
-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान लम्बे मार्च पर हैं। लम्बा मार्च यानि वे अपने समर्थकों को लेकर पैदल ही इस्लामाबाद की ओर बढ़ रहे हैं। यहां पैदल का अर्थ सचमुच पैदल से नहीं हैं। गाडिय़ों का क़ाफिला है जो धीरे धीरे राजधानी की ओर जा रहा है। उसको भी आजकल पैदल ही कहा जाता है। इस प्रकार की यात्रा में आम नागरिकों को कुछ कष्ट भी उठाना पड़ता है। लेकिन मार्च करने वालों का मानना है कि देश के लिए यह उठाना जरूरी है। मार्च की गाड़ी के नीचे आकर पाकिस्तान की एक प्रसिद्ध पत्रकार को जान गंवानी पड़ी। लेकिन मार्च के उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह जरूरी था। शायद यही समझाने के लिए इमरान खान स्वयं उस पत्रकार के घर अफसोस करने के लिए गए। इमरान खान कुछ माह पहले तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे। लेकिन अचानक संसद में उनका बहुमत समाप्त हो गया। लेकिन वे इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं हुए। उनका कहना था,यह सारा कांड पाकिस्तान की सेना के साथ मिल कर अमेरिका करवा रहा है। अमेरिका उनको प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहता है। इमरान खान का कहना था कि संसद को भंग करके नए चुनाव करवाने चाहिए।
लेकिन उनको संसद ने अविश्वास प्रस्ताव पास करके ज़बरन हटा दिया। तब से वे काला चश्मा लगा कर घूम रहे हैं। यहां तक कि रात को भी उतारते नहीं। पाकिस्तान में इसको लेकर कहानियां प्रचलित हो गई हैं कि सेना ने उनकी पिटाई की थी जिसके कारण उनकी आंखों में चोट आ गई और वे काले चश्मे के बिना नहीं आते। सेना को लगता था कि वे काला चश्मा लगा कर चुपचाप बैठ जाएंगे। लेकिन इमरान खान पठान हैं और पाकिस्तान में पठानों का भी एक सूबा है जिसे 1947 से पूर्व पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत कहा जाता था और आजकल खैबर पख्तूनखवा कहा जाता है। पठानों को लगता है कि उनका आदमी पहली बार प्रधानमंत्री बना, लेकिन पंजाब के मुसलमानों के आधिपत्य वाली सेना ने उनको टिकने नहीं दिया। इससे पहले सिद्धियों के साथ भी ऐसा ही हुआ था। ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के मुखिया हो गए थे। उसका अंत फांसी के फंदे पर हुआ था। इमरान खान को भी धीरे धीरे घेरा जा रहा है। वहां की संसद ने उनको चुनाव लडऩे के अयोग्य तो कऱार ही दिया है। यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि अब उनको किसी की हत्या के मामले का सामना भी करना पड़ सकता है। पत्रकार की हत्या का मामला भी बन सकता है। पाकिस्तान में लाँग मार्च वही कामयाब होता है जिसका समर्थन वहाँ की सेना करती है। फिलहाल सेना इमरान के विरोध में है न कि उसके साथ। इमरान भी सेना को चुनौती दे रहे हैं। इमरान तो इतना आगे बढ़ गए हैं कि उन्होंने सेना के ही एक अंग आईएसआई को भी धमकी दे डाली कि वे उसके सारे पोल खोल देंगे।
आईएसआई को सफाई के लिए देश के इतिहास में पहली बार प्रैस कान्फ्रेंस करना पड़ी। पाकिस्तान में यह सारा विवाद क्या सत्ता प्राप्ति के लिए ही है या फिर देश की उत्पत्ति के समय ही इसके जीन में कुछ गड़बड़ी है, जिसके कारण अपने जन्म के लगभग पचहत्तर साल बाद भी पाकिस्तान स्थिर नहीं हो पाया है। पाकिस्तान का निर्माण ब्रिटिश सरकार में ग्रेट गेम की विवशताओं के चलते हिन्दुस्तान को एक स्थायी शत्रु देने के लिए किया था। पाकिस्तान उस उद्देश्य की पूर्ति आज तक ईमानदारी से करता आ रहा है। लेकिन पाकिस्तान जिन्ना का सपना था। इस सपने को अंग्रेज़ों ने अपने स्वार्थ के लिए पूरा किया। लेकिन जिन्ना के मन में पाकिस्तान की पहचान को लेकर क्या अवधारणा थी, उसको उन्होंने पहले दिन ही अपने भाषण में स्पष्ट किया था कि सरकार के लिए न कोई हिंदू है और न मुसलमान। मजहब यहां के लोगों का निजी मसला होगा, सरकार को उससे कुछ लेना-देना नहीं है। जिन्ना गुजराती थे यानि देसी मुसलमान थे। उनका यह भाषण एटीएम को पसंद नहीं था। उन्होंने यह भाषण पाकिस्तान के रेडियो पर प्रसारित ही नहीं होने दिया। जिन्ना कुछ महीने बाद ही मर गए। जिन्होंने जिन्ना का यह भाषण रेडियो पर प्रसारित नहीं होने दिया था, उन लियाक़त अली खान को भी क़त्ल कर दिया। तो आखिर पाकिस्तान की अवधारणा क्या थी? निर्माताओं के मन में नए पाकिस्तान के स्वरूप को लेकर किस प्रकार का भाव था।
जिन्ना और लियाक़त अली खान की तो पाकिस्तान को लेकर परस्पर विरोधी अवधारणा थी, लेकिन दोनों को ही जान गँवानी पड़ी। मुझे लगता है यदि जिन्ना की कुदरती मौत न होती तो उसके उस पहले भाषण के कारण ही उनको जरूर कोई मार देता। भुट्टो सिन्ध की पुरानी कहानियों से पाकिस्तान बुन रहा था, उस चक्कर में केवल उसे ही नहीं बल्कि उसकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो को भी जान गंवानी पड़ी। लेकिन कोई खान निशाने पर आया है, यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली मर्तबा हो रहा है। इमरान खान ने सत्ता भी पाकिस्तान की सेना के बलबूते ही प्राप्त की थी, ऐसा पाकिस्तान के लोग मानते हैं। लेकिन शेख मुजीबुर रहमान ने तो सत्ता लोगों के वोट के बलबूते प्राप्त की थी। सेना की उसमें कोई भूमिका नहीं थी। शेख मुजीबर रहमान भी बंगाली मूल के देसी मुसलमान थे। लेकिन एटीएम (अरब, तुर्क, मुगल-मंगोल) खेमे में शामिल होने की छटपटाहट में अरबी टाईटल शेख का पुछल्ला अपने नाम के साथ अशरफ समाज का दिखना चाहते थे। लेकिन जब शेख ने वोट की लड़ाई जीत ली तो पाकिस्तान को नियंत्रित करने वाली ताकतें इतना क्रुद्ध हुईं कि उनको मार ही डालतीं। बंगला देश बन जाने के कारण उस समय तो उनकी जान बच गई। वे बंगला देश के राष्ट्रपति भी बन गए। लेकिन उन शक्तियों ने उनकी इस हिमाक़त की सजा में मौत उनको दे ही दी। बंगला देश इस्लामी देश बन गया। पाकिस्तान तो पहले ही बन चुका था। यह न तो जिन्ना चाहते थे और न ही शेख मुजीबर रहमान। पाकिस्तान को लेकर एक सपना शायद इमरान खान ने भी देख लिया होगा।
यक़ीनन वह सपना भारत के हित में नहीं होगा। लेकिन वह सपना पाकिस्तान की सेना को भी शायद ठीक नहीं लगता। यही कारण रहा होगा कि सेना ने इमरान को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इमरान थोड़ा हठी हैं, इसलिए ज्यादा चिल्ला रहे हैं। पाकिस्तान में चिल्लाने की क़ीमत लियाक़त अली खान, भुट्टो, बेनज़ीर भुट्टो, शेख मुजीबर रहमान, सभी को चुकानी पड़ी। लेकिन असली प्रश्न फिर भी अनुत्तरित है। पाकिस्तान किसका है? इमरान खान इसी का उत्तर दे रहे हैं। पहले पाकिस्तान इंग्लैंड का था। अब इंग्लैंड ख़ुद ही विश्व राजनीति में बौना हो गया है। इंग्लैंड की संतान ही अमेरिका है। अब पाकिस्तान अमेरिका का है। इमरान खान ने खुले रूप से इस तथ्य को उजागर कर दिया है। ऐसी खुली बात आज तक प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान में किसी ने नहीं की थी। ज़ाहिर है इमरान को इसका दंड भुगतना पड़ेगा। लेकिन पाकिस्तान में पिछले 75 साल से चल रहे इसी प्रकार के घटनाक्रम से पाकिस्तान में भीतर ही एक नई बहस शुरू हो गई है। सेना पर पंजाब के मुसलमानों का कब्जा है और सेना अमेरिका के इशारे पर चलती है। तो सिन्ध, बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनखवा पाकिस्तान में क्या कर रहे हैं? जम्मू कश्मीर के जिस हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा जमा रखा है, उस गिलगित-बलतीस्तान में भी शिया मजहब को मानने वाले लोगों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया है। सबसे बड़ा प्रश्न उभर रहा है। पाकिस्तान किसका है? देसी मुसलमानों का या एटीएम का? पंजाबी मुसलमानों का या सिन्धियों का? बलूचों का या पठानों का? सेना का या आम नागरिकों का? इन प्रश्नों के उत्तर मंम ही पाकिस्तान के विनाश के बीज छिपे हैं।