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हिमाचल गुजरात एमसीडी के चुनाव और भारत जोड़ो यात्रा

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

हिमाचल गुजरात और एमसीडी के चुनाव को मिनी चुनाव के रूप में देखा जा रहा है। इन चुनाव परिणामों का असर 2023 में होने वाले 5 विधानसभा के चुनाव तथा 2024 के लोकसभा चुनाव के परिपेक्षय में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चुनाव परिणाम का जो रुझान एग्जिट पोल में था। लगभग-लगभग वही ट्रेंड चुनाव परिणामों में भी देखने को मिला है। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी 150 सीटों के आसपास चुनाव जीत रही है। हिमाचल प्रदेश में भी एग्जिट पोल और मीडिया ने जो संभावना व्यक्त की थी। उसी के अनुसार कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ दिख रहा है। एमसीडी के चुनाव में जरूर एग्जिट पोल के अनुसार आम आदमी पार्टी की सीटे कम हुई है। लेकिन वह स्पष्ट बहुमत से चुनाव जीत गई है। इससे यह कहा जा सकता है कि एग्जिट पोल ने परिणामों को लेकर जो संभावना व्यक्त की थी। ईवीएम मशीन के चुनाव परिणामों ने एग्जिट पोल की संभावनाओं को बनाकर रखा हुआ है।
पिछले कुछ वर्षों से मीडिया में पॉलीटिकल एजेंडा सेट कर दिया जाता है। उसी के अनुसार पूरा एजेंडा काम करता है। एग्जिट पोल और चुनावी सर्वे एजेन्सी की इसमें बड़ी भूमिका होती है। मीडिया द्वारा एक माइंड सेट तैयार कर दिया जाता है। जब चुनाव परिणाम आते हैं तो उसके आसपास ही होते हैं। जीत क्यों मिली हार क्यों हुई इसका ट्रेंड भी मीडिया पहले से ही सेट कर देता है। आम जनता को भी चुनाव परिणाम आने पर उस पर विश्वास होने लगता है। पिछले कई चुनावों में यही ट्रेंड देखने को मिल रहा है।
ईवीएम मशीन को लेकर भी समय-समय पर प्रश्न चिन्ह लगाए जाते हैं। राजनीतिक दलों द्वारा भी विशेष रूप से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल द्वारा चुनाव की विश्वसनीयता बनाए रखने और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बनाए रखने की रणनीति तैयार की जाती है। वह चुनाव परिणामों में स्पष्ट रूप से देखने को मिल रही है। लगभग 1 माह पहले से ही यह तय माना जा रहा था कि गुजरात में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोट काटेगी। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी 150 सीटों के आसपास जीतेगी। हिमाचल में कांग्रेस बहुत कम सीटों के बहुमत से चुनाव में विजय हासिल करेगी। दिल्ली में आम आदमी पार्टी एमसीडी में बहुमत प्राप्त करेगी। यदि चुनाव परिणाम ऐसे ही आए हैं तो इसमें ईवीएम मशीनें और चुनाव आयोग के ऊपर कोई भी प्रश्न चिन्ह लगाना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा। क्योंकि यदि ईवीएम मशीनें या चुनाव आयोग की कोई भूमिका चुनाव को प्रभावित करने की होती। तो हिमाचल में कांग्रेस चुनाव कैसे जीत रही है। वहीं आम आदमी पार्टी दिल्ली में चुनाव कैसे जीतती।
चुनाव परिणाम अब एक प्रबंधन कौशल बन गया है। यह राय भी कहीं ना कहीं बनने लगी है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल मीडिया के अधिकांश चैनल चुनावी विशेषज्ञों की बहस कराकर एक माहौल को तैयार करती हैं। एजेंडा तय हो जाता है। उस एजेंडा के अनुसार महीनों दर्शकों तक उन बातों को मतदाताओं के दिमाग में बैठाने की कोशिश की जाती है। जब चुनाव परिणाम आते हैं तो आम जनता भी परिणाम पर विश्वास कर लेती है। जो चुनाव परिणाम आए हैं वह वास्तविक एवं सही होंगे।
बहरहाल जिस तरीके से चुनाव परिणाम 2018 के बाद से आ रहे हैं। उसमें कर्नाटक मध्य प्रदेश गोवा पूर्वोत्तर राज्यों की सरकारों को गिराकर भाजपा ने अपनी सरकार बनाने में सफलता हासिल की है। उसके बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत मिला है। चुनाव के दौरान मत विभाजन के लिए जो एजेंडा चुनाव प्रबंधको द्वारा सेट किया जाता है। वह प्रमाणिक स्वरूप में चुनाव परिणाम में बदल जाता है उत्तर प्रदेश के चुनाव में बसपा ने सपा को हराने में महत्वपूर्ण योगदान अदा किया। गुजरात में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट काटकर भाजपा की जीत में योगदान दिया। हिमाचल में इतने कम बहुमत से कांग्रेसी की सरकार बनेगी। गैर भाजपाई सरकार को चलाना संभव ही नहीं होगा। दलबदल और लोटस ऑपरेशन के जरिए सरकार में फेरबदल करना आसान हो जाता है। इसलिए अब चुनाव परिणाम मतदाताओं के वोट के आधार पर ना होकर चुनाव प्रबंधन मत विभाजन चुनाव आयोग चुनाव के दौरान अनाप-शनाप प्रचार सामग्री और खर्च राजनीतिक दलों के बीच आर्थिक असमानता मीडिया का एकतरफा झुकाव जैसे कारण चुनाव को स्पष्ट रूप से प्रभावित कर रहे हैं।
देश में महंगाई बेरोजगारी काफी तेजी के साथ बढ़ रही है। टैक्स और विभिन्न शुल्क भी लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। आम लोगों की आय घट रही है। खर्चे निरंतर बढ़ रहे हैं। जमीनी स्तर पर मतदाता सरकारों से नाराज दिखते है। जब चुनाव होते है मीडिया जो ऐजेंडा सेट करता है। वही चुनाव परिणाम होते है। सरकार चुनाव परिणामों को अपने नियम कायदे कानून टैक्सेशन और लोकप्रियता से जोड़कर सही ठहराने का काम करती है। धीरे-धीरे विपक्ष की भूमिका लोकतांत्रिक व्यवस्था से समाप्त होती जा रही है। 2014 के बाद सारे देश में एक ही पार्टी बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ रही है। राजनीति में नैतिकता पूरी तरह से समाप्त हो गई है। चुनाव में जो जीता वही सिकंदर को सही मानते हुए चुनाव जीतने के लिये चुनाव हो रहे हैं। आम आदमी आर्थिक दृष्टि से परेशान हैं। हर राज्य में आर्थिक समस्याओं एवं असंतोष को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। लोगों में सरकार के प्रति जन रोष चुनाव के पूर्व देखने को मिलता है। उसके बाद भी यदि चुनाव एक दल विशेष की सरकारें लगातार चुनाव जीत रही हैं। इससे लोगों का चुनाव और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी विश्वास कम हो रहा है। इस तथ्य को भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में ध्यान रखना जरूरी है।

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