EducationPolitics

ट्विन टावर के मकड़जाल में निवेशक और बैंक ठगे गए

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोएडा की 32 मंजिला ट्विन टावर को विस्फोटक लगाकर जमींदोज कर दिया गया। कई वर्षों में तैयार टावर मात्र 9 सेकंड में जमींदोज हो गए। देश का 500 करोड़ रुपया एक ही झटके में मलबे में तब्दील हो गया। मीडिया में ट्विन टावर को गिराने को लेकर संस्थाएं अपनी पीठ थपथपा रही हैं। कोई यह जवाब नहीं दे पा रहा है, कि 500 करोड़ रुपए की यह बहु मंजिला इमारत के लिए नियमों को बदलने वाले और बिल्डर को स्वीकृति देने वाले राजनेता और अधिकारी क्यों बचे रह गए।
समरथ को नहिं दोष गुसाईं की तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट का कहर बिल्डर्स के ऊपर गिरा। बिल्डर ने बैंकों से करोड़ों रुपए फाइनेंस करा रखे थे। सरकारी अनुमतियाँ दिखाकर बिल्डर ने फ्लैट बुक करने वालों से करोड़ों रुपए जमा कराए थे। देश के 500 करोड़ रुपए बिल्डिंग बनाने में खर्च हुए थे। उसे गिराकर हम खुश हो रहे हैं। इतने बड़े राष्ट्रीय नुकसान के लिए जिम्मेदार राजनेताओं और अधिकारियों की यदि संपत्ति भी जप्त हो जाती, तो भविष्य में इस तरह की गड़बड़ी भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी करने सेजिम्मेदा लोग डरते। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा ऐतिहासिक फैसला किया है।लेकिन अधिकारियों और राजनेताओं पर कार्यवाही ना करने से यह फैसला अधूरा लग रहा है।
सुपर टेक कंपनी के इस प्रोजेक्ट को पहले 10 मंजिला की अनुमति मिली थी। लिमिटेड कंपनी होने के कारण इसमें निवेशकों का पैसा जमा है। 2 बार नियमों में परिवर्तन कर राजनेताओं ने सीमा बढ़ाई। नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी के अधिकारियों ने 32 और 40 मंजिला टावर बनाने की अनुमति दी। बैंकों ने फाइनेंस किया। निवेशकों ने अनुमतियां देखकर फ्लैट बुक किए। करोड़ों रुपए का निवेश प्रोजेक्ट में किया। रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई। सुप्रीम कोर्ट में सारे तथ्य सामने आए। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की जड़ बने राजनेताओं और अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई ना करके, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक तरह से बचने का मौका उपलब्ध करा दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में नियमों में परिवर्तन हुआ। राजनेता समय-समय पर बड़ी तेजी के साथ नियमों को बदल देते हैं। यह सभी नियम बड़े प्रोजेक्ट बड़ी रिश्वत के कारण ही बदले जाते हैं। नियम आम आदमी के लिए होते हैं। नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी ने नियमों में बदलाव होने के बाद परमिशन जारी की। प्रथम दृष्टया इसके लिए 26 अधिकारियों को दोषी मानते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए हैं। इन अधिकारियों पर कब मुकदमा दर्ज होगा, कब कार्यवाही होगी, कब गिरफ्तारी होगी। कितने साल मुकदमा चलेगा। जिन 26 अधिकारियों पर एफआइआर के आदेश हुए हैं। उन पर कितने वर्ष तक मुकदमा चलेगा। कितने वर्षों में अंतिम निर्णय आएगा, इसकी कोई समय सीमा नहीं है। 19 अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सात वर्तमानअधिकारी सेवा में हैं। जिम्मेदार राजनेता, जिन्होंने नियमों में परिवर्तन किए हैं। उसके बारे में कोई जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की जा रही है।
जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक लिमिटेड के टावरों को ढहाने तथा निवेशकों को जमा राशि वापस करने के आदेश दिए हैं। जिन लोगों ने टावर में फ्लैट बुक कराए थे। जिन बैंकों ने कंपनी को फाइनेंस किया था।उनको एक लंबी कानूनी लड़ाई अपना जमा पैसा वापस लेने के लिए लड़नी पड़ेगी। दोनों टावर गिर गए हैं। केवल जमीन बची रह गई है। सुपरटेक लिमिटेड पर भारी कर्जा है। पैसा वापसी के लिए वर्षों मुकदमा लड़ना पड़ेगा, कब पैसा वापस मिलेगा। इसको लेकर अब एक नई लड़ाई शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर में राजनेताओं और अधिकारियों की गड़बड़ियों और अपराध के बारे में कोई स्पष्ट निर्णय नहीं है। जिसके कारण इनको बच निकलने का पूरा मौका मिल गया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय की सराहना हो रही है। वहीं आम जनता के मन में 500 करोड़ रुपए के राष्ट्रीय धन का इस तरह नुकसान होना, जिम्मेदार राजनेताओं और अधिकारियों पर त्वरित कठोर कार्यवाही ना होना, चिंता का विषय बना हुआ है।होना तो यह चाहिए था जिन राजनेताओं ने नियमों को बदलने का निर्णय लिया था। जो सारी गड़बड़ी की जड़ है। जिन अधिकारियों ने गलतअनुमति दी थी। उनकी संपत्तियां जप्त कर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का संदेश सुप्रीम कोर्ट को देना था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker