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मध्यप्रदेश में ऊर्जा के नये स्त्रोतों का संरक्षण

-निलय श्रीवास्तव-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

मध्यप्रदेश में आपका स्वागत है। कभी आप इसे बीमारु राज्य के रूप में जानते रहे होंगे लेकिन आज यह प्रदेश विकास का रोल मॉडल बना हुआ है। बुनियादी सुविधाओं से लबरेज मध्यप्रदेश की विकास की यह कहानी डेढ़ दशक पहले आरम्भ हुयी थी और आज प्रदेश का चप्पा -चप्पा विकास की गाथा सुन रहा है। सड़क, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य के साथ ही घटाघोप अंधेरे में रहने वाले मध्यप्रदेश के सैकड़ों गांव अब रोशन हो चुके हैं। विद्यार्थियों को पढ़ने के लिये बिजली की रोशनी मिल रही है तो किसानों के खेतों में पानी पहुँचाने के लिये बिजली की कोई कमी नहीं है। बिजली की कमी को पूरा करते हुए जिन परियोजनाओं पर काम चल रहा है उससे यह कहने में संकोच नहीं है, सन् 2024 के आते-आते आवश्यकता के अनुरूप बिजली पैदा होने लगेगी और मध्यप्रदेश स्थायी रूप से बिजली संकट से मुक्त हो जाएगा। यह कायापलट शिवराज सिंह सरकार के सुनियोजित प्रयासों के फलस्वरूप ही संभव हुआ है। बिजली उत्पादन और उसकी क्षमता बढ़ाने के लिये मध्यप्रदेश में काम जिस तेज गति से चल रहा है उससे संकेत मिलते हैं कि अब प्रदेशवासियों को बिजली संकट से पूर्णरूपेण निजात मिल जायेगी। उक्त दिशा में सरकार तो अपना प्रयास कर रही है, यदि जनभागीदारी भी सुनिश्चित हो तो लक्ष्य आसान हो जायेगा। सबका साथ, सबका विकास के सूत्र वाक्य को चरितार्थ करते हुए शिवराज सिंह सरकार ने गांव और गरीबों का ख्याल रखा है ताकि उनके हक की रोशनी कोई छीन न सके। मध्यप्रदेश में वर्तमान में नवकरणीय और पुनरोपयोगी ऊर्जा के बड़े कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। प्रदेश में पिछले 10 वर्षो में 11 गुना नवकरणीय ऊर्जा का विस्तार हुआ है। प्रदेश में लगभग 5400 मेगावाट क्षमता की नवकरणीय ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। प्रमुख नगरों और कस्बों में सौर ऊर्जा के महत्व पर ध्यान दिया जा रहा है। आमजन को ऊर्जा के व्यय तथा अपव्यय के प्रति जागरूक करने के अलावा ऊर्जा के पारम्परिक एवं वैकल्पिक साधनों की जानकारी देेना भी उतना ही जरुरी है।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा चलाया जाने वाला ऊर्जा साक्षरता अभियान इस दिशा में अति महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इस अभियान के अंतर्गत प्रदेश के सभी नागरिकों को ऊर्जा साक्षर बनाये जाने का प्रयास किया जायेगा। योजना में अधिक प्रभावशाली परिणाम प्राप्त करने के लिये पहला तथ्य यह है कि सभी के व्यवहार में ऊर्जा संरक्षण निहित हो। इसे एक अभियान के तहत् हर गांव-शहर में गंभीरतापूर्वक लिया जाये तो हर व्यक्ति सतर्कता से ऊर्जा की बचत कर सकता है। कम लोग जानते होंगे कि मध्यप्रदेश में उपलब्ध कुल बिजली आपूर्ति का 21 प्रतिशत हिस्सा नवकरणीय ऊर्जा से प्राप्त होता है। यहाँ यह भी बताते चलें कि विगत वर्ष दिसम्बर माह तक लगभग 5100 मेगावाट क्षमता की नवकरणीय ऊर्जा क्षमता की स्थापना की गयी है। इसमें सौर ऊर्जा क्षमता 2432 मेगावाट तथा पवन ऊर्जा क्षमता 2444 मेगावाट है। सौर ऊर्जा का और अधिक उत्पादन करने के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में मध्यप्रदेश दिनोंदिन आगे बढ़ रहा है। देश और दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु असंतुलन और बिजली के अपव्यय से बचाने के लिये मध्यप्रदेश के नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग ने कई नवाचार किए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर सरकार द्वारा नवकरणीय ऊर्जा पॉलिसी 2022 बनाई गई है। प्रदेश में इसके पहले ऊर्जा स्त्रोत पर आधारित चार पृथक नीतियां लागू थीं। इनमें सौर ऊर्जा नीति वर्ष 2012, पवन ऊर्जा नीति वर्ष 2012, लघु हाइड्रो ऊर्जा नीति वर्ष 2011 और बॉयोमास ऊर्जा नीति वर्ष 2011 है। अब राज्य सरकार द्वारा लागू नवकरणीय ऊर्जा नीति में आधुनिक ऊर्जा तकनीको (हाइब्रिड, स्टोरेज और ग्रीन हाइड्रोजन आदि) तथा नवकरणीय ऊर्जा विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहन के लिए कई प्रावधान किये गए है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शब्दों में ’’मध्यप्रदेश में प्रतिदिन 22 हजार मेगावाट बिजली पैदा हो रही है। कोयला तथा पानी पर निर्भरता कम करते हुए सूरज और हवा से भी बिजली उत्पादन का काम तीव्र गति से किया जा रहा है। मई 2023 तक आगर, नीमच एवं शाजापुर संयंत्रों में 1500 मेगावाट सौर बिजली पैदा होने लगेगी। हमारे प्रयास के अनुरूप ओंकारेश्वर बांध में तैरने वाला सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ग्रीन एनर्जी के संकल्प और स्वपन को पूरा करने की दिशा में मध्यप्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है।’’ प्रकृति ने हमारे प्रदेश को ऐसी विशिष्ट स्थिति दी है कि यहाँ ज्यादातर हिस्सों में वर्ष भर में 200 से 250 दिनों तक खुलकर धूप निकलती है। यदि आकाश साफ हो तो किसी जगह की स्थिति के अनुसार प्रतिदिन प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा चार से लेकर सात किलोवाट प्रतिवर्ग किलोमीटर के मध्य होती है। वहीं ठंडे प्रदेशों के धु्रवीय इलाकों को यह अनमोल वरदान नहीं मिला।

सौर ऊर्जा के अनेक वैकल्पिक स्त्रोत हैं। यदि इन स्त्रोतों को पूरी तरह क्रियान्वित किया गया तो प्रदेश में होने वाली बिजली की खपत का पचास प्रतिशत हिस्सा इन सौर ऊर्जा के स्त्रोतों द्वारा पूरा किया जा सकता है। ऊर्जा के गैर पारम्परिक स्त्रोतों के उपयोग को बढ़ावा मिला तो लक्ष्य के अनुरुप बिजली उत्पादन में मदद मिलेगी। सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा जैव ऊर्जा के चलन को प्रचलित करना इसलिये आवश्यक है क्योंकि इनका नवीनीकरण किया जा सकता है। फिर वर्तमान में ऐसे उपाय खोज लिये गए हैं जिनके द्वारा हम सौर ऊर्जा से सीधे अपनी ऊर्जा सम्बंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। यहाँ बताते चलें कि सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की हर संभावना को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तलाशा जा रहा है। निश्चित रुप से सौर ऊर्जा एक उभरता हुआ क्षेत्र है अतः इसमें नित् नये प्रयोग होते रहना चाहिये। सरकार सोलर पैनल या प्लेट निर्माण, बैटरी बनाने की दिशा में भी काम कर सकती है। इससे जुड़े उद्योगों को प्रोत्साहित करने से औद्योगिक विकास के नये रास्ते खुलेंगे। ऊर्जा के उत्पादन के साथ-साथ ऊर्जा की बचत के बारे में भी गहन चिंतन होना चाहिये। यह एक ऐसा गंभीर विषय बन गया है जो सामान्य व्यक्ति के भी जीवन से गहरा सरोकार रखता है। प्रत्येक व्यक्ति को सौर ऊर्जा के बारे में जानकारी लेकर अपने जीवन में इसे जोड़ने के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। इस दिशा में सरकार के साथ जनभागीदारी जरुरी है।

 

 

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