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आम जन को राहत बनाम मुफ्त रेवड़ी कल्चर राजनीतिक बोल

-डॉ. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

चुनाव पूर्व सभी राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र में सत्ता आने पर आम जन को अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराने, नये-नये चिक्तिसालय, विद्यालय, महाविद्यालय खोलने, गरीबी रेखा से नीचे वाले को मुफ्त राशन, गैस सिलेंडर, शिक्षा, चिक्तिसा, आदि उपलब्ध कराने, किसानों मजदूरों को तरह-तरह की राहत देने, छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति, लैप टैब, स्कुटी, वृद्धा, विकलांग, विधवा को पेंशन, निशुल्क तीर्थ यात्रा, यात्रा में राहत, आयकर छूट के दायरे में वृद्धि किये जाने के साथ-साथ अनेक तरह की सुविधाएं अपलब्ध करने का उल्लेख करती है और सत्ता आने पर कुछ घोषणाएं गुम हो जाती है, कुछ घोषणाएं बजट सत्र के दौरान पारित कर आम जन को उपलब्ध करने की कोशिश भी करती है। इस प्रक्रिया में सत्ता पक्ष अपने कार्यकाल के अंतिम बजट सत्र में आम जन को अधिक से अधिक राहत देने का बजट पारित कर यह जताने का पूरा प्रयास करता है कि फिर से सत्ता में आने पर आम जन को इससे भी बेहतर एवं अधिक राहत मिलेगी। निश्चित तौर पर राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई जा रही इस तरह की प्रक्रियाएं आम जन को आकर्षित कर सत्ता पाने की ललक होती है। जिसमें आये दिन निरतंर वृद्धि देखी जा सकती है। जिसे मुफ्त रेवड़ी कल्चर कहा जा रहा है। इस दिशा में केई किसी से कम नहीं।

जिस राजनीतिक दल ने आम जन को दी जाने वाली राहत को मुफ्त रेवड़ी कल्चर नाम देकर विरोध जताया वहीं राजनीतिक दल इस तरह की प्रक्रिया में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहा है। आम जन को दी जाने वाली राहत स्वयं घोषित करे तो सही पर वहीं दूसरा घोषित करे तो मुफ्त रेवड़ी कल्चर। अभी हाल ही में मघ्यप्रदेश जहां इस वर्ष के अंतराल में विधान सभा चुनाव होने जा रहे है वहां जब विपक्ष कांग्रेस ने सत्ता में आने पर पेंशन राशि को 1000 रुपए से बढ़ाकर 1500 रुपए देने की घोषणा की तो वहां की भाजपा सरकार ने 1000 रुपए की राशि को क्रमशः बढ़ाकर 3000 रुपए तक करने के साथ-साथ अनेक राहत देने की घोषणाएं कर डाली। जब कि दिल्ली, पंजाब में सत्ताधारी आप द्वारा आम जन को बिजली में 200यूनिट फ्री देने एवं आम जन को दी जाने वाली अनेक राहत को केन्द्र की सत्ताधारी भाजपा ने मुफ्त रेवड़ी कल्चर बताकर विरोध जताना शुरू किया। जब उसकी नजर में आम जन को दी जाने वाली इस तरह की तमाम राहत मुफ्त रेवड़ी कल्चर है तो वह इस दिशा में अपना पग क्यों बढ़ाती नजर आ रही है। इस तरह के परिवेश पर उभरते प्रश्नों का जबाब देश की अवाम जानना चाहती है।

देश में रहने वाले हर नागरिक की सामाजिक, आर्थिक दशा एक जैसी नहीं है। कुछ बहुत अमीर है कुछ बहुत ही गरीब। इनके बीच समायी है देश की सर्वाधिक मध्यम वर्ग की जनता जो सर्वाधिक सरकार को टैक्स देती है पर अपना दुखड़ा किसी से कह नहीं सकती। जो बहुत गरीब है उसे तो हर प्रकार की सुविधाएं हर सरकार देती है पर जो मध्यमवर्गीय वेतनभोगी, किसान, आम मजदूर परिवार है जिसके कंधों पर परिवार चलाने का सर्वाधिक भार है, जिसकी आमदनी दिन पर दिन पर बढ़ते जा रहे टैक्स के भार तले छोटी होती जा रही है,उसकी कोई चिंता नहीं करता। जब उसे कुछ राहत मिलने की बात सामने आती है तो मुफ्त रेवड़ी बांटने की वकालत होने लगती है। देश का जन नेता जो वेतन भोगी है जनतंत्र का राजा है, उसके लिये सबकुछ मुफ्त है, पर आम जन को जब राहत देने की बात सामने आती है तो उसे मुफ्त रेवड़ी कल्चर की संज्ञा दे दी जाती है। जब कि सरकार द्वारा आम जन को दी जाने वाली राहत पाने का आमजन का मौलिक अधिकार है। विदेश के कई देशों में वृद्धजन एवं बेरोजगारों की सारी जिम्मेंवारी वहां की सरकार उठाती है। यहां तो अभी भी इस दिशा में हमारा देश पीछे है। आम जन को दी जाने वाली राहत कभी भी मुफ्त रेवड़ी कल्चर नहीं हो सकती। आम जन को दी जाने राहत बनाम मुफ्त रेवड़ी कल्चर केवल राजनीतिक बोल है।

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