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‘इसलिए’ हर कोई नरेन्द्र मोदी नहीं हो सकता

-प्रमोद भार्गव-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज दुनिया में लोकप्रियता की सबसे ऊंची चोटी पर हैं। बिजनेसा इंटेलीजेंस कंपनी और मॉर्निंग कंसल्ट के ताजा सर्वे में उन्होंने सबको पछाड़ दिया है। और किसकी बात की जाए, अब तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक तक बहुत पीछे हो गए हैं। इस सर्वे के वैश्विक नेता अनुमोदन सूचकांक में मोदी ने 22 देशों के शीर्ष नेताओं को पछाड़ कर प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गए हैं। पहले पायदान पर पहुंचे मोदी ने 78 प्रतिशत समर्थन के साथ शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। मोदी के बाद मैक्सिको के राष्ट्रपति लोपेज ओब्रेडोर हैं। तीसरे स्थान पर आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज हैं। बाइडेन छठवें और इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक 316वें स्थान पर हैं। मोदी की लोकप्रियता उन मुस्लिम देशों में बढ़ी है, जिन्हें समझा जा रहा था कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वो नाराज हो जाएंगे। अब तो भूख और महंगाई से तबाह पाकिस्तान की अवाम तक कश्मीर का राग अलापने की बजाय अपने नेताओं से यह सवाल पूछ रही है कि कश्मीर के नाम पर लड़ी गई जंगों में गरीबी, भुखमरी और पिछड़ेपन के अलावा क्या मिला? इधर कश्मीर में तिरंगा लहराने के साथ नया नारा लगाया जा रहा है- आर-पार खोल दो, कारगिल को जोड़ दो’। यानी मोदी की लोकप्रियता का परचम चहुंओर है। जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलने से इस पर चार चांद लगे हैं।

कोरोनाकाल में नरेन्द्र मोदी के प्रबंधन के सब कायल हैं। इस काल में अमेरिकी तक की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। अमेरिका की सबसे बड़ी भूख राहत संस्था ‘फीडिंग अमेरिका’ के अनुसार दिसंबर-2021 के अंत तक पांच करोड़ से ज्यादा लोग खाद्य संकट से जूझ रहे थे। यानी अमेरिका का प्रत्येक छठा व्यक्ति भूखा था। यही नहीं प्रत्येक चौथा बच्चा भूखा रहने को मजबूर हुआ। फीडिंग अमेरिका नेटवर्क ने एक महीने में 54.8 करोड़ आहार के पैकेट बांटे। इन्हें प्राप्त करने के लिए अमेरिका के उटा में कारों में बैठकर लोग लंबी कतारों में लगे रहे। ठीक इसके उलट भारत में अनाज का उत्पादन और भंडारण इतना बढ़ा कि वित्तीय वर्ष 2011-22 में खाद्य मंत्रालय को विदेश मंत्रालय से आग्रह करना पड़ा कि दुनिया के कुछ ऐसे गरीब देशों को यह अनाज मुफ्त में बतौर मदद दे दिया जाए, वरना इसे फेंकना पड़ेगा। इसीलिए जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन संस्था डालबर्ग को एक अध्ययन के आधार पर कहना पड़ा कि 97 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि चंद कमियों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की सरकार पर उनका भरोसा है। इसी भरोसे ने देश को विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यस्था के पायदान पर खड़ा कर दिया है।

कोरोनाकाल में हाहाकार के बीच मोदी एकाग्रचित्त रहे। उनका ध्यान इसकी वैक्सीन और सफल उपचार पर रहा। इसकी नतीजा है कि भारत ने हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन गोलियां अमेरिका समेत पूरी दुनिया को उपलब्ध कराईं। इस कालखंड़ में भी माॅर्निंग कंसल्ट ने सर्वे किया। इस सर्वे में साफ हुआ कि मोदी की लोकप्रियता निरंतर न केवल बनी हुई है, बल्कि बढ़ी भी है। रेटिंग एजेंसी फिच ने माना कि कोरोनाकाल में आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक बंद रहने के बावजूद भारत के आर्थिक हालात बेहतर हो रहे हैं। फिच ने माना कि सरकार ने श्रम और कृषि क्षेत्र में जो कानूनी सुधार किए हैं। उससे बिचौलिए खत्म होंगे और देश खुशहाल होगा। यह सारी दुनिया जानती है कि 2014 में जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब भारत की अर्थव्यवस्था बदहाल थी। मोदी शासन के दौरान मजबूत हो रही अर्थव्यवस्था ने विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे उपायों से क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। डिजिटल आर्थिकी ने परिदृश्य बदल दिया है। जनधन और उज्ज्वला जैसी योजनाओं ने गरीबों का भरोसा जीदा है। स्टार्टअप और स्टैंडअप जैसी योजनाएं नए भारत को गढ़ रही हैं। गोया, मोदी के नेतृत्व में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।

 

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