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लगा पोस्टर, निकली सियासत

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

राजधानी दिल्ली की दीवारों पर अचानक कुछ पोस्टर चिपका दिए गए-‘मोदी हटाओ, देश बचाओ।’ यह कोई देश-विरोध का नारा नहीं है और न ही चुनावी मौसम में अप्रत्याशित माना जा सकता है। भारतीय लोकतंत्र में ऐसे नारों और पोस्टरों की परंपरा नेहरू-कालखंड से रही है। 1962 में भारत-चीन युद्ध जारी था, लेकिन तब विपक्षी जनसंघ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ नारों और पोस्टरों का अभियान छेड़ा था। आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण ने यह भी नारा दिया था-‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ।’ उस दौर में पोस्टर ही नहीं छापे गए, बल्कि काली स्याही से दीवारों पर भी नारे लिखे गए। भारतीय राजनीति में और भी उदाहरण होंगे, लेकिन दिल्ली में प्रधानमंत्री-विरोधी पोस्टर नजर आए, तो पुलिस ने करीब 140 प्राथमिकियां दर्ज कर लीं और 30 से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया। यह सिलसिला अभी जारी है। यकीनन प्राथमिकी के संदर्भ में ये आंकड़े अभूतपूर्व हैं, क्योंकि पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराना टेढ़ी खीर है। पहले और अब की राजनीति में फर्क इतना ही है कि 2009 में एक कानून बनाया गया था। उसके मुताबिक, किसी भी पोस्टर पर प्रिंटिंग प्रेस और प्रकाशक का नाम छापना अनिवार्य है और पोस्टरों की संख्या सार्वजनिक करना भी लाजिमी है। ऐसा नहीं करना ‘अपराध’ माना जाता है। कुछ घंटों तक यह रहस्य बना रहा कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ पोस्टर-अभियान किसने छेड़ा है? लेकिन ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) के दफ्तर से पोस्टरों से भरी एक वैन निकल रही थी, जिसे पुलिस ने पकड़ लिया। बाद में ‘आप’ के कुछ मंत्रीनुमा नेताओं ने भी कबूल किया कि पोस्टर ‘आप’ ने ही छपवाए हैं। यह प्रधानमंत्री का विरोध-अभियान है, क्योंकि उन्होंने देश को ठगा है और अपने वायदे पूरे नहीं किए हैं।

‘आप’ ने यह मौका जानबूझ कर चुना है, क्योंकि पोस्टर कांड के अगले ही दिन 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव सरीखे क्रांतिकारियों का ‘शहीदी दिवस’ था। इस मौके पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान समेत ‘आप’ के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ‘जंतर-मंतर’ पर विरोध-प्रदर्शन भी किया। बहरहाल पोस्टरकांड से दो बुनियादी सवाल उभरते हैं कि क्या प्रधानमंत्री मोदी वाकई तानाशाह, कायर, मनोरोगी हैं, जैसा कि ‘आप’ के नेता बयान दे रहे हैं? दूसरे, क्या पोस्टरबाजी के जरिए चुनाव जीता जा सकता है और 2024 का आम चुनाव ‘मोदी बनाम केजरीवाल’ होगा? दरअसल हम ‘आप’ की राजनीति से सहमत नहीं हैं, क्योंकि देश के प्रधानमंत्री के लिए इस्तेमाल की गई भाषा ‘लोकतांत्रिक’ नहीं है। दूसरे, ‘मोदी बनाम केजरीवाल’ का चुनावी समीकरण भी ‘हास्यास्पद’ है। लोकसभा में ‘आप’ का एक भी सांसद नहीं है। 2019 के आम चुनाव में ‘आप’ ने कुल 35 उम्मीदवार उतारे थे। उनमें से सिर्फ एक सीट पर भगवंत मान जीत पाए थे। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उस सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें ‘आप’ हार गई। उसके अलावा उप्र, गोवा, उत्तराखंड, मणिपुर, गुजरात, हिमाचल, नागालैंड, मेघालय आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें अधिकांश सीटों पर ‘आप’ प्रत्याशी की जमानत ही जब्त हो गई। ‘आप’ ने पंजाब में प्रचंड जनादेश जरूर हासिल किया है। उसी के आधार पर लोकसभा चुनाव का आकलन नहीं किया जा सकता।

 

 

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