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‘आप’ का चुनावी नश्तर

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

दो महीने की पंजाब सरकार की अंटी से निकला भ्रष्टाचार का खत और जहां स्वास्थ्य मंत्री विजय सांगला को होना पड़ रुखसत। एक मंत्री को हटाकर आम आदमी पार्टी अपनी मर्यादा का शंखनाद कर सकती है, लेकिन इस दाग की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। मामला इतना सरल भी नहीं कि ‘आप’ की त्वरित कार्रवाई से आम और खास दहल जाएं या राजनीति इतनी भी पवित्र नहीं कि ईमानदारी के लेप से वर्तमान स्थिति में कोई चुनाव हो जाए। दरअसल पंजाब के बहाने ‘आप’ दो चुनावों को साध रही है। ‘नो करप्शन’ का कार्ड इससे पहले दिल्ली में आते ही अपने खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री को हटा कर खोला था और अब भगवंत मान की तलवार भांज कर पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री को चलता किया है। एक तपके के लिए यह असाधारण आचरण हो सकता है, लेकिन जो वर्तमान में सरकारी तंत्र से ‘डील’ करते हैं, उन्हें बाखूबी मालूम है कि देश की सरकारी कार्य संस्कृति से जूझना साफ हाथों से मुनासिब नहीं। कमीशन खोरी का प्रचलन भले ही अदृश्य बना रहे, लेकिन सरकारी कामकाज की डोर इतनी भी आसान नहीं कि बिना अंगुली पकड़े हो जाए या अनुमति मिलने से पहले अंगुली दिखाई न जाए।
बहरहाल देखना यह होगा कि अपने मंत्री का शिकार करके ‘आप’ भ्रष्टाचार के खिलाफ ढिंढोरची बनकर हिमाचल की जंग में आगे बढ़ जाएगी या हिमाचली परिदृश्य आशावादी बनकर आम आदमी पार्टी का इस्तकबाल कर देगा। यह इसलिए भी कि अन्ना आंदोलन से अस्तित्व में आई ‘आम आदमी पार्टी’ जिस लोकपाल विधेयक के प्रति कटिबद्ध थी, वह क्रांति हमारे सामने नागरिक को यह उपहार तो दे नहीं पाई, बल्कि वैकल्पिक विचारधारा देने के बजाय हम इस पार्टी को भी चुनावी मशीन में परिवर्तित होते हुए देख सकते हैं। यह दीगर है कि अपने अगले कदमों की खातिर उसी पृष्ठभूमि को भ्रष्टाचार के खिलाफ इस्तेमाल करना जरूर चाहती है। यह केजरीवाल ब्रांड को लहराने का साज है, जिसे हिमाचल के पड़ोस में जोर से बजाया जा रहा है। इसमें दो राय नहीं कि ‘आप’ ने पानी, बिजली और स्कूलों के नाम पर एक दिल्ली ब्रांड बनाया और उसे भुनाते हुए हिमाचल पहुंच रही है। कुछ समय पूर्व दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया स्कूलों के नाम पर हिमाचल में शिक्षा की कड़छी घुमा गए हैं, लेकिन प्रदेश की स्थिति में मीन मेख निकालना मुश्किल होगा। न केवल शिक्षा, बल्कि बिजली और चिकित्सा में भी हिमाचल की सियासी नुक्ताचीनी बेमानी साबित हो रही है। ऐसे में आप ने अब भ्रष्टाचार के खिलाफ नश्तर चुन कर यह संदेश देना शुरू किया है कि पार्टी सत्ता में आकर अपने मंत्रियों तक को नहीं बख्शती है।
दिल्ली के बाद पंजाब में अपने ही मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करते हुए ‘आप’ ने समाज की दुखती रग पर हाथ तो रखा है ही, लेकिन यह मान लेना कि केवल एक पार्टी सब कुछ बदल देगी केवल भ्रम ही होगा। यह इसलिए भी कि कोई भी विभाग लें या पंचायती राज संस्थाओं का मूल्यांकन करें तो मालूम हो जाएगा कि निचले स्तर तक भ्रष्टाचार किस तरह समाज से घुलमिल गया है। हिमाचल की व्यवस्था में भ्रष्टाचार को देखने के लिए खास पुतलियों की जरूरत नहीं, फिर भी ‘आप’ के नए प्रदर्शन से यह मुद्दा कैसे अंगड़ाई लेता है, देखना होगा। हिमाचल में भ्रष्टाचार को लेकर राजनीतिक छवि में सभी पक्षों को एक ही सूरत में देखते-देखते कई चुनाव गुजर गए, लेकिन हर बार विकास के स्तंभ नए भागीदार पैदा कर देते हैं। यही वजह है कि प्रत्येक चुनाव ऐसे हथियार लेकर आता है और जिसकी जद में अधिकांश मंत्री चित हो जाते हैं, तो कहा जा सकता है कि जनता को नए चेहरों की तलाश सदा रहती है। नए चेहरे और नई पार्टी की तलाश क्या एक सरीखी हो सकती है। इस प्रश्न को साधने की फितरत में आम आदमी पार्टी ने अपनी बिसात में घर का वजीर उड़ा कर यह संदेश देने की बुनियाद रखी है कि उनकी सत्ता की इमारत भ्रष्टाचार से उन्मुक्त रहेगी। यह दीगर है कि हिमाचल पार्टियों के बजाय नजदीकी जनप्रतिनिधियों को ऐसे तराजू में तौल कर शिकस्त देता रहा है।

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