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चुनाव नतीजों के मायने

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राजधानी दिल्ली के नगर निगम की सत्ता आम आदमी पार्टी (आप) ने हासिल की है, लेकिन जनादेश 2020 के विधानसभा चुनाव जैसा नहीं रहा है। ‘आप’ ने भाजपा के 15-साला वर्चस्व को ध्वस्त किया है, लेकिन उखाड़ कर फेंकने का दावा खोखला साबित हुआ है। ऐसी भाषा ही क्यों बोली जाए? नगर निगम चुनाव में ‘आप’ को करीब 42 फीसदी वोट मिले और उसने 134 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत हासिल किया। विधानसभा चुनाव की तुलना में ‘आप’ के वोट 11 फीसदी घटे हैं। यह बहुत बड़ा आंकड़ा है, लिहाजा सचेत होने का जनादेश मिला है। भाजपा के वोट करीब 3 फीसदी बढ़े हैं और उसके 104 पार्षद जीते हैं। यह एक शानदार पराजय है। केजरीवाल को सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत सरकार के मंत्रियों-गोपाल राय, कैलाश गहलोत और सत्येन्द्र जैन-के चुनाव क्षेत्रों में भाजपा जीती और ‘आप’ को एक-एक सीट ही नसीब हुई है। तिहाड़ जेल में बंद मंत्री सत्येन्द्र जैन के इलाके में ‘आप’ का सूपड़ा ही साफ हो गया है। ‘आप’ के अमानतुल्ला खां सरीखे विधायकों के क्षेत्रों में भी ‘आप’ पराजित हुई है।

केजरीवाल को सोचना चाहिए कि भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा है और उस पर जनादेश ‘आप’ के विपरीत भी जा सकता है। ‘आप’ का लगातार दावा और सर्वे 230 पार्षद जीतने के थे और भाजपा को 20 पार्षदों तक समेट देने के थे। दोनों संदर्भों में केजरीवाल नाकाम रहे, लिहाजा उन्हें अब मंथन करना चाहिए कि मुफ्तखोरी की योजनाओं और नीतियों के सहारे कब तक जीतने वाली राजनीति की जा सकती है? बहरहाल ‘आप’ को एक बड़ी उपलब्धि हासिल होती स्पष्ट लग रही है कि शीघ्र ही उसे ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा दिया जा सकता है। दिल्ली और पंजाब में ‘आप’ की सरकारें हैं। गुजरात में भी उसे करीब 15 फीसदी वोट मिल सकते हैं और दहाई से कम कुछ विधायक भी जीत कर आ सकते हैं। ऐसा जनादेश के शुरुआती रुझानों से स्पष्ट हुआ। हालांकि गुजरात चुनाव का स्वतंत्र और विस्तृत विश्लेषण बाद में करेंगे, लेकिन इतना साफ हो चुका है कि हिमाचल में ‘आप’ के दावे हवा-हवाई साबित हुए, क्योंकि उसका खाता तक नहीं खुल सका। अलबत्ता कुछ फीसदी वोट तो मिले होंगे। उनके आधार पर ‘आप’ का ‘राष्ट्रीय पार्टी’ बनने का रास्ता सुगम जरूर हो सकता है। गुजरात प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य है और तुलनात्मक दृष्टि से विस्तृत भी है। वहां करीब 53 फीसदी वोट के साथ भाजपा 150 से ज्यादा सीटों पर जीत का ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित करती हुई लगी। गुजरात में 1985 के चुनाव में मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 149 सीट हासिल की थी। गुजरात में अभी तक वही रिकॉर्ड रहा है। प्रधानमंत्री आह्वान करते रहे कि इस बार वह कीर्तिमान टूटना चाहिए।

लगातार 27 साल की सत्ता के बावजूद सातवीं बार ऐसी जीत अभूतपूर्व और प्रधानमंत्री के प्रति जनता के अगाध विश्वास और व्यापक समर्थन का ही यथार्थ है। भाजपा में यह तय करने की भी ख़बर है कि मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल 10-11 दिसंबर को नये सिरे से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। गुजरात के इस जनादेश के साथ ही भाजपा बंगाल में वाममोर्चा सरकार के कार्यकाल की बराबरी कर लेगी। कमोबेश दिल्ली और गुजरात के चुनावों में कांग्रेस इतना पिछड़ चुकी है कि उसे ‘राजनीति छोड़ो यात्रा’ का आगाज़ करना चाहिए। हम जान नहीं सके कि गुजरात में कांग्रेस 125 सीटें जीत कर बहुमत हासिल करने और सरकार बनाने के किस मुग़ालते में थी? भाजपा का चुनावी हासिल यह है कि बेशक वह चुनावी सीटों के मामले में पिछड़ जाए, लेकिन उसकी राजनीतिक ज़मीन नहीं खिसकती। उसका एक निश्चित जनाधार बरकरार रहता है और इसी आधार पर उसने अभी से आगामी विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां और रणनीतिक विमर्श शुरू कर दिए हैं। गुजरात में 27 साल के बाद भी किसी क्षेत्र और किसी समुदाय में भाजपा के प्रति मोहभंग के भाव पैदा नहीं हुए हैं। वह प्रत्येक क्षेत्र में विजयी रही है। बहरहाल अब धीरे-धीरे देश का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य और परिवेश बदलता जा रहा है और उसमें केजरीवाल विपक्ष का चेहरा होने का दावा ठोंक सकते हैं।

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