
-प्रकाश कारत-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
अंतरराष्ट्रीय पदक विजेताओं समेत देश के कई शीर्ष पहलवान दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं। वे उस स्थान पर लौट आये हैं जहां उन्होंने पहली बार जनवरी में धरना दिया था क्योंकि सरकार और खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह जो एक भाजपा सांसद हैं तथा कुछ कोचों के खिलाफ कई महिला पहलवानों द्वारा की गई यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की है।
खेल मंत्रालय शुरू से ही शिकायतों को गंभीरता से लेने से इनकार करता रहा है। यही वजह है कि जनवरी में पहलवानों को धरने पर बैठने को मजबूर होना पड़ा था। पॉश अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक जांच लंबित होने तक, प्रतिवादी को किसी भी प्रभाव के पद से हटा दिया जाना चाहिए जो शिकायतकर्ता की मांग पर उसकी भलाई को प्रभावित करता है। फिर भी प्रतिवादी भाजपा सांसद महासंघ के अध्यक्ष के रूप में बने हुए हैं।
महिलाओं के लिए लोकप्रिय समर्थन की बाढ़ के बाद, मंत्रालय को एक महीने के भीतर जांच पूरी करने के लिए एक समिति गठित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, तीन महीने बाद ही रिपोर्ट सौंपी गई, लेकिन शिकायतकर्ताओं को रिपोर्ट की कॉपी नहीं मिली है। यह फिर से कानून का उल्लंघन है। शिकायतकर्ता को किसी भी जांच रिपोर्ट की एक प्रति देना अनिवार्य है ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सके। लेकिन इसके बजाय, मंत्रालय ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि रिपोर्ट प्रक्रियात्मक कमजोरियों की ओर इशारा करती है लेकिन उसमें यौन उत्पीड़न नहीं है।
उसके बाद फिर, धरने पर बैठने से पहले महिला पहलवानों ने नयी दिल्ली के एक पुलिस स्टेशन में एक लिखित शिकायत देकर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी क्योंकि उनके अनुसार उक्त सांसद के आवास में यौन उत्पीड़न के कम से कम चार मामले हुए थे। उनमें एक शिकार नाबालिग भी थी। चूंकि ये मामले उसी थाना के अधिकार क्षेत्र के तहत हुए थे इसलिए कानूनी रूप से पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य है। हालांकि गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली दिल्ली पुलिस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। एक बार फिर यह कानून का मजाक है।
जिस तरह से पूरे मामले को निपटाया गया है, उससे पता चलता है कि सरकार कार्रवाई करने को तैयार नहीं है और समय खरीदना चाहती है। वजह साफ है- बृजभूषण शरण सिंह छह बार के सांसद हैं और उत्तरप्रदेश में गोंडा और आसपास के क्षेत्रों की सत्ताधारी पार्टी के प्रभावशाली सदस्य हैं। उन्हें एक मजबूत आदमी माना जाता है, बाहुबली, आपराधिक पृष्ठभूमि के साथ, और उनका दबदबा पार्टी के लिए उपयोगी है।
अपने नेताओं और यहां तक कि मंत्रियों के खिलाफ लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों के प्रति भाजपा का रवैया उन्हें बचाने और कार्रवाई से बचने की कोशिश करने वाला है। जिस समय पहलवान जनवरी में विरोध कर रहे थे, उस समय हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह के खिलाफ जूनियर महिला कोच की ओर से यौन उत्पीड़न की एक और शिकायत की गई थी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने से इनकार कर दिया और केवल उन्हें खेल विभाग से मुक्त कर दिया।
मंत्रालय से उन्हें हटाने की मांग को लेकर खेल जगत की शख्सियतों और महिला संगठनों द्वारा लंबे समय तक आंदोलन किये जाने के बावजूद, भाजपा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया है। अपना विरोध शुरू करने के बाद, सात महिला पहलवान पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज न करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई हैं। अदालत ने इस मुद्दे को तत्काल उठाने का फैसला किया है क्योंकि मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने पाया कि आरोप गंभीर थे और पुलिस को नोटिस जारी किया था। ऐसा लगता है कि अगर अदालत उन्हें निर्देश देगी तो पुलिस कार्रवाई करेगी।
अपने नेताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करने और भाजपा द्वारा उन्हें बचाने की कोशिश करने का पैटर्न बार-बार आ रहा है। इसके प्रमाण के लिए किसी को भी केवल 2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव में कुख्यात कुलदीप सिंह सेंगर मामले को याद करने भर की आवश्यकता है। भाजपा विधायक सेंगर पर 17 वर्षीय नाबालिग लड़की के बलात्कार का आरोप लगाया गया था और शुरू में राज्य सरकार और पुलिस ने उसे बचाने की भरपूर कोशिश की थी। जनता के आक्रोश और उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया और अंतत: सेंगर को गिरफ्तार कर लिया गया और सजा सुनाई गई। बृजभूषण शरण सिंह मामले में भी इसी पैटर्न का पालन किया गया है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने हाल ही में दावा किया था कि यूपी में ‘अपराधी और असामाजिक लोग अतीत की बात हो गये हैं’। उन्हें यह जोड़ना चाहिए था कि अपवाद केवल वही हैं जो सत्तारूढ़ों के समुदाय और उनके साथ राजनीतिक संबद्धता वाले अपराधी हैं।