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निजता और कॉल रिकॉर्डिंग

-डा. वरिंदर भाटिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

निजता की आजादी में दखलंदाजी के किस्से लगातार सामने आ रहे हैं। बीते दशक भर से, भारत का सुप्रीम कोर्ट व्यक्तियों की नागरिक स्वतंत्रता के बारे में बहुत मुखर रहा है और वह व्यक्तिगत अधिकारों को सामुदायिक अधिकारों के समान मानता रहा है। सेल्वी, अरुणा शानबाग, पुट्टास्वामी (निजता का अधिकार) और जैकब पुलियेल के फैसले के दौरान भारतीय अदालतों ने अधिकारों के अर्थ को फिर से परिभाषित किया है। राज्य द्वारा प्रतिबंधों पर फैसला सुनाते हुए इन अदालतों ने निजता के अधिकार और शारीरिक अखंडता को सार्वजनिक भलाई या सामुदायिक अधिकारों के साथ संतुलित किया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निजता के अधिकार में ‘भूल जाने का अधिकार’ और ‘अकेले रहने का अधिकार’ भी शामिल है। निजता के अधिकार के बारे में पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (वर्ष 2017) मामले में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था। निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन का अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग तीन द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भूलने के अधिकार को निजता के अधिकार के एक पहलू के रूप में स्वीकार किया है। शीर्ष अदालत ने यौन अपराध के एक मामले में सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के व्यक्तिगत विवरण को छिपाने का आदेश दिया। दरअसल एक केस में यौन अपराध की शिकार महिला ने सुप्रीम कोर्ट से निजी विवरण छिपाने की मांग की थी। उसने कहा था कि मुकदमे से जुड़ा विवरण सार्वजनिक होने पर उसे शर्मिंदगी और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा।

कुछ महीने पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी बिना अनुमति पत्नी की कॉल रिकॉर्ड करने को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया था। कोर्ट ने कॉल रिकॉर्ड करने वाले पति को फटकार भी लगाई। वहीं कॉल रिकॉर्ड को सबूत के तौर पर स्वीकार करने के आदेश को भी खारिज कर दिया। आखिर हम जानें कि निजता का अधिकार क्या होता है। निजता के अधिकार को राइट टू प्राइवेसी भी कहते हैं। यहां निजता या प्राइवेसी का सीधा मतलब है अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में किसी अन्य का दखल न होगा। यह हर व्यक्ति को संविधान की तरफ से अधिकार मिला हुआ है। इसके मुताबिक आपकी या हमारी जिंदगी में कुछ प्राइवेसी है, उसमें कोई और अन्य दखल नहीं दे सकता। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है, किसी व्यक्ति को उसकी जिंदगी और व्यक्तिगत आजादी से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ हुआ कि निजता का अधिकार कभी भी अकेले नहीं आता, बल्कि यह जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को एक साथ लेकर आता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जीने का अधिकार, निजता का अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार अलग-अलग नहीं बल्कि यह एक के साथ परस्पर जुड़े हुए हैं। निजता के अधिकार को लेकर बहस तब तेज़ हुई जब सरकार ने आधार कार्ड को ज्यादातर सुविधाओं के लिए ज़रूरी बनाना शुरू कर दिया। आधार को क़ानूनी तौर पर लागू करने की कोशिश कर रही केंद्र सरकार के वकीलों ने कोर्ट में निजता के अधिकार की मौलिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए।

सुप्रीम कोर्ट में 2015 में सरकारी वकीलों की तरफ से तर्क दिया गया कि ये हो सकता है कि आधार लोगों की निजता में दखल देता हो, लेकिन क्या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। सरकार का तर्क था कि इसके बारे में कभी भी अदालत ने कोई फैसला नहीं दिया और संविधान में भी इसके बारे में स्पष्ट कुछ लिखा नहीं है। निजता के अधिकार में क्या-क्या आता है? निजता के अधिकार में किसी व्यक्ति की पसंद को सम्मान देना, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, शादी करने का फैसला और बच्चे पैदा करने का निर्णय शामिल है। निजता का अधिकार किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा करता है और उसके जीने की आजादी को खुद से तय करने का अधिकार देता है। इस निजी स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत किसी भी नागरिक को इस बात की स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है कि केवल वह यदि चाहे तो ही केवल उसकी निजी जानकारी किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के पास जाएगी अन्यथा नहीं जाएगी। निजी स्वतंत्रता का अधिकार इस बात की भी स्वतंत्रता देता है कि एक व्यक्ति यह स्वयं तय कर सकता है कि क्या राज्य उस व्यक्ति की निजी जि़ंदगी के विषय में जान सकता है। यदि वह व्यक्ति राज्य को इस बात की अनुमति प्रदान नहीं करता है तो राज्य की कोई भी अथॉरिटी उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित नहीं कर सकती है। और यदि कोई व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित करती है तो वह व्यक्ति बिना किसी परेशानी के सीधे माननीय सर्वोच्छ न्यायालय में अपने निजी स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए अपील कर सकता है। इस अधिकार के अनुसार कोई व्यक्ति जो जानकारी केवल अपने तक ही सीमित रखना चाहता है, वह केवल उसके ही पास रहेगी, किसी और व्यक्ति या संस्था के पास उस व्यक्ति की उस जानकारी को जानने का किसी प्रकार का कोई हक नहीं होगा। भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में हर व्यक्ति के पास निजता का अधिकार है।

बिना किसी थर्ड पार्टी की इजाजत के कॉल रिकॉर्डिंग करना पूरी तरह गैरकानूनी माना जाता है। साथ ही संविधान से किसी व्यक्ति को प्राप्त निजता के अधिकार का भी ये उल्लंघन होगा। समाज में जिस तरीके से निजता के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है, यह अत्यंत चिंताजनक है। आज मोबाइल से बात करने वाले हर आदमी को इस बात का बराबर डर लगा रहता है कि कहीं मोबाइल की बातचीत को बगैर इजाजत के रिकॉर्ड तो नहीं किया जा रहा है। काल रिकॉर्डिंग का डर आज सबके लिए मानसिक दबाव का एक कारण भी है। हमारे आसपास अनेक लोग अपने से ज्यादा दूसरे की निजता में ताक-झांक में ज्यादा रुचि लेते हैं। याद रहे कि कानूनन कॉल रिकॉर्ड करने से पहले आपको अथॉरिटी से इजाजत लेनी होती है। इजाजत लेने के बाद ही आप किसी की रिकॉर्डिंग कर सकते हो। अगर रिकॉर्डिंग करने की परमिशन आपके पास नहीं है तो ऐसा करना गैरकानूनी समझा जाएगा। दरअसल ऐसा करने से किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है और सामने वाला व्यक्ति चाहे तो इसके खिलाफ कानून के दरवाजे पर गुहार लगा सकता है। सादे शब्दों मे निजता की आजादी में दखलंदाजी को कानूनी अपराध की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। इसके साथ ही किसी शख्स की निजता में हस्तक्षेप घटिया सोच और गिरी हुई नैतिकता की निशानी है। अच्छे समाज के निर्माण के लिए निजता के अधिकार की हर कीमत पर रक्षा करना आवश्यक है।

 

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