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किसानों की आय बढऩे का परिदृश्य

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

यकीनन पिछले कई दशकों से भारतीय किसानों के बारे में यह कहा जाता रहा है कि वे कर्ज में जन्म लेते हैं, कर्ज में पलते हैं और कर्ज में ही मृत्यु को प्राप्त करते हैं। लेकिन अब यह स्थिति तेजी से बदलती हुई दिखाई दे रही है। इस परिप्रेक्ष्य में इन दिनों पूरे देश में हाल ही में प्रकाशित भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक शोध विभाग की अध्ययन रिपोर्ट और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। गौरतलब है कि एसबीआई की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि देश में किसानों की आय तेजी से बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां वित्त वर्ष 2017-18 से 2021-22 के चार वर्षों के बीच किसानों की औसत आमदनी 1.3 से 1.7 गुना तक बढ़ी है, वहीं इसी अवधि के बीच कुछ राज्यों में कुछ फसलों से किसानों की आमदनी में दोगुना तक इजाफा हुआ है। जैसे महाराष्ट्र में सोयाबीन किसानों की औसत आय 1.89 लाख रुपए से बढ़ कर 3.8 लाख रुपए (दो गुनी) और कर्नाटक के कपास किसानों की औसत आय 2.6 लाख रुपए से बढ़ कर 5.63 लाख रुपए (2.1 गुना) हो गई है। उल्लेखनीय है कि बड़े, छोटे और सीमांत सभी तरह के किसानों की कृषिगत स्थिति और आमदनी पर आधारित स्टेट बैंक की इस अध्ययन रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कृषि से संबद्ध तथा गैर कृषि गतिविधियों ने भी किसानों की आमदनी को बढ़ाने में मदद की है।

पिछले चार वर्षों में इन स्रोतों से हासिल होने वाला प्रतिफल 1.4 से 1.8 गुना तक बढ़ा है। यह बात राष्ट्रीय नमूना सर्वे के 77वें दौर के निष्कर्षों से भी मेल खाती है, जिसमें कहा गया है कि हाल ही के वर्षों में खेती से होने वाली आय के स्रोतों में काफी विविधता आई है और किसानों की आमदनी के स्त्रोत केवल फसली खेती और पशुपालन तक सीमित नहीं हैं। खासतौर पर जो किसान नगदी फसल लेते हैं उनकी आय परंपरागत अनाज उपजाने वाले किसानों की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ी है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बाजार से जुड़े मूल्य के करीब पहुंच गया है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य मिल रहा है। इसी प्रकार आईसीएआर के द्वारा देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 75000 किसान परिवारों के केस अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक देश के विभिन्न राज्यों में किसानों की आमदनी बढ़ी है, लेकिन विभिन्न राज्यों में कृषि से होने वाली आय में वृद्धि दर में काफी अंतर है । यह लद्दाख में 125 फीसदी बढ़ी है, वहीं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 270 प्रतिशत तक बढ़ी है। उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और पुदुच्चेरी जैसे राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में किसानों की आय 200 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है। अधिकांश अन्य राज्यों में भी यह वृद्धि 150 से 200 प्रतिशत के बीच रही है। आईसीएआर की रिपोर्ट में यह बात भी उभरकर सामने आई है कि किसानों की आमदनी वृद्धि में किसानों के द्वारा अपनाई गई नई कृषि तकनीकों तथा कृषि संबंधी नवाचार व शोध का योगदान महत्त्वपूर्ण है। नि:संदेह इस समय किसानों की आमदनी में सुधार के लिए कई महत्त्वपूर्ण आधार उभरकर दिखाई दे रहे हैं।

जन-धन योजना के माध्यम से छोटे किसानों और ग्रामीण गरीबों का सशक्तिकरण हुआ है। विगत 31 मई को गरीब कल्याण सम्मेलन कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 10 करोड़ से अधिक लाभार्थी किसान परिवारों को 21000 करोड़ रुपए से अधिक की सम्मान निधि राशि उनके बैंक खातों में ट्रांसफर कर की गई। इस किस्त के साथ ही केंद्र सरकार अब तक सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की रकम ट्रांसफर कर चुकी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक किसानों की तपस्या, किसान कल्याण एवं कृषि विकास के लिए अनेक अभिनव पहल के रूप में योजनाओं एवं कार्यक्रमों के सफल क्रियान्यवन, सरकार के द्वारा पिछले आठ वर्षों में कृषि बजट में करीब छह गुना वृद्धि, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगातार बेहतर वृद्धि, कृषि स्टार्टअप, कृषि क्षेत्र में ड्रोन का प्रयोग, कृषि शोध और कृषि के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से देश में कृषि एवं किसानों की दशा और दिशा दोनों में आर्थिक बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। कृषि मंत्री श्री तोमर के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने करीब 2.1 करोड़ टन चावल और करीब 70 लाख टन से अधिक गेहूं का निर्यात किया है। पिछले वित्त वर्ष में पहली बार 50 अरब डॉलर से ज्यादा का कृषि निर्यात हुआ। इससे जहां किसानों की आमदनी बढ़ी है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में विदेशी मुद्रा की कमाई से नई समृद्धि बढ़ी है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि किसानों के सशक्तिकरण और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में अब ग्रामीण स्वामित्व योजना मील का पत्थर बनते हुए दिखाई दे रही है। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा अक्तूबर 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते लागू की गई स्वामित्व योजना जैसी ही मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना के तहत हरदा के मसनगांव और भाट परेटिया गांवों के किसानों को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में 1554 भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे सौंपे गए थे। पिछले 14 वर्षों में इन दोनों गांवों का आर्थिक कायाकल्प हो गया है। दोनों गांवों के ग्रामीणों के पास उनकी जमीन का मालिकाना हक आ जाने से वे सरलतापूर्वक संस्थागत ऋण प्राप्त करने लगे हैं, वे स्वरोजगार तथा ग्रामीण उद्योगों की तरफ आगे बढ़े हैं, उनकी गैर कृषि आय बढऩे से आर्थिक रूप से अधिक सशक्त हुए हैं। ऐसे में पूरे देश के गांवों में स्वामित्व योजना के विस्तार से गांवों के विकास और किसानों की अधिक आमदनी का नया अध्याय लिखा जा रहा है।

निश्चित रूप से किसानों की आमदनी बढऩे के मद्देनजर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। लेकिन इस रिपोर्ट में कृषि विकास और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उन्हें कार्यान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढ़ाया जाना होगा। चूंकि किसान अभी भी फसल बढ़ाने वाले कच्चे माल के लिए कर्ज पर काफी हद तक निर्भर हैं और किसान क्रेडिट कार्ड की शुरुआत के बावजूद यह कर्ज आसानी से उपलब्ध नहीं है। ऐसे में इस कार्ड को ‘आजीविका क्रेडिट कार्ड’ में बदल दिया जाना उपयुक्त होगा। इससे किसानों को ऐसे साहूकारों के चंगुल से निकालने में मदद भी मिलेगी जो अभी भी किसानों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा हथिया लेते हैं। चूंकि सरकार की कृषि मूल्य नीतियां अभी भी कृषि आय को निर्धारित करने वाला प्रमुख कारक हैं, ऐसे में अब इन नीतियों का लक्ष्य उत्पाद बढ़ाने के बजाय आय बढ़ाना किया जाना उपयुक्त होगा। एमएस स्वामिनाथन की अध्यक्षता वाले नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स ने भी इस सुझाव को आगे बढ़ाया है। इससे जहां कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाला नया अध्याय लिखा जा सकेगा, वहीं आगामी दो-तीन वर्षों में किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को भी अवश्य ही मुठ्ठी में लिया जा सकेगा।

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