
-संजय भारद्वाज-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
पिछले 70 साल के दौरान पाकिस्तान की राजनीति में हमेशा उथल पुथल रही है। वहां की राजनीति पर अल्लाह, आर्मी और जुडिशरी का एक नेक्सस हावी रहा है। इन तीनों ने ही पाकिस्तान की राजनीति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। उसी कड़ी में एक बार फिर उथल पुथल देखने को मिली जब पाकिस्तान आर्मी की आंखों का तारा माने जाने वाले इमरान खान को पीएम पद से मुक्त कर शहबाज शरीफ को नया पीएम बनाया गया और पाकिस्तान आर्मी इस पूरी कवायद से अलग रही अब इमरान के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की तैयारी है।
सेना से गठजोड़
ऐसे ही 2017 में नवाज शरीफ की कुछ चीजें पाकिस्तानी आर्मी को पसंद नहीं आई थीं। तब जुडिशरी और आर्मी का एक गठजोड़ बनाकर उनको भी पद से हटा दिया गया था। उनके बाद इस नेक्सस ने इमरान खान को अपना मोहरा बनाया। शुरू में इमरान खान पाकिस्तान की सेना के प्रति नरम नहीं थे। सेना के कई मामलों में वह दखल देते थे, उसकी नीतियों को नामंजूर भी करते थे। लेकिन जब अमेरिकी सेना पाकिस्तान को कॉरिडोर के रूप में इस्तेमाल कर रही थी, खासकर जब ओसामा बिन लादेन को मारा गया, तो इमरान खान ने पाक आर्मी को सपोर्ट किया। तबसे इमरान खान पाकिस्तान आर्मी की पसंद बन गए और 2018 में प्रधानमंत्री बने।
इमरान खान
दरअसल पाकिस्तान की आर्मी चार मुद्दों पर बहुत संवेदनशील है। अगर इनमें कोई दखलंदाजी होती है तो वह पीएम बदल देती है।
पहला, आर्मी चीफ या आईएसआई चीफ के अपॉइंटमेंट को लेकर पाकिस्तानी आर्मी बड़ी संवेदनशील रहती है। इन मामलों में वह राजनीतिक दखलंदाजी बिलकुल बर्दाश्त नहीं करती।
दूसरा, अगर कोई भी नेता भारत के साथ समझौते या बातचीत की तरफ बढ़ता है, तो पाकिस्तान की आर्मी को यह पसंद नहीं आता। उसे मालूम है कि अगर भारत से संबंध अच्छे हो गए, तो पाकिस्तान में सेना का महत्व घट जाएगा।
तीसरा, वहां के ऐसे धार्मिक गुरु जो अल्लाह या कट्टरपंथ के नाम पर राजनीति करते हैं, आतंकवादी तैयार करते हैं, उनको सेना का सपोर्ट है। अगर कोई प्रधानमंत्री इन पर प्रतिबंध लगाता है, या दबाव डालता है तो फिर वह संकट में आ जाता है।
चौथा, पाक आर्मी के जो मिलिट्री प्रोग्राम हैं, जिसमें उसे कुछ आर्थिक फायदा हो रहा हो और वहां कोई नेता हस्तक्षेप करता है तो पाक आर्मी उसको पद से हटाने का पूरा प्रयास करती है।
इसी के चलते पहले नवाज शरीफ, फिर अब इमरान खान को पीएम पद से हटाया गया। इमरान खान ने अमेरिका और आर्मी के आर्थिक मामलों में दखलंदाजी की। आईएसआई चीफ की नियुक्ति और बाजवा के एक्सटेंशन में अपनी रुचि दिखाई। भले ही तब आर्मी ने कहा कि वह न्यूट्रल है, लेकिन जो गेम खेला जा रहा था, उसमें वह न्यूट्रल नहीं थी।
इमरान से चिंता
हालांकि इस्तीफे के बाद भी इमरान खान राजनीति से बाहर नहीं हुए। धीरे-धीरे वह अपने आंदोलन को गति दे रहे हैं। इमरान आज भी एक पॉप्युलर लीडर के रूप में अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं। ऐसे में यह आर्मी और शहबाज शरीफ के लिए चिंता का विषय है कि अगर अभी चुनाव हो जाते हैं तो कहीं ऐसा ना हो कि हर नेक्सस की धज्जियां उड़ाते हुए जनता के समर्थन से इमरान फिर से पीएम बन जाएं। इसीलिए उन पर तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, उनके चुनाव लड़ने पर पांच साल तक रोक लगाने की बात चल रही है।
मोर्चा अवाम का
ऐसे में पाकिस्तान के हालात आर्मी या शहबाज शरीफ से कंट्रोल नहीं हो पा रहे। फ्लड में पाकिस्तान की बुरी हालत हो चुकी है। मुद्रास्फीति बीस फीसदी पर चली गई है, गरीबी बढ़ती जा रही है और वह कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है। ऐसे में हो सकता है कि अवाम के दम पर इमरान खान सत्ता में आ जाएं। वहां की अवाम भी अब एक मोर्चा बन चुकी है, कहीं उसका फैसला आर्मी पर भारी ना पड़े।