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पर्यावरण की चुनौतियां और अक्षय ऊर्जा का विकल्प

-योगेश कुमार गोयल-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

आज पूरी दुनिया पर्यावरण संबंधी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। पारम्परिक ऊर्जा स्रोत इस समस्या को और ज्यादा विकराल बनाने में सहभागी बन रहे हैं। विशेषज्ञो का मानना है कि अक्षय ऊर्जा इन चुनौतियों से निपटने में कारगर साबित हो सकती है। भारत इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रहा है। देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री विभिन्न अवसरों पर सौर ऊर्जा को ‘श्योर, प्योर और सिक्योर’ बताते हुए इसके महत्व को स्पष्ट रेखांकित कर चुके हैं। आज भारत दुनियाभर में अक्षय ऊर्जा उत्पादन में चौथे स्थान पर पहुंच चुका है। देश में अक्षय ऊर्जा को लेकर जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से ही वर्ष 2004 से प्रतिवर्ष 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस मनाया जाता है।

मध्य प्रदेश के रीवा में करीब तीन साल पहले चार हजार करोड़ रुपये की लागत से कुल 750 मेगावाट क्षमता की अत्याधुनिक मेगा सौर ऊर्जा परियोजना का उद्घाटन हो चुका है। इससे उत्पादित होने वाली बिजली के कारण वातावरण में प्रतिवर्ष 15.7 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा। रीवा सौर ऊर्जा प्लांट की शुरुआत के साथ ही भारत दुनिया के शीर्ष पांच सौर ऊर्जा उत्पादक देशों में शामिल हो गया था। कर्नाटक के पावगाड़ा में दो हजार मेगावाट से अधिक क्षमता का सोलर पार्क नई उम्मीद जगा रहा है।

सवाल यह है कि आखिर अक्षय ऊर्जा क्या है और इसके स्रोत कौनसे हैं? इस संबंध में ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में विस्तार से बताया गया है। इस पुस्तक के मुताबिक अक्षय ऊर्जा वह ऊर्जा है, जो असीमित और प्रदूषणरहित है या जिसका नवीकरण होता रहता है। ऊर्जा के ऐसे प्राकृतिक स्रोत, जिनका क्षय नहीं होता, अक्षय ऊर्जा के स्रोत कहे जाते हैं। अक्षय ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोतों में सूर्य, जल, पवन, ज्वार-भाटा, भूताप इत्यादि प्रमुख हैं। उदाहरण के रूप में सौर ऊर्जा को ही लें। सूर्य सौर ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जिसकी रोशनी स्वतः ही पृथ्वी पर पहुंचती रहती है। यदि हम सूर्य की इस रोशनी को सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं भी करते हैं, तब भी यह रोशनी तो पृथ्वी पर आती ही रहेगी। सूर्य से प्राप्त होने वाली इस असीमित ऊर्जा के उपयोग से न तो यह ऊर्जा घटती है और न ही इससे पर्यावरण को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचती है, इसीलिए सूर्य से प्राप्त होने वाली इस ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा कहा जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन से बचाव के दृष्टिगत ही आज अक्षय ऊर्जा को अपनाना समय की सबसे बड़ी मांग है। दरअसल पूरी दुनिया इस समय पृथ्वी के बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं को लेकर बेहद चिंतित है। इसीलिए कोयला, गैस, पैट्रोलियम पदार्थों जैसे ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों के बजाय अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। भारत सहित कई प्रमुख देशों में अब थर्मल पावर प्लांटों में कोयले के इस्तेमाल को कम करते हुए सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोतों का उपयोग किया जाने लगा है। दरअसल आज स्वच्छ वातावरण के लिए कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों के बजाय क्लीन और ग्रीन एनर्जी की पूरी दुनिया को जरूरत है और इन्हीं जरूरतों को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ‘वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड’ की बात करते हुए इस ओर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित कर चुके हैं।

पिछले कुछ वर्षों में भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता कई गुना बढ़ चुकी है। इसके अलावा करीब साढ़े तीन दशक पूर्व पवन ऊर्जा से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की शुरू की गई पहल के बाद से देश की पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता भी काफी बढ़ चुकी है। चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद भारत अब पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में भी चौथे स्थान पर है। फिलहाल जिस प्रकार देश में शुद्ध, सुरक्षित और भरोसेमंद ऊर्जा की ओर तेजी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं, उससे लगता है कि अगले कुछ दशकों में देश की कोयला, गैस इत्यादि प्रदूषण पैदा करने वाले स्रोतों से ऊर्जा पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी।

फिलहाल सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक देश में 100 गीगावाट सौर ऊर्जा सहित कुल 170 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन करना है। हालांकि आने वाले वर्षों में इसे तेजी से बढ़ाने की दिशा में काफी कार्य करना होगा। माना जा रहा है कि डेढ़ दशक बाद भारत में सौर ऊर्जा की मांग सात गुना तक बढ़ सकती है। आज न केवल भारत बल्कि समूची दुनिया के समक्ष बिजली जैसी ऊर्जा की महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं, साथ ही पर्यावरण असंतुलन और विस्थापन जैसी गंभीर चुनौतियां भी हैं। इन गंभीर समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए अक्षय ऊर्जा ही ऐसा बेहतरीन विकल्प है।

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