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नाबालिग विवाहित मुस्लिम लड़की को आश्रय गृह में रखने के खिलाफ याचिका पर होगी सुनवाई

नई दिल्ली, 10 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। उच्चतम न्यायालय उस याचिका पर विचार करने के लिये सहमत हो गया है जिसमें एक नाबालिग मुस्लिम विवाहित लड़की को उप्र के आश्रय गृह में रहने को कहने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है। उच्च न्यायालय ने इस लड़की के विवाह को शून्य घोषित कर दिया है। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ उच्च न्यायालय के जुलाई के आदेश के खिलाफ इस लड़की की अपील पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने लड़की की दलीलों को सुनने के बाद इस पर विचार के लिये सहमति व्यक्त करते हुये उप्र सरकार को नोटिस जारी किया है। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार यह लड़की 16 साल की है और उसने अयोध्या की निचली अदालत द्वारा उसे आश्रय गृह भेजने के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका उच्च न्यायालय में खारिज होने के बाद यह अपील दायर की है। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ इस लड़की की याचिका खारिज करते हुये टिप्पणी की थी कि चूंकि वह ‘नाबालिग’ है, इसलिए उसके मामले की सुनवाई किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) कानून, 2015 के अनुसार की जायेगी। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि चूंकि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती है, इसलिए उसे आश्रय गृह भेजने का निचली अदालत का आदेश सही है। इस लड़की ने अपनी याचिका में कहा है कि मुस्लिम कानून के तहत लड़की के रजस्वला की आयु, जो 15 वर्ष है, के होने पर वह अपनी जिंदगी के बारे में निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र है और अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने में सक्षम है। इस लड़की ने अपने वकील दुष्यंत पाराशर के माध्यम से दायर याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय इस तथ्य की सराहना करने में विफल रहा कि उसका निकाह मुस्लिम कानून के अनुसार हुआ है। याचिका में लड़की ने अपने जीने और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने का अनुरोध करते हुये दलील दी है कि वह एक युवक से प्रेम करती है और इस साल जून में मुस्लिम कानून के अनुसार उनका निकाह हो चुका है। लड़की के पिता ने पुलिस में दर्ज करायी गयी शिकायत में एक युवक और उसके सहयोगियों ने उसकी बेटी का अपहरण कर लिया है। इसके बाद, इस लड़की ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराये गये अपने बयान में कहा है कि उसने एक व्यक्ति से अपनी मर्जी से शादी की है और वह उसके ही साथ रहना चाहती है। निचली अदालत ने लड़की को आश्रय गृह भेजने का निर्देश देते हुये कहा था कि उसे 18 बरस की होने तक वहीं रखा जाये। इस लड़की ने शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुये कहा है कि उसे अपने पति के साथ ही वैवाहिक जिंदगी गुजारने की अनुमति दी जाये। याचिका में कहा गया है कि इस लड़की को उच्चतम न्यायालय में अपील लंबित होने के दौरान आश्रय गृह से मुक्त किया जाये।

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