EducationPolitics

जलवायु परिवर्तन: प्रदूषण, राजनीति व नीतियों से बढ़ता तापमान, पृथ्वी को बचाने के लिए नहीं है कोई प्लान बी

-शंकर अय्यर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

जब न्यूयॉर्क के लोग एक असाधारण स्थिति से निपटने के लिए जूझ रहे थे, तब राष्ट्रीय मौसम सेवा द्वारा ट्विटर पर एक वीडियो साझा किया गया, जो सभी जगह वायरल हो गया। इससे उन लोगों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई, जिनके लिए खराब गुणवत्ता वाली हवा अपरिहार्य परिस्थिति है।

जहरीली हवा की समस्या दुनिया भर की वास्तविकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 2022 की एक रिपोर्ट बताती है कि 117 देशों के 6,000 शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है, ‘उच्च आय वाले देशों के 17 प्रतिशत शहरों की हवा गुणवत्ता दिशा-निर्देशों से नीचे है।’ गरीब देशों की स्थिति तो और भी खराब है। निम्न व मध्यम आय वाले देशों में एक प्रतिशत से भी कम शहरों में वायु गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ की सीमा का अनुपालन करती है। यह एक ऐसा तथ्य है, जिसकी भारत के लाखों लोग, खासकर उत्तर भारत के शहरों और कस्बों के लोग, जो हर सर्दियों में सांस लेने के लिए हांफते हैं, और विकासशील दुनिया के कहीं के भी लोग गवाही देंगे। यह इससे भी स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण से दुनिया में सालाना 65 लाख से अधिक लोग जान गंवाते हैं।

स्मॉग शब्द 1905 में कभी अस्तित्व में आया था, जब लंदन और ब्रिटेन के अधिकांश हिस्से में भारी प्रदूषण था और बहुत लोगों की मौत हुई थी। ब्रिटिश स्वास्थ्य अधिकारी एचए डेस वोक्स ने स्मॉग शब्द गढ़ा था। ब्रिटिश शहरों में ‘वायुमंडलीय स्थितियों’ पर खराब पर्यावरण प्रबंधन के प्रभाव को परिभाषित करने के लिए उन्होंने इसका इस्तेमाल किया था। यानी प्रदूषण तब एक स्थानीय घटना थी।

जलवायु परिवर्तन का इस्तेमाल 1970 के दशक के बाद किया जाने लगा। ऑस्ट्रेलिया, अमेजन, कनाडा, रूस व अमेरिका में हर साल करीब 40 लाख वर्ग किलोमीटर वनस्पति जलती है, जो गैसों का उत्सर्जन करती है, जिससे राष्ट्रीय सीमाओं से परे हवा की गुणवत्ता खराब होती है और ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति बिगड़ती है।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (यूएन आईपीसीसी) द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम दोहन को रेखांकित किया गया है। इसमें कहा गया है कि ‘पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से हमने जो भी देखा है, वह सभी मानवीय गतिविधियों का परिणाम है।’ इसमें कोयला जलाना, कृषि और जंगलों की कटाई शामिल है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ गया है और ग्लोबल वार्मिंग हो रही है।

मानवीय गतिविधियों व नीतिगत निष्क्रियता के संयोजन ने हवा, पेयजल और भोजन, तीनों में जहर घोल दिया है। यूएन वाटर के आंकड़े बताते हैं कि दो अरब से ज्यादा लोग सुरक्षित पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं और 2.3 अरब लोग पानी की कमी वाले देशों में रहते हैं। भूजल मानव खपत का एक बड़ा हिस्सा है और उसे उर्वरकों, कीटनाशकों, औद्योगिक एवं खनन कचरे, पेट्रोलियम उत्पादों तथा ठोस अपशिष्ट लैंडफिल से प्रदूषण का बड़ा खतरा है। लांसेट की एक रिपोर्ट बताती है कि 2019 में 14 लाख अकाल मृत्यु के लिए जल प्रदूषण जिम्मेदार था। भूजल में आर्सेनिक व फ्लोराइड की मौजूदगी के अलावा प्लास्टिक व औद्योगिक कचरे सहित ठोस कचरे भी होते हैं। विश्व बैंक के मुताबिक, आबादी वाले क्षेत्र में उथले भूजल को प्रदूषण के जोखिम के रूप में माना जाना चाहिए।

‘उपभोग करो और फेंको संस्कृति’ का असर समझने के लिए एक उपयोगी पैमाना प्लास्टिक के जहरीले कचरे की मात्रा है। वैश्विक स्तर पर अब तक उत्पन्न सात अरब टन प्लास्टिक कचरे में से 10 प्रतिशत से भी कम को रीसाइकल किया गया है। अनुमानत: दुनिया में सालाना करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। करीब एक करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में चला जाता है, जो समुद्री प्रदूषण का 80 प्रतिशत हिस्सा है। प्लास्टिक के सूक्ष्म कण खाद्य शृंखला में प्रवेश करते हैं, जैसे कि मछली और शेलफिश में। वायु व जल प्रदूषण से सिर्फ समुद्री खाद्य प्रभावित नहीं होता। वर्ष 2019 के एक अध्ययन का अनुमान है कि अमेरिका में एक व्यक्ति प्लास्टिक के औसतन 74,000 से 1,21,000 सूक्ष्म कणों का उपभोग करता है।

प्रदूषण, राजनीति और नीतियां ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही हैं। आईपीसीसी ने 2023 की अपनी रिपोर्ट में चेताया है कि ‘वातावरण, महासागर, क्रायोस्फीयर और बायोस्फीयर में व्यापक और तेजी से परिवर्तन हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग में हर वृद्धि कई और खतरों को बढ़ाएगी।’ मानव जनित जलवायु परिवर्तन से सूखे, भारी बारिश और गर्मी की लहरों जैसी चरम घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हो रही है। दुर्भाग्य से लोग चरम मौसमी घटनाओं को अलग-अलग करके देखते हैं। इस साल की शुरुआत में, नासा के एक विश्लेषण से पता चला कि ‘2022 में पृथ्वी की औसत सतह का तापमान प्रभावी रूप से 2015 के साथ पांचवें सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है।’

बढ़ता तापमान नई चुनौतियां पेश कर रहा है। मार्क सी प्रोसेर, पॉल डी विलियम्स, ग्रीम जे मार्लटन और आर जाइल्स हैरिसन द्वारा किए गए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि क्लियर एयर टर्बुलेंस ‘भावी जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया में तेज होने का अनुमान है।’ क्लियर एयर टर्बुलेंस उड़ानों को प्रभावित करता है, जिसका विमान सुरक्षा और लाखों हवाई यात्रियों के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। वैश्विक तापमान के अनुमान बिगड़ते जा रहे हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने पाया कि ‘इस बात की 98 फीसदी आशंका है कि अगले पांच वर्षों में से कम से कम एक और पूरे पांच साल की अवधि सबसे गर्म होगी।’

यह पृथ्वी प्रदूषण में भारी वृद्धि, जैव विविधता के त्वरित नुकसान और तीव्र जलवायु परिवर्तन परिणामों के संयोजन का सामना कर रही है। याद रहे कि 1905 के बाद से, जब स्मॉग शब्द शब्दकोश में आया, दुनिया की आबादी 1.6 अरब से बढ़कर आठ अरब, जीडीपी 34 खरब डॉलर से बढ़कर 1,050 खरब अमेरिकी डॉलर हो गई है। आबादी की जरूरतों के कारण ‘उपभोग करो और फेंको संस्कृति’ की चाहत और राजनीतिक उपेक्षा की धुंध से दबाव बढ़ गया, जो धरती पर दिखाई दे रहा है। विनाशकारी परिदृश्य से बचने के लिए हमेशा एक प्लान बी होता है। लेकिन पृथ्वी को बचाने के लिए कोई प्लान बी नहीं है! न्यूयॉर्क के क्षितिज के दृश्य आत्मनिरीक्षण और कार्रवाई की याद दिलाते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker