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कर्नाटक चुनाव में नहीं चला, हिंदुत्व का फार्मूला

-सनत कुमार जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं। पिछले 8 वर्षों से कर्नाटक में हिंदुत्व की विचारधारा और हिंदुओं को एकजुट करने के लिए, कर्नाटक में टीपू सुल्तान और हिन्दुत्व को लेकर सुनियोजित रूप से, पिछले 8 वर्षों से अभियान चलाया जा रहा था। जिसमें टीपू सुल्तान ने आठ सौ से ज्यादा हिंदुओं की हत्या की है। टीपू सुल्तान दुर्दांत हत्यारा था। श्रीरंगपट्टनम में हनुमान मंदिर को तोड़कर जामा मस्जिद बनाई गई है। कर्नाटक में हिजाब और अन्य तरीके से मुस्लिमों के खिलाफ एक वातावरण बनाया गया। हिंदुओं को एकजुट करने के लिए बड़े पैमाने पर पिछले 8 वर्षों में प्रयास किए गए। जामा मस्जिद में पुराना हनुमान मंदिर मानकर, वहां पूजा पाठ भी शुरू कर दी गई थी। जिसके कारण कर्नाटक में धार्मिक आधार पर बड़ा ध्रुवीकरण करने की तैयारी की गई थी।
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए। धार्मिक ध्रुवीकरण को कर्नाटक के मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। जिन-जिन क्षेत्रों में विवाद पैदा किया गया था। वहां पर भाजपा के उम्मीदवार इस चुनाव में बुरी तरह से हारे। मलयकोट में भाजपा उम्मीदवार की जमानत जप्त हो गई। अन्य स्थानों पर भी मतदाताओं ने भाजपा के उम्मीदवारों को हराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कर्नाटक के मतदाता सामाजिक सद्भाव को लेकर ज्यादा सजग थे। चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो गया है, कि कर्नाटक सहित दक्षिण के राज्यों में हिंदुत्व का मुद्दा, चुनाव जिताने का कारण नहीं बन सकता है। जैसा कि उत्तर भारत के राज्यों में बना था।
टीपू सुल्तान द्वारा मलयकोट में 800 से ज्यादा हिंदुओं के नरसंहार को लेकर पिछले 8 वर्षों में धार्मिक धुव्रीकरण कयो लेकर जबरदस्त माहौल बनाया गया था। यहां से दर्शन पुतेनैया कांग्रेस के उम्मीदवार थे। इन्हें यहां से 49.97 फ़ीसदी, 91151 वोट मिले। वहीं इसी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के इंद्रेश कुमार को मात्र 3 फ़ीसदी, 6470 वोट मिले। इनकी जमानत जप्त हो गई। इसी तरह श्रीरंगपट्टनम में जामा मस्जिद का मामला पिछले 8 वर्षों से तूल पकड़ रहा था। इस जामा मस्जिद की देखरेख पुरातत्व विभाग कर रहा है। यहां पर कहा गया कि हनुमान मंदिर को तोड़कर जामा मस्जिद बनाई गई थी। हिंदू संगठनों द्वारा यहां पूजा पाठ भी शुरू कर दी गई थी। यहां पर नमाज बंद करने का आंदोलन चलाया गया। विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के रमेश गौड़ा को यहां से 72817 वोट 39.92 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए। वहीं भाजपा के एस सच्चिदानंद को 42000 वोट 22।84 फ़ीसदी प्राप्त हुए रामनगर में भव्य राम मंदिर बनाने का आंदोलन चलाया जा रहा था। इस प्राचीन मंदिर को भव्य राम मंदिर बनाने के लिए कर्नाटक सरकार ने 40 लाख रुपए का बजट भी दिया। इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के इकबाल हुसैन को 87690 मत 47.96 फ़ीसदी वोट प्राप्त हुए हैं। भाजपा के उम्मीदवार गौतम घोड़ा को मात्र 12912 वोट 7.07 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए। इनकी भी करारी पराजय हुई है। कर्नाटक के माइनिंग टायकून जनार्दन रेड्डी के भाई सोमशेखर रेडी, भाजपा की टिकट पर खड़े हुए थे। यह भी तीसरे नंबर पर आए। इन्हें मात्र 37155 वोट मिले। यहां से भी कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराई है।
कर्नाटक चुनाव में इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का असर होता हुआ नहीं दिखा है। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान 91 बार गालियां देने की बात करके, मतदाताओं की सहानुभूति अर्जित करने की कोशिश की। जो निष्फल साबित हुई। प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री इतने शक्तिशाली हैं, इसके बाद भी वह जनता की समस्याओं की लिस्ट नहीं बना रहे हैं, गालियों की लिस्ट बना रहे हैं। इसने मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित किया। इसी तरह बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात को बजरंगबली से जोड़कर हिंदुत्व की लहर पैदा करने की कोशिश की गई। उसका भी उल्टा असर हुआ। आम जनता के बीच में बजरंग दल की अलग छवि है। बजरंगबली की, भगवान के रूप में छवि है। इन सब बातों में गौर करने पर दक्षिण के राज्यों में हिंदुत्व को लेकर भाजपा अपना जनाधार बनाना चाहती थी। उसमें वह विफल साबित हुई है। केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सक्रिय है। तमिलनाडु में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं लगाई जा रही हैं। किंतु दक्षिण के राज्यों में कहीं पर भी हिंदुत्व के मुद्दे पर धुव्रीकरण नहीं हो पा रहा है। यह चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने भी लोगों की सोच को बदलने का काम किया है। मोहब्बत और नफरत की बातें अब आम आदमी भी समझने लगा है। सत्ता के खेल को भी अब आम आदमी समझ रहा है। कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में दो बातें स्पष्ट हो गई। हिंदुत्व का कार्ड दक्षिण के राज्यों में नहीं चलेगा। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू सम्राट के रूप में मतदाताओं में जो विश्वास था, वह भी डगमगाने लगा है। लोगों को जीवन यापन में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। महंगाई और बेरोजगारी अब धर्म से भारी पड़ रही है। भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतने के लिए अब नई रणनीति तैयार करना होगी। अन्यथा धार्मिक ध्रुवीकरण के बल पर जो हो सकता था, वह हो चुका है। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है। इस वास्तविकता को समझने की जरूरत है।

 

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