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भारतीय रेल की बढ़ती कमाई का एक पहलू यह भी

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

प्रतिदिन सबसे अधिक रेल यात्रियों को सफ़र कराने के लिहाज़ से भारतीय रेल दुनिया के पहले व माल ढुलाई के हिसाब से दुनिया के पांच सबसे बड़े रेल नेटवर्क में चौथे नंबर पर है। भारतीय रेल अपने लगभग 65,000 किलोमीटर से भी लंबे रेल नेटवर्क पर इस समय लगभग 12200, यात्री ट्रेनें संचालित करता है। औसतन 2030 मेल एक्सप्रेस ट्रेंस यात्रियों को उनके गंतव्य तक प्रतिदिन पहुंचती हैं। इस समय देश में लगभग 8,300 रेलवे स्टेशन हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ भारतीय रेल से प्रतिदिनलगभग दो करोड़ तीस लाख यात्री सफ़र करते हैं हालांकि कोविड-19 के बाद यह संख्या थोड़ी कम भी हुई है। ग़ौरतलब है कि भारतीय रेल ने वर्ष 2050 तक की यातायात आवश्यकताओं को पूरा करने व 2030 तक बुनियादी ढांचे को विकसित करने की ग़रज़ से राष्ट्रीय रेल योजना (एनआरपी) 2030 तैयार की है। इससे रेलवे की आय में और अधिक वृद्धि हो सकेगी।

इसके अलावा रेलवे स्टेशंस के विकास व आधुनिकीकरण पर भी काम किया जा रहा है। नई रेल लाइंस बिछाई जा रही हैं। देश के जिन अनेक क्षेत्रों से अब तक रेल सम्पर्क स्थापित नहीं हो सका था उन्हें भी रेल के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। भारतीय रेल की अब तक की सबसे तेज़ चलने वाली ट्रेन वंदे भारत ट्रेंस परिचालित की जा रही हैं। जिनकी अधिकतम गति 160 किलोमीटर प्रति घंटे की है। इसे शताब्दी व राजधानी जैसी अब तक की सबसे तेज़ गति वाली ट्रेंस के विकल्प के तौर पर माना जा रहा है। इसके अतिरिक्त रेलवे विद्युतीकरण, लोकोमोटिव और ट्रेनों की ऊर्जा दक्षता में सुधार के साथ स्थाई उपकरणों और प्रतिष्ठानों व रेल स्टेशंस के लिए हरित प्रमाणन प्राप्त करने, डिब्बों में जैव शौचालय बनाए जाने तथा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भरता तथा शून्य कार्बन उत्सर्जन को प्राप्त करना आदि के क्षेत्र में भी भारतीय रेल तेज़ गति से काम कर रहा है।

ज़ाहिर है रेल के विकास व आधुनिकीकरण पर हो रहे भारी भरकम ख़र्च के बीच भारतीय रेल द्वारा राजस्व की कमाई का कीर्तिमान स्थापित करने का समाचार भी काफ़ी सुखद है। रेल विभाग के अनुसार 2022-23 में उसने अपनी आय में कीर्तिमान स्थापित करते हुये 2.40 लाख करोड़ रुपए की कमाई यात्रियों के किराये व माल भाड़े की ढुलाई के माध्यम से की। रेलवे की इस वर्ष की गयी 49000 करोड़ की कमाई से रेल रेवेन्यू में लगभग 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी। कोरोना काल के बाद रेल कमाई में रेवेन्यू की यह अप्रत्याशित बढ़ोतरी बताई जा रही है। इस कीर्तमान स्थापित करने वाली कमाई में केवल रेल पैसेंजर के किराये से ही 61 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जिसके कारण कुल आय 63,300 करोड़ तक पहुँच सकी। जबकि माल भाड़े की ढुलाई से 1.62 लाख करोड़ रूपये कमाये गये जोकि कुल बढ़ोतरी का केवल 15 प्रतिशत है। 2021-22 में यात्री किराये से होने वाली जो आय 39,214 करोड़ थी वह 22-23 में बढ़कर 63,300 करोड़ तक पहुँच गयी। अर्थात 61 प्रतिशत तक बढ़ी। रेलवे ने इस बढ़ती आय को रेलवे की बढ़ती लोकप्रियता के रूप में भी परिभाषित किया है।

बढ़ती जनसँख्या के अनुसार रेल यात्रियों की दिनोंदिन होती बढ़ोतरी तथा बेरोज़गारी के वर्तमान दौर में युवाओं का रोज़गार के लिये इधर उधर निरंतर आते जाते रहना रेल यात्रियों की बढ़ती संख्या व रेल आय में बढ़ोतरी का एक कारण तो है ही। साथ ही रेलवे ने कमाई के कुछ ऐसे तरीक़े भी अपना रखे हैं जिनसे रेल यात्रियों की जेब ढीली कर रेल अपनी आय की बढ़ोतरी में जोड़ रही है। उदाहरण के तौर पर कोरोना काल में कई ट्रेन्स को ‘स्पेशल ट्रेन’ का नाम देकर उनके किरायों में वृद्धि कर दी गयी। अब कॉरोनाकाल भी समाप्त हो चुका है और भारतीय रेल अपनी पूरी क्षमता के साथ राष्ट्रीय स्तर पर रेल परिचालन भी कर रहा है। परन्तु ‘स्पेशल’ का टैग अभी भी तमाम गाड़ियों से नहीं हटाया गया है। और बढ़ा हुआ किराया यात्रियों से धड़ल्ले से वसूला जा रहा है। हद तो यह है कि तमाम लोकल डेमू व एमु ट्रेन जिनसे रोज़ाना करोड़ों कामगार यात्रा करते हैं उनको भी सपेशल व एक्सप्रेस ट्रेन का नाम देकर किरायों में तीन गुना तक की वृद्धि कर दी गयी है। यानी जिन यात्रियों को कोरोना काल पूर्व दस रुपये किराया देना होता था उन्हीं से अब उसी गंतव्य का तीस रुपये वसूला जा रहा है। धन उगाही की आख़िर यह कौन सी रणनीति है?

इसी तरह कोरोना के बहाने सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को रेल किराये में मिलने वाले 50 प्रतिशत तक की छूट को समाप्त कर इस कमाई को भी अपनी ‘कीर्तिमान’ स्थापित करने वाली आय के साधन के रूप में जोड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 के दौरान पुरुष वरिष्ठ नागरिकों से 2,891 करोड़ रूपये की कमाई हुई जबकि महिला वरिष्ठ नागरिकों से 2,169 करोड़ रूपये वसूले गये। जबकि देश के कोने कोने से असहाय वरिष्ठ नागरिकों द्वारा बार बार इस छूट को बहाल करने की मांग भी की गयी। परन्तु असंगठित वर्ग होने के नाते तथा वरिष्ठ नागरिकों का वोट बैंक न होने की वजह से सरकार के कान पर जुआं तक नहीं रेंग रही है। सरकार जानती है कि देश के वरिष्ठ नागरिकों के पास न तो किसानों जैसी ताक़त व एकता है न ही युवाओं व छात्रों जैसी ताक़त जो जंतर मंतर पर बैठकर उनको किराये में दी जाने वाली छूट को सरकार से बहाल करा सकें। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारतीय रेल की बढ़ती कमाई में स्पेशल ट्रेंस के नाम पर, पैसेंजर ट्रेन को स्पेशल या एक्सप्रेस ट्रेन बताकर और वरिष्ठ नागरिकों को रेल किराये में मिलने वाली छूट को समाप्त कर रेल विभाग द्वारा ‘कमाई में कीर्तिमान’ के दावे करना कम से कम नैतिकता पूर्ण तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता।

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