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अब काँग्रेस की जगह ‘आप’ ने ले ली….?

-ओमप्रकाश मेहता-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कुदरत का यह नियम अब भारतीय राजनीति में लागू हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि ‘जो जन्मदाता होता है, वहीं मानव जीवन का अंतिम सत्य होता है। ’ यद्यपि यह बात परमपिता परमेश्वर के बारे में कहीं गई है, किंतु भारतीय राजनीति में अब यह उक्ति कांग्रेस पर चरितार्थ हो रही है, क्योंकि नेहरू परिवार ने कांग्रेस को करीब 135 साल पहले जन्म दिया था अैर अब नेहरू खानदान की पांचवी पीढ़ी उसे खत्म करती नजर आ रही है। इस दौरान भारत की आजादी के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी हासिल करने तक की कांग्रेस की भूमिका अहम् रही, किंतु नेहरू खानदान की तीसरी पीढ़ी इंदिरा जी के बाद इस पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया और अब वह संकट पांचवी पीढ़ी (राहुल गांधी) तक आते-आते ‘‘महासंकट’’ बन गया और आज यह देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल तोड़ने की स्थिति में आ गया है और ऐसा लगता है कि आगामी कुछ ही वर्षों में इसका वजूद ही खत्म हो जाएगा।

जिस तरह जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम दिनों में यह सवाल उठाया जा रहा था कि ‘‘नेहरू के बाद कौन?’’ उसी तरह अब भारतीय राजनीति में आज अहम् सवाल यही उठाया जा रहा है कि ‘‘कांग्रेस के बाद कौन?’’ यद्यपि नेहरू के बाद इंदिरा ने भी सत्रह वर्षों तक दबंगाई से इसी पार्टी की छत्रछाया में देश पर राज किया, किंतु जिस तरह पं. नेहरू ने इंदिरा जी को राजनीति की प्रायोगिक शिक्षा दी थी, उस तरह इंदिरा जी अपने बेटे राजीव को राजनीति की प्रायोगिक शिक्षा नहीं दे पाई और संसार से उन्हें विदा कर दिया गया, इसलिए पहली बार कांग्रेस की कमान गैर अनुभवी हाथों में पहुंच गई और वहीं से उसकी अंतिम यात्रा की तैयारी भी शुरू हो गई राजीव के जाने के बाद उनकी पत्नी जो विदेशी महिला है, उन्होंने अनुभव नहीं रहने के बाद वरिष्ठ नेताओं के सहयोग से दो दशक से भी अधिक समय तक कांग्रेस को चलाया, बाद में इस प्रमुख दल का अवसान शुरू हो गया, क्योंकि राहुल गांधी इसे संभाल नहीं पाए और वरिष्ठ कांग्रेसी या तो ऊपर चले गए या उन्होंने अपना डेरा अलग जमा लिया, फलस्वरूप कांग्रेस सिर्फ सोनिया-राहुल तक ही सिमट कर रह गई और अब कुशल नेतृत्व के अभाव में यह मृत्युशैया पर पड़ी अंमि सांस लेने को मजबूर है और कभी भी इसके नाम के सामने ‘स्वर्गीय’ या ‘पूर्व’ लग सकता है।

काँग्रेस की इस दुरावस्था को देख समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी आदि कई दलों ने कांग्रेस का स्थान लेने की कौशिश की, किंतु वे अपने प्रयासों में सफल नहीं हो पाए और अपने क्षेत्र विशेष में ही सिमट कर उन्हें रहना पड़ा, किंतु अब अपनी बाल्यावस्था के दौर से गुजरते हुए कई राजनीतिक शौर्य दिखा चुकी ‘आम आदमी पार्टी’ कांग्रेस का स्थान लेने के काफी निकट है, दिल्ली में एक गैर-राजनीतिक आंदोलन के बाद जन्मी यह पार्टी कुछ ही अंतराल में दिल्ली पर राज करने लगी और फिर पंजाब के शासन पर भी कब्जा कर लिया, अब उसकी अगली निकटवर्ती नजर गुजरात और गोवा पर है, गुजरात विधानसभा चुनाव और उससे पहले हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान इसके प्रचार का दौर काफी जोरदार रहा और अब वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में उनकी आंखों की किरकिरी बनी हुई है, गुजरात में प्रमुख प्रतिपक्षी दल के रूप में प्रधानमंत्री जी की मान्यता के बाद तो ऐसा लगने लगा कि एक राष्ट्रीय दल की मान्यता नहीं मिलने के बाद भी ‘आप’ सबका ‘बाप’ बनने की कौशिश कर रही है। ….और कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि इसे कांग्रेस की जगह मुख प्रतिपक्षी दल का ‘तमगा’ हासिल भी हो जाए? क्योंकि अब इसके जन्मदाता दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूरे देश के राज्यों में ‘आप’ की स्थापना का संकल्प जो ले लिया है, इसलिए फिलहाल तो यही लग रहा है कि ‘आप’ शीघ्र ही मुख्य प्रतिपक्षी दल का ‘ओहदा’ ग्रहण कर लेगी।

 

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