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गोवा में फूट

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कांग्रेस ने जब दक्षिण भारत से भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की थी, तभी कहा गया था कि कांग्रेस पहले अपनी पार्टी जोड़ ले, भारत की बात बाद में करे, तब पूरी की पूरी कांग्रेस ने इसे भाजपा का एजेंडा बताया था। मगर पार्टी में संकट फिर सामने आ गया है। गोवा कांग्रेस के 11 में से 8 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। सभी विधायक मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के साथ विधानसभा पहुंचे और स्पीकर रमेश तावड़कर को कांग्रेस से अलग होने की चिट्ठी सौंपी। कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक गोवा के पूर्व सीएम दिगंबर कामत, माइकल लोबो, देलिया लोबो, केदार नाइक, राजेश फलदेसाई, एलेक्सो स्काइरिया, संकल्प अमोलकर और रोडोल्फो फर्नांडीज शामिल है। बागी विधायकों की संख्या पार्टी के कुल विधायकों की संख्या के दो-तिहाई से ज्यादा है। इस वजह से इन विधायकों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा। विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों को 5 साल तक पार्टी नहीं छोड़ने की शपथ दिलाई थी। कांग्रेस ने इस दौरान सभी उम्मीदवारों से एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर भी करवाए थे। हलफनामा देते हुए विधायकों ने कहा था कि 5 साल तक पार्टी नहीं छोड़ेंगे और कांग्रेस में रहकर गोवा की जनता का सेवा करते रहेंगे। इससे पहले 2019 में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक भाजपा में शामिल हुए थे। इसमें नेता विपक्ष चंद्रकांत कावलेकर भी शामिल थे। गोवा के सीएम प्रमोद सावंत ने कांग्रेस के सभी बागी विधायकों को भाजपा में शामिल करवाया था। 10 मार्च 2022 को गोवा विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। इनमें कांग्रेस को 40 में से 11 सीटें मिली थीं, लेकिन 7 महीने के भीतर ही पार्टी टूट गई। इसके पीछे की वजह कांग्रेस की 3 बड़ी गलतियां है। चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस ने बाहर से आने वाले माइकल लोबो को नेता प्रतिपक्ष बनाया। लोबो चुनाव से पहले ही पार्टी में शामिल हुए थे। नेता प्रतिपक्ष की रेस में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत कांग्रेस हाईकमान के इस फैसले के खिलाफ थे। उनकी नाराजगी को देखकर तय माना जा रहा था कि कांग्रेस में टूट होगी। गोवा में हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष गिरीश चोडनकर से इस्तीफा ले लिया, लेकिन प्रदेश प्रभारी दिनेश गुंडूराव पर कोई कार्रवाई नहीं की। गुंडूराव से पार्टी के कई सीनियर चुनाव के पहले से नाराज चल रहे थे। इसी वजह से पार्टी ने पी चिदंबरम को कांग्रेस का ऑब्जर्वर बनाकर भेजा था। गोवा कांग्रेस के नए अध्यक्ष अमित पाटकर को लेकर भी पार्टी में गुटबाजी तेज हुई थी, जिसका असर राष्ट्रपति चुनाव में दिखा। पार्टी के 4 विधायकों ने उस वक्त क्रॉस वोटिंग की थी। कांग्रेस ने इस पर भी डैमेज कंट्रोल का कदम नहीं उठाया। इसी साल जुलाई में कांग्रेस ने पार्टी विरोधी साजिश में शामिल होने का आरोप लगाकर दिगंबर कामत और माइकल लोबो पर कार्रवाई की थी। उस वक्त कांग्रेस टूट से बचने के लिए अपने 5 विधायकों को चेन्नई शिफ्ट कर दिया था। गोवा का हालिया घटनाक्रम कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक को उजागर कर रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि संगठन के स्तर पर एक गहरे संकट से गुजर रही कांग्रेस पार्टी अपने ही संकटों से कैसे उबरेगी? भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस पार्टी का एक बेहद महत्वाकांक्षी राजनीतिक अभियान है। इसके तहत पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता मिल कर कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा करेंगे। इस यात्रा को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी के चुनावी बिगुल के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन पार्टी इस समय जितनी आंतरिक समस्याओं से जूझ रही है, उन्हें देख कर इस समय यह कहना मुश्किल है कि अगर इस समय देश में चुनाव हो जाएं तो पार्टी अपने मुख्य प्रतिद्वंदी बीजेपी को कोई टक्कर दे सकेगी। लोक सभा में पार्टी के पास इतने सांसद भी नहीं है जिससे उसके किसी सांसद को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल सके। अपने दम पर पार्टी की सरकार सिर्फ दो राज्यों में है राजस्थान और छत्तीसगढ़। तीन और राज्यों बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। गोवा में लगभग खत्म हो गई है। भाजपा की राजनीतिक मशीनरी के आगे बेबस कांग्रेस एक एक कर राज्यों में सत्ता खोती भी जा रही है। इसके अलावा संगठन और नेतृत्व के मोर्चे पर भी पार्टी बड़े संकटों का सामना कर रही है।

 

 

 

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