिदों का जिनमें मंदिर-मठ आदि हिन्दू धार्मिक स्थल थे, को अब हिन्दुओं को सौपना ही चाहिए? जबकि इस्लाम में किसी भी काफ़िर के धार्मिक स्थलों पर मस्जिद आदि बनाने को सर्वथा अशुद्ध माना गया है। इस्लाम में ऐसे स्थानों पर नमाज़ अदा करना सर्वथा पाप है, तो क्या वहां इस वास्तविकता को समझते हुए भी मुस्लिम नेता केवल हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अपमानित करने लिए भोले-भाले मुसलमानों को भड़काने में लगे हुए हैं। ऐसे में उन लाखों करोड़ों मुसलमान जो सदियों से ज्ञानवापी एवं हमारे अन्य धर्म स्थलों पर नमाज़ अदा करते आ रहे थे और हैं,को क्या इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार अब काफ़िर नहीं माना जाएगा?

मानवतावादी समाज में अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करना सर्वथा न्यायपूर्ण कृत्य है। हिन्दुओं को काफ़िर मानने वाले जेहादियों ने कुफ्र को मिटाने के लिये हिंसा के बल पर मन्दिरों पर मस्जिदें बनवाई थी तो उन्हें पुनः न्यायिक रूप से प्राप्त करना क्या हिन्दुओं का मौलिक एवं संविधानिक अधिकार नहीं है? इसमें यह कहना कि मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए अपने आपको अपराध मुक्त करने के समान है। हाँ, यदि मुसलमानों को वास्तव में बड़ा दिल दिखाना है तो उन्हें घर वापसी करते हुए अपने पूर्वजों की संस्कृति को अपना कर भूल सुधारने का साहस अवश्य करना चाहिए। वैसे भी यदि भारत के धर्मांतरित मुसलमान सनातनी बनेंगे तो उनके पूर्वजों पर हुए मुग़लों के अत्याचारों के प्रतिशोध की अग्नि को भी शीतलता मिलेगी। परंतु यदि इनको इस्लाम से इतना ही अधिक प्रेम है तो उन्हें भारत के अपने हिस्से के उस भाग (पाकिस्तान) में चले जाना चाहिए जो उन्होंने स्वयं 1947 में मांगा था और लाखों निर्दोषों का रक्तपात करके पाया था।

इतिहास का अर्थ होता है कि ऐसा हुआ था और जो हो चुका उसे बदला नहीं जा सकता, वस्तुतः इतिहास भूतकालीन सत्य है। अपने अनुसार इतिहास को बदलने का भरसक दुस्साहस भी केवल झूठी रद्दी के समान है क्योंकि सत्य को बारम्बार प्रकट होने से कौन रोक सकता है? स्मरण रहें कि सत्य ही शिव है और सत्य को असत्य से न तो छिपाया जा सकता है, न मिटाया जा सकता और न ही पराजित किया जा सकता। इसलिए इस्लामिक अत्याचारों से भरे इतिहास का देशव्यापी प्रचार और प्रसार करके ऐसी असंख्य राष्ट्रीय वेदनाओं से आने वाली पीढ़ियों को परिचित कराना होगा। जिससे वे भारत की गौरवशाली संस्कृति और संस्कारों की रक्षा के लिये भविष्य में और अधिक सक्रिय हो कर राष्ट्र के प्रति अपने-अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकें।

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