EducationPolitics

‘दंगल’ बनेगा सियासी!

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

बीते 16 दिनों से, राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर, जो ‘दंगल’ लड़ा जा रहा है, अब उसका स्वरूप और विस्तार बदलता जा रहा है। अब भी हमारे पदकवीर पहलवान यौन-शोषण, उत्पीडऩ और भद्दी गालियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक के मकसद और मंसूबों पर कोई सवाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे भारत का सम्मान हैं, धरोहर हैं, आन-बान-शान हैं। देश भी चाहता है कि उन्हें यथाशीघ्र इंसाफ मिले और कुश्ती के भीतर जो शैतान मौजूद हैं, उन्हें सजा दी जाए और खेल संघों को खिलाडिय़ों तक ही सीमित रखा जाए। खेल में बाहुबलियों, हैवानों और हवस के प्रतिनिधियों का क्या काम है? उनकी क्या भूमिका हो सकती है? संविधान और लोकतंत्र खेल की आड़ में यौन-हिंसा की जरा-सी भी अनुमति नहीं देते। यदि यह मामला खिंचता जा रहा है और एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लेता जा रहा है, तो यह हमारी व्यवस्था का ही दोष है। किसान संगठन, खाप पंचायतों के चौधरी, अखिल भारतीय स्तर के चार महिला संगठन, पंजाब से भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) की महिलाएं, कर्मचारी और छात्र संगठन, अभिनेता और कई वर्गों के अनाम चेहरे जंतर-मंतर पर पहुंच चुके हैं।

सभी आंदोलित हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और शिक्षा मंत्री आतिशी, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और नवजोत सिंह सिद्धू, किसान नेता राकेश टिकैत, अभिनेता-राजनेता राज बब्बर आदि ने भी पहुंच कर पहलवानों के मकसद और संघर्ष को समर्थन दिया है। इस भीड़ में ऐसे भी चेहरे आ घुसे, जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ ‘सियासी नफरत’ को हवा देने की कोशिश की। यहीं आंदोलन के सियासी होने की आशंका होती है। बेशक पहलवानों के धरना-प्रदर्शन को व्यापकता मिली है, लेकिन हररोज खाप के 11 सदस्य पहलवानों के साथ मौजूद रहेंगे। सरकार और पुलिस को 20 मई तक का अल्टीमेटम दिया गया है। फिर उसके बाद हरियाणा के महम चौबीसी में महापंचायत होगी और खाप यह निर्णय लेंगी कि आंदोलन को राष्ट्रव्यापी रूप कैसे दिया जाए! आखिर इस लड़ाई में खाप जैसों की जरूरत क्या है? यह खेल से जुड़ा आंदोलन है, कोई राजनीतिक, सामाजिक या वैचारिक आंदोलन नहीं है। पहलवानों के लिए खलनायक है-बृजभूषण शरण सिंह। वह भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष रहा है और अब उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। कुश्ती की महिला खिलाडिय़ों के साथ हवस का घिनौना खेल खेलने के आरोप भी उसी के खिलाफ हैं। प्राथमिकी दर्ज किए कई दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक बृजभूषण से सवाल-जवाब नहीं किए गए हैं। सवाल तो यह बेहद गंभीर है कि दिल्ली पुलिस ने अभी तक धारा 164 के तहत न्यायाधीश के सामने पीडि़त महिला पहलवानों के बयान दर्ज क्यों नहीं कराए हैं? पॉक्सो कानून में तो आरोपित की तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। तो फिर पुलिस सोच क्या रही है? क्या जांच की जा रही है? ओलंपिक चार्टर में खेल संघ के ऐसे अधिकारी के खिलाफ उसे हमेशा के लिए खेल की किसी भी संस्था के लिए ‘अयोग्य’ करार देने तक के प्रावधान हैं। बृजभूषण अभी बिल्कुल मुक्त है और अनाप-शनाप वीडियो बयान और इंटरव्यू देने में मस्त है। बेशक देश अंतरराष्ट्रीय पदकवीरों के धरना-प्रदर्शन पर विश्वास कर रहा है कि कुछ तो हुआ है, जो ऐसे पहलवान सडक़ पर बैठने को विवश हुए हैं। बुनियादी चिंता यह है कि आंदोलन भटकना नहीं चाहिए।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker