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केंद्रीय मंत्रालयों में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की संयुक्त सचिव और निदेशक के पद पर नियुक्ति

-सनत कुमार जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के पद पर निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति देने का फैसला किया है। केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा संघ लोक सेवा आयोग से केंद्र सरकार के 12 मंत्रालयों के लिए लेटरल एंट्री मोड में भर्ती करने को कहा है। अर्थात निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति सीधे उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव पद के लिए अनुबंध के आधार पर हो सकेगी। अभी तक इन पदों में भारतीय सेवा के ग्रुप ए के अधिकारियों को नियुक्त किया जाता था। अब इन पदों पर निजी क्षेत्र के योग्य व्यक्तियों को कांटेक्ट आधार पर रखा जाएगा। इसके लिए संघ लोक सेवा आयोग ने 30 मई से 19 जून के बीच आवेदन पत्र आमंत्रित किए हैं। संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा यह भर्तियां कृषि और किसान कल्याण, नागरिक उड्डयन, रसायन और पेट्रोकेमिकल, रसायन और उर्वरक, कारपोरेट मामलों के मंत्रालय, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, भारी उद्योग मंत्रालय इत्यादि में नियुक्त किए जाएंगे। केंद्र सरकार ने 2018 में पहली बार निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को सीधे संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति दी थी। इसके बाद अक्टूबर 2021 में भी केंद्र सरकार की सिफारिश पर 31 उम्मीदवारों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था। यह तीसरा मौका है, जब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को सीधे केन्द्र सरकार के उच्च पदों पर नियुक्ति दी जाएगी।

अभी तक केंद्रीय मंत्रालय में उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव के रूप में भारतीय सेवा के अधिकारी ही प्रमोशन के द्वारा नियुक्त होते आ रहे थे। इन्हें 10 से 15 साल का प्रशासनिक एवं नीतिगत अनुभव होता था। लेकिन 2018 के बाद से निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को नियुक्ति दी जा रही है। जिसके कारण भारतीय प्रशासनिक तंत्र में बड़े पैमाने पर अफरा-तफरी की स्थिति बन गई है। भारतीय सेवा के विभिन्न संवर्ग के अधिकारियों में नवीन व्यवस्था को लेकर नाराजी देखने को मिल रही है। सरकारी अधिकारियों के प्रमोशन नहीं हो रहें हैं। जिस तरह की स्थितियां सरकार की हैं। उनके विवाद न्यायालयों में जिस तरीके से लंबित हैं। किसी भी मामले में कोई स्पष्ट निर्णय न्यायालय से भी नहीं हो पा रहा है। हर और भय का वातावरण बना हुआ है। पिछले 65-70 सालों में जो व्यवस्थाएं बनी थी। वह धीरे-धीरे टूटती हुई चली जा रही हैं। व्यवस्था बनने में बहुत समय लगता है। लेकिन एक बार व्यवस्था बिगड़ जाए, तो उसको बनाने में फिर कई दशक लग जाते हैं। केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय और सरकार इस मामले में गंभीर नजर नहीं आती है। निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को यदि शीर्ष पदों पर लाना है, तो उसके लिए भी कोई कैडर अथवा पद इत्यादि का वर्गीकरण नहीं किया गया है। अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे देशों में जो मंत्री बनाये जाते हैं। वह इन्ही विषयों के विशेषज्ञ होते हैं। वहॉ पर उनकी कानूनी एवं नैतिक जिम्मेदारी भी होती है। भारत में ऐसा कोई नियम नहीं है। यहॉ मंत्री पद बिना किसी विशेषज्ञता के मिल जाता है। ऐसी स्थिति में मंत्री अथवा निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ जिन्हे अनुबंध के आधार पर कुछ ही वर्षों के लिए रखा गया है। कोई गडबड़ी होगी तो जिम्मेदारी किसकी होगी। यह तय नहीं है। तुगलकी फरमान की तरह सरकार के आदेश होते हैं। सभी संस्थाएं आदेशों का क्रियान्वयन करने लगती हैं। जिम्मेदारी अब किसी की नहीं होगी। यह चिंता का विषय है।

 

 

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