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केन्द्र व दिल्ली सरकार के मध्य तकरार थमने का नाम नहीं

-विनोद ताकियावाला-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

देश की राजधानी दिल्ली है, जिसे दिलवालों का शहर भी कहा जाता है। यूँ तो दिल्ली का अपना इतिहास है। दिल्ली हमेशा भारत की राजनीति के विश्व की राजनीति के केन्द्र में रहा है। चाहे वह विश्व के उभरते हुए तृतीय महाशक्ति में जी 20 शिखर सम्मेलन के आयोजक के रूप में। आज हम आप के समक्ष केन्द्र सरकार व दिल्ली सरकार के मध्य अपनी शक्ति को लेकर आये दिनो आपसी तकरार देखने को मिलती रहती है। हॉलाकि विगत दिनों दिल्ली केअफसरों पर किसका नियंत्रण होगा, इसका फैसला भले ही माननीय सर्वोच्य न्यायलय ने कर दिया था, लेकिन केंद्र सरकार व दिल्ली सरकार के मध्य आपसी तकरार खत्म होने का नाम नही ले रही है। एक बार फिर से यह मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की है।

आप को बता दें कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 11 मई के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। केंद्र सरकार का यह कदम ऐसे वक्त में आया है, जब एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है, जिसे लेकर एक बार फिर से केन्द्र सरकार व दिल्ली सरकार के बीच तकरार बढ़ती दिख रही है। आप को पता है कि बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था। दरअसल, केंद्र सरकार ने ‘दानिक्स’ काडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया था। इस अध्यादेश जारी किए जाने से महज एक सप्ताह पहले ही सुप्रीम कोर्ट के संबैधानिक पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया था। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश आने से पहले ही शुक्रवार को दिन में यह आरोप लगाया था कि केन्द्र उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए एक अध्यादेश जारी करने की योजना बना रही है।

केन्द्र द्वारा लाये गये इस अध्यादेश में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा आयोग नाम का एक आयोग होगा, जो उसे प्रदान की गई शक्तियों का उपयोग करेगा और उसे सौंपी गई। जो अपनेजिम्मेदारियों का निर्वहन करेगा। इस आयोग में दिल्ली के मुख्यमंत्री उसके अध्यक्ष होंगे। मुख्य मंत्री के अलावे इसमें मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह) सदस्य होंगे। इस अध्यादेश मंत कहा गया है कि आयोग द्वारा तय किए जाने वाले सभी मुद्दों पर फैसले उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से होगा। आयोगकी सभी सिफारिशों का सदस्य सचिव सत्यापन करेंगे। इस अध्यादेश में कहा गया है कि आयोग उसके अध्यक्ष की मंजूरी से सदस्य सचिव द्वारा तय किए गए समय और स्थान पर बैठक करेंगे। इसमे में कहा गया है।

आयोग की सलाह पर केन्द्र सरकार जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु इसके (प्राधिकरण के) लिए आवश्यक अधिकारियों की श्रेणी का निर्धारण करेगी और आयोग को उपयुक्त अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी। इसमें कहा गया है, वर्तमान में प्रभावी किसी भी कानून के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण ‘ग्रुप-ए’ के अधिकारियों और दिल्ली सरकार से जुड़े मामलों में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ अधिकारियों के तबादले और पदस्थापन की सिफारिश कर सकेगा…लेकिन वह अन्य मामलों में सेवा दे रहेअधिकारियों के साथ ऐसा नहीं कर सकेगा। केन्द्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी(आप)ने इसे उच्चतम न्यायालय के साथ ‘छलावा’ करार दिया है। जिसने 11 मई के अपने आदेश में दिल्ली सरकार में सेवारत नौकरशाहों का नियंत्रण इसके निर्वाचित सरकार के हाथों में सौंपा था। सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को इसके दायरे से बाहर रखा था। जीएनसीटीडी बिल में संशोधन कर जारी अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश के साथ विधायिका के साथ है।

केन्द्र सरकार की ओर तर्क दिये गये है कि दिल्ली में देश-विदेश से जुड़े कई संस्थान हैं, जिनकी सुरक्षा का इंतजाम केंद्र सरकार के हाथ में होना जरूरी है। यह देश की छवि को दुनियाभर में अच्छे से प्रदर्शित करने के लिए जरूरी फैसला है। अब केंद्र सरकार ने शुक्रवार (19मई) को एक अध्यादेश के जरिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है, जिसके जरिये दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार केजरीवाल सरकार की बजाय उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के पास ही रहेंगे। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट से प्रशासनिक मामलों में केजरीवाल सरकार को मिली बड़ी जीत इस अध्यादेश के बाद किसी काम की नहीं रही है। आपको बता दे कि यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र सरकार की ओर से अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया है। 21 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातिऔरअनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट) के दुरुपयोग को देखते हुए दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अधिकारी की इजाजत के बाद ही हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ देशभर में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों ने 2 अप्रैल को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था। जो बाद में एक उग्र प्रदर्शन में बदल गया और इस प्रदर्शन में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों में गुस्से को देखते हुए केंद्र सरकार ने एस सी-एस टी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए बदलावों को वापस ले लिया। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से एक अध्यादेश लाया गया। जिसे कैबिनेट मीटिंग में मंजूरी दे दी गई। वहीं 10 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी कानून में संशोधन के खिलाफ लगी याचिकाओं को खारिज कर केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी थी। आप को बता दे कि विगत दिनों केन्द्र सरकार द्वारा अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष लाम बध हो रहा है। इस बात की पुष्टि बिहार के मुख्यमंत्री व विपक्षी एकता के सुत्रघार नीतीश कुमार के इस बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमलोग पूरे दिल से दिल्ली के लोगों और अरविंद केजरीवाल के साथ हैं। केंद्र सरकार संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही है।

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने सीएम केजरीवाल से की मुलाकात आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से रविवार सुबह उनके आवास पर मुलाकात करने के बाद बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बड़ा बयान दिया है। पत्रकारो को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र की सरकार अरविंद केजरीवाल को परेशान कर रही है। अगर दिल्ली में बीजेपी की सरकार होती तो उप राज्यपाल में हिम्मत होती इस प्रकार का काम करने की?दिल्ली में बीजेपी कभी वापसी नहीं करेगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीएम अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के बाद पत्रकारों को बताया कि हमलोग पूरे दिल से दिल्ली के लोगों और अरविंद केजरीवाल के साथ हैं। केंद्र सरकार संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही रहा, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा जो करने की कोशिश हो रही है वह सही नहीं है। सभी को एकजुट होना होगा। हम केजरीवाल के साथ हैं, ज्यादा से ज्यादा विपक्षी पार्टियों को एक साथ मिल कर अभियान चलाना होगा।

इसके अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, नीतिश कुमार पूरी तरह से दिल्ली के लोगों के साथ हैं। अगर सारा विपक्ष एक हो जाता है तो राज्यसभा में यह अध्यादेश गिर जाएगा और 2024 से पहले बीजेपी की हार होगी। केजरीवाल ने कहा कि परसों तीन बजे कोलकाता में ममता बनर्जी के साथ हमारी मीटिंग हैं। राज्यसभा में इस बिल को गिराने के लिए मैं देश में सभी पार्टी अध्यक्ष से मिलने के लिए जाऊंगा। आज मैंने नीतीश से भी अनुरोध किया कि वो भी इस संदर्भ में सभी पार्टियों से बात करें। मैं भी हर राज्य में जाकर, राज्यसभा में जब ये बिल आए। तब इसे गिराने के लिए सभी से समर्थन के लिए बात करूंगा। फिलहाल न्यायलय की ग्रीष्म कालीन अवकाश प्रारम्भ हो गया है। हमारे लोकतंत्र की इतिहास में विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका अनोखा सामंजस्य का स्थापित करने के लिए संविधान निर्माताओं द्वारा प्रावधान किया गया है। लेकिन आये दिनों तीनो के बीच तरकार की स्थिति देखने को मिलाता रहता है। जो कि लोकतंत्र के लिए एक खतरे की घंटी है। खैर केन्द्र व दिल्ली की जनता के द्वारा चुनी गई बहुमत की केजरीवाल सरकार को अपने अधिकार क्षेत्र के लिए इंतजार अभी करना पड़ेगा!

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