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पीएम का ‘अमृत’ संबोधन

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

‘अमृत काल’ की प्रथम बेला में प्रधानमंत्री मोदी ने देश को दो विश्वास दिलाने की कोशिश की है। स्वतंत्रता दिवस के ऐतिहासिक मौके पर उन्होंने 9वीं बार लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित किया। देश के नाम पहला विश्वास है-आज़ादी के 100वें वर्ष 2047 में भारत एक विकसित देश होगा। दूसरे विश्वास में प्रधानमंत्री ने देश का सहयोग और समर्थन मांगा है, ताकि वह भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ निर्णायक जंग लड़ सकें। प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन राजनीतिक, राष्ट्रवादी और वैचारिक था। उन्होंने पांच संकल्पों का आह्वान भी किया, ताकि 2047 में भारत विकासशील के बजाय विकसित राष्ट्र के रूप में सामने हो। संकल्प पुराने और नियमित हैं। औसत भारतीय को अपनी विरासत पर गर्व और स्वाभिमान है। गुलामी के बचे-खुचे अंश आज़ादी के 75 लंबे सालों के दौरान समाप्त हो चुके हैं। भारत अब अधिकांशत: एक युवा देश है, जिसके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष का जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ है। गुलामी की कल्पना भी इस देश में नहीं है। अलबत्ता कई चुनौतियां, मर्यादाएं, विकृतियां हमारे देश में हो सकती हैं, जिनसे लड़ते हुए विविध भारत का औसत नागरिक एकजुट और अखंड है। प्रधानमंत्री को यकीन होना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक अपने दायित्वों के प्रति जागरूक है। प्रधानमंत्री इन प्रणों को किसी न किसी संदर्भ में देश के सामने रखते रहे हैं। बहरहाल ‘विकसित भारत’ का प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य महत्त्वाकांक्षी है और मुश्किल भी है। ढेरों समस्याएं और सवाल हैं। संभवत: 2047 तक उन्हें सुलझा लिया जाए! इस लक्ष्य के साथ आम आदमी की या प्रति व्यक्ति आय, कृषि अथवा उत्पादन, विनिर्माण, सेवा क्षेत्रों में रोजग़ार, देश के श्रम-बल का कृषि पर कम आश्रित होना, आयात और निर्यात के समीकरण आदि भी महत्त्वपूर्ण कारक भी जुड़े हैं।

आगामी 25 साल का लक्ष्य तय किया गया है, लिहाजा स्पष्ट है कि उस कालखंड तक न तो प्रधानमंत्री मोदी होंगे और न ही मौजूदा दौर की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थितियां होंगी। आज की युवा पीढ़ी तब परिपक्व जमात होगी और नेतृत्व भी उसी का होगा। यह लक्ष्य भाजपा के राजनीतिक विस्तार के मद्देनजर तय किया गया है। उसका भी परिवर्तित रूप देश के सामने होगा। कमोबेश 25 साल तक जवाबदेही के सवालों और औसत नागरिक के सपनों को टाला जा सकता है। अपेक्षाएं रहेंगी कि मोदी सरकार 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तो जरूर हासिल करे। आज़ादी के ‘अमृत काल’ में प्रधानमंत्री का दूसरा आह्वान कुछ अटपटा-सा लगा। भ्रष्टाचार, परिवारवाद, वंशवाद हमारी व्यवस्था की शाश्वत और चिरंतन स्थितियां रही हैं। ये मोदी से पहले भी मौजूद थीं और मोदी कालखंड में कुछ कम अथवा बदले स्वरूपों में हो सकती हैं। जिन्होंने हमारे बैंकों को लूटा है और विदेश भाग गए हैं, बेशक उनकी संपत्तियों को जब्त कर, नीलाम कर, भरपाई करने की कोशिश हुई है। जेल के आतंक भी लुटेरों पर सवार हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ कोई भी जंग आज तक सार्थक नहीं हुई है, क्योंकि इनकी जड़ें गहरी और व्यापक हैं। किसी के पास रहने को घर नहीं है, खाने को पर्याप्त रोटी नहीं है, तो किसी के पास चोरी का माल रखने को जगह नहीं है।

कमोबेश आज़ादी के 75 साल बाद भी यह विरोधाभासी स्थिति चिंतित करती है, क्योंकि हमने तो भ्रष्टाचार-मुक्त आज़ादी का सपना देखा था। प्रधानमंत्री की चिंता और सरोकार समझे जा सकते हैं, लेकिन ये मुद्दे किसी भी सामान्य दिन पर उठाए जा सकते थे। लालकिले की प्राचीर तो राष्ट्रीय, भारतीय, देशभक्ति पूर्ण, सकारात्मक, प्रेरणास्पद और किसी संभावित सरकारी योजना की घोषणा का मंच है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल के आठ सालों के दौरान भ्रष्टाचार, परिवारवाद, वंशवाद पर कितने प्रखर प्रहार किए हैं? उन्हें आज लालकिले से देश से समर्थन क्यों मांगना पड़ा? देशवासी तो इन स्थितियों को पहले से ही झेल रहा है। हुनरमंद, प्रतिभाशाली और गैर-सिफारिशी नागरिक कुंठित होते रहे हैं। तो अब कैसे भरोसा किया जाए कि प्रधानमंत्री निर्णायक जंग लडऩे में कामयाब होंगे? हमें ये मुद्दे राजनीतिक ज्यादा लगे और प्रधानमंत्री 2024 की आधार-भूमि तय करते लगे। फिर भी देश देखना चाहेगा कि प्रधानमंत्री की लड़ाई क्या रंग लाती है? बहरहाल लालकिले से प्रधानमंत्री ने अपने ‘अमृत’ संबोधन में नारी-शक्ति की बात की। जांबाज सैनिकों को सलाम किया और स्वदेशी खिलौनों के प्रति सरोकार जताया। यदि महंगाई, बेरोजग़ारी आदि मुद्दों के प्रति भी कुछ कहते, तो उनकी चिंताएं सार्थक लगतीं।

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