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सीबीआई के घेरे में केजरीवाल

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

सीबीआई के सवालों का सामना करने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल बाहर आए और मीडिया से मुखातिब हुए, तो उन्होंने कहा कि बीते साल 17 सितंबर को शाम 7 बजे प्रधानमंत्री मोदी को उन्होंने 1000 करोड़ रुपए दिए। उन्होंने आरोप को बार-बार दोहराया। फिर सवाल किया कि यदि बिना साक्ष्य के ऐसे आरोप लगाए जाएं, तो उनके क्या मायने हैं? केजरीवाल ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सरीखी स्वायत्त और संवैधानिक जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल किए और कहा कि ऐसे ही बेमानी और बेबुनियादी आरोपों के आधार पर विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंसा जा रहा है। अनर्गल आरोपों के सिलसिले इस कदर जारी रहते हैं कि अदालतें आसानी से जमानतें भी नहीं दे पा रही हैं। केजरीवाल के ऐसे आरोप और ऐसी अवधारणा हास्यास्पद हैं। ये जांच एजेंसियां हमारी व्यवस्था का अंतिम चरण हैं। जब भी कोई घोटाला फूटता है या काले पैसे के पहाड़ जब्त किए जाते हैं अथवा भ्रष्टाचार का कोई गंभीर मामला सामने आता है, तो राज्य सरकारें या प्रभावित-पीडि़त पक्ष सीबीआई जांच की मांग करते रहे हैं। दिल्ली सरकार की आबकारी नीति और कथित शराब घोटाले के संदर्भ में सीबीआई ने केजरीवाल से करीब 9 घंटे की पूछताछ के दौरान 56 सवाल किए।

केजरीवाल का दावा है कि उन्होंने सभी सवालों के माकूल जवाब दिए। मुख्यमंत्री होने के नाते कैबिनेट की जो सामूहिक जिम्मेदारी होती है, वह उसके ‘प्रथम पुरुष’ हैं। सरकार की नई आबकारी नीति बनी, फिर पुरानी नीति पर ही लौटना पड़ा, नीति के तहत शराब के थोक ठेकेदारों को जो फायदे, मुनाफे दिए गए, कथित घूस के आरोप लगे, तो मुख्यमंत्री केजरीवाल उन प्रकरणों से तटस्थ नहीं रह सकते। बेशक उन्होंने किसी फाइल पर अपने हस्ताक्षर किए अथवा नहीं किए, कैबिनेट के फैसले की पहली जिम्मेदारी उनकी है, लिहाजा उन्हें सवालों के कटघरे में आना ही पड़ेगा। केजरीवाल का आरोप है कि यह जांच ही ‘फर्जी’ है, क्योंकि सीबीआई के पास ‘सबूत का एक टुकड़ा’ तक नहीं है। इस निष्कर्ष पर केजरीवाल कैसे पहुंच गए? यह तो अदालत का विशेषाधिकार है। केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं, सांसदों और मंत्रियों को हमारी नेक सलाह है कि वे यह जुमला उछालना बंद कर दें कि वे ‘कट्टर ईमानदार’ हैं।

हम मर जाएंगे, मिट जाएंगे, लेकिन बेईमानी नहीं करेंगे। हमें फंसाया जा रहा है, क्योंकि ‘आप’ देश की नई राजनीतिक ताकत के तौर पर उभर रही है। दरअसल यह छवि देश की आम जनता और अंतत: अदालत ही तय करेंगी। शराब घोटाले को लेकर केजरीवाल के उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया और कुछ मित्रगण और शराब-ठेकेदार फिलहाल जेल में हैं। उन्होंने पूछताछ के दौरान सीबीआई और ईडी को कुछ तो खुलासे किए होंगे। सीआरपीसी की धारा 161 के तहत केजरीवाल के बयान दर्ज किए गए हैं। अब उनका मिलान मौजूदा साक्ष्यों से किया जाएगा और उसी के बाद एजेंसी बयान को सत्यापित करेगी। केजरीवाल सीबीआई जांच से मुक्त नहीं हुए हैं। हम किसी के भी आरोपों की पुष्टि नहीं करते हैं। इसे जांच एजेंसियों और अदालत के विवेक पर छोड़ते हैं। भ्रष्टाचार और बेईमानी का उदाहरण तो उनके स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन हैं, जो करीब 11 महीने से जेल में हैं और अदालत उन्हें किसी भी आधार पर जमानत देने को तैयार नहीं है। केजरीवाल को कई स्तरों पर खुद को साबित करना होगा कि वह राष्ट्रीय नेता के योग्य हैं। बहरहाल शराब घोटाले और उसमें निहित भ्रष्टाचार पर हम अदालत के अंतिम निर्णय तक इंतजार करेंगे।

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