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यूक्रेन संकट और अवसर

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

इस साल 24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब सभी को यूं लगा कि दो-चार दिन में मामला खत्म हो जाएगा। यूक्रेन की सरकार को रूस गिरा देगा और वहां कोई नई कठपुतली सरकार बन जाएगी, जिसके बाद शांति बहाल हो जाएगी। अब चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन न तो शांति बहाल हुई है और न ही उसके आसार दिख रहे हैं। साफ है, रूस ने जैसा समझा था, यूक्रेन उतना कमजोर शिकार साबित नहीं हुआ। बेशक डेढ़ करोड़ लोग घरबदर हो गए, हजारों इमारतें तबाह हुईं, यूक्रेन की अर्थव्यवस्था घटकर आधी रह जाने का डर पैदा हो गया है, मगर इस लड़ाई की बड़ी कीमत रूस को भी चुकानी है। मोटा अनुमान है कि इस लड़ाई पर रूस हर रोज 90 करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है, लेकिन यह खर्च उस कीमत के आगे कुछ भी नहीं है, जो रूस के भविष्य को चुकानी है। इस लड़ाई का असर सिर्फ रूस और यूक्रेन तक रहता, तो शायद उतनी बड़ी बात न होती। यह जंग तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल चुकी है। हरेक देश हिसाब लगा रहा है कि उसकी अर्थव्यवस्था को कितना झटका लगने वाला है, और यह भी कि क्या इस आपदा में कोई अवसर तो नहीं छिपा है? इस किस्से को समझने के लिए देखना जरूरी है कि दुनिया के बाजार में या आर्थिक मानचित्र पर रूस की या यूक्रेन की हैसियत क्या है? फिलहाल दोनों देश तेल, गैस, अनाज और दलहन-तिलहन के बड़े उत्पादक व निर्यातक हैं, जिस कारण इस लड़ाई से दुनिया भर में महंगाई भड़क गई है। अमेरिकी अर्थशास्त्री केनेथ रोगौफ ने सवाल भी उठाया है कि इस साल के अंत तक अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाएं एक साथ सुस्ती के संकेत दे रही हैं, तो क्या दुनिया की अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में एक बवंडर में फंसने जा रही है? ऐसी स्थिति में अब यह बात भी स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र या पश्चिमी देशों की तरफ से लगने वाले आर्थिक प्रतिबंध लड़ाई रोकने का काम नहीं कर सकते। यहीं आपदा में अवसर है। जब रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगे, तो भारत जैसे देशों के लिए मौका पैदा हुआ कि वह रूस से सस्ता तेल खरीद लें। हालांकि, अमेरिका लगातार दबाव बनाता रहा है कि भारत रूस से तेल एक हद तक ही खरीदे। मगर रूस के साथ भारत के बहुत पुराने सामरिक संबंध हैं। 1971 की लड़ाई में रूस का दबाव काफी काम भी आया था। और, इस वक्त भारत के पास मौका था कि वह रूस की मदद करे और नुकसान के बजाय फायदे में रहे। जैसे ही आर्थिक प्रतिबंध का एलान हुआ, अमेरिका और यूरोप की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने रूस के अपने स्टोर बंद करके भागने की घोषणा कर दी। शानदार बाजारों में सैकड़ों आलीशान स्टोर अचानक खाली हो गए। इनके मालिकों या उन बड़ी कंपनियों के स्थानीय साझेदारों के सामने भविष्य का सवाल खड़ा हो गया। ऐसे में, भारत के कुछ चतुर रियल एस्टेट कंसल्टेंट काम पर लग गए और उन्होंने यहां की कंपनियों को समझाया कि रूस के बाजार में पैर जमाने का यह सुनहरा मौका है। अब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन ने भी ब्रिक्स सम्मेलन में एलान कर दिया कि भारत की रिटेल चेन रूस में स्टोर खोलने की गंभीरता से तैयारी कर रही हैं। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस रिटेल चेन की बात हो रही है। उन्होंने रूस से भारत और चीन को तेल आपूर्ति में बढ़त का भी जिक्र किया। भारत रूस से कभी भी बहुत ज्यादा तेल नहीं खरीदता था। मगर प्रतिबंध लगने के बाद से इसमें जबर्दस्त तेजी आई और इस वक्त रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है। वजह साफ है। पुराने रिश्ते और तेल के दाम पर भारी छूट। छूट का फायदा तो जाहिर है, लेकिन साथ में भारतीय तेल कंपनियों के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो गया। रूस को तेल का भुगतान कैसे करें, क्योंकि डॉलर में भुगतान पर रोक लगी हुई थी और रूस को अंतरराष्ट्रीय भुगतान नेटवर्क स्विफ्ट से भी बाहर कर दिया गया था। अब एक ही रास्ता बचता है कि भुगतान रुपये में या रूबल में कर दिया जाए। मगर यहां सवाल यह है कि अगर तेल का भुगतान रूबल में करना है, तो रूबल आएगा कहां से? और, रूस ने रुपये में भुगतान ले लिया, तो फिर वह रुपयों का करेगा क्या? शायद इसी गुत्थी का जवाब मिलता है, रूस में भारत की रिटेल चेन या दूसरे कारोबार खुलने से। अगर भारत का माल भी बड़ी मात्रा में रूस के बाजारों में जाता रहे, तो फिर दोनों तरफ से लेन-देन काफी आसान हो सकता है। हमारी नजर से देखें, तो सस्ता तेल भी मिल रहा है और अपनी कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार भी। जाहिर है, रूस पर प्रतिबंध लगाने के लिए डॉलर और अंतरराष्ट्रीय भुगतान नेटवर्क से उसे हटाने का फैसला अमेरिका के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित हुआ है। रूस परेशान होने के बजाय अपनी मुद्रा को और मजबूत करने में सफल हो गया है, और उसने एक ऐसा रास्ता भी दिखा दिया है, जिसका इस्तेमाल अब दूसरे देश कर सकते हैं।

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