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चुनाव से पूर्व कांग्रेस के सामने अनेक चुनौतियां

-डा. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

आगामी वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव है, इससे पूर्व वर्ष के अंतराल में देश के पांच राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम, में विधानसभा के चुनाव है जहां राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। मध्यप्रदेश में पूर्व में कांग्रेस की ही सरकार थी पर कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से अलग होकर तत्कालीन विपक्ष भाजपा से हाथ मिलाने के बाद वहां भाजपा सरकार सत्ता में फिर से आ गई। लोकसभा चुनाव से पूर्व सत्ता पक्ष को सत्ता से दूर कर सत्ता तक पहुंचने के प्रयास में विपक्षी दलों ने आई.एन.डी.आई.ए. अर्थात इंडिया का गठन किया है जिसमें आज के समय में कांग्रेस सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। इस गठबंधन में फिलहाल देश के कांग्रेस सहित 26 विपक्षी दल शामिल है। इन दलों में अधिकांश राजनीतिक दल ऐसे है जिनका क्षेत्र में अपना काफी प्रभाव है पर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस ही इस गठबंधन में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। वर्षो तक केन्द्र एवं प्रदेश में सत्ता में बने रहने के कारण आज भी देशभर में अन्य विपक्षी दलों के मुकाबले कांग्रेस के कार्यकर्ता सर्वाधिक है जो हर तरह से कांग्रेस से जुड़े हुये है। इन विपक्षी दलों में शामिल आप जिसकी सरकार दिल्ली एवं पंजाब में है। जदयू एवं राजद की सरकार बिहार में है। सपा की सरकार उत्तर प्रदेश में फिलहाल तो नहीं पर उसका प्रभुत्व यहां कांग्रेस से ज्यादा ही है। तृणमूल कांग्रेस जिसकी सुप्रिमों ममता वनर्जी पूर्व में कांग्रेस में रह चुकी है, उसकी सरकार पं. बंगाल में है जहां पूर्व में विपक्षी एकता में शामिल वाम वाम दल माकपा की सत्ता रही है। झामुमो की सत्ता झारखंड में है। इन विपक्षी दलों में शामिल केवल वाम दलों का कांग्रेस के साथ संबंध सदैव बना रहा, सपा,राजद, जदयू कांग्रेस के विरोधी ही रहे। आप अपने आप को कांग्रेस का विकल्प बताते रहा। इस तरह तो आप से सबसे ज्यादा खतरा कांग्रेस के अस्तित्व को है। विपक्षी दलों में शामिल प्रमुख राजनीतिक दल आप, सपा, राजद, जदयू, झामुमो आदि के पास आज जो वोट बैंक है वह कभी कांग्रेस के पास हुआ करता थां। इस कड़ी में बसपा के वोट बैंक भी कांग्रेस के पास के हीं वोट बैंक है। इस तरह कांग्रेस के वोट बैंक इन दलों में चले जाने के कारण उत्तर भारत से कांग्रेस के पांव उखड़ से गये।
पंजाब की सत्ता कांग्रेस के पास रही पर कांग्रेस नेतृत्व की अनदेखी के चलते हाथ की सत्ता आप के पास चली गई। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब में विधान सभा चुनाव के आस – पास वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैं. अमरेन्द्र सिंह को नहीं बदलते तो आप की पहुंच सत्ता तक नहीं होती। आज के परिवेश में लोकसभा चुनाव में आप सत्ता में होने के कारण पंजाब की सर्वाधिक सीट पर चुनाव लड़ना चाहेगी, यह वहां के कांग्रेसियों को कतई स्वीकार नहीं होगा जिसकी गूंज अभी से दिल्ली से आनी शुरू हो गई है जहां कांग्रेस ने दिल्ली की सभी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।जो आप को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं होगा। कांग्रेस की इस घोषणा से आप एवं कांग्रेस के बीच दूरी बढ़ती नजर आने लगी है जो विपक्षी एकता में दरार पैदा कर सकता है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस विधानसभा की सभी सीट पर चुनाव लड़ सकती है जहां बसपा एवं आप ने भी सभी सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुके है। इन राज्यों में सीधी टक्कर कांग्रेस एवं भाजपा के बीच हीं है। पर आप एवं बसपा कांग्रेस के वोट बैंक को बिगाड़ सकते है। इस तरह की स्थिति लोकसभा चुनाव में भी उभर सकती है।
कांग्रेस पर शुरू से गांधी परिवार का ही वर्चस्व रहा है। यह भी सच्चाई रही है कि जब भी कांग्रेस गांधी परिवार से अलग हुई, जम नहीं पाई, बिखर गई। ऐसे परिवेश में कांग्रेस को समेटना एवं मजबूत बनाने का पूरा दायित्व गांधी परिवार के कंधों पर निर्भर है। कांगेस में गांधी परिवार से जुड़े श्रीमती सोनिया गांधी जिनके नेतृत्व में कांग्रेस केन्द्र में 10 वर्ष तक सत्ता में रही जहां गांधी परिवार के पास सत्ता आने पर देश का प्रधानमंत्री गांधी परिवार से अलग हटकर डॉ. मनमोहन सिंह बने। इसी परिवार के कांग्रेस युवा नेता राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने पर चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद अघ्यक्ष पद छोड़ दिया। उसके बाद अध्यक्ष पद पर गांधी परिवार की ओर से किसी के नहीं आने की घोषणा बाद मल्लिकार्जुन अध्यक्ष बने।
राहुल गांधी ईमानदार, मेहनती, जूझारू जरूर है पर राजनीतिज्ञ नहीं जिसके वजह से कांग्रेस को कई मामलों में कमजोर होना पड़ा। भारत जोड़ो यात्रा में जिस दृढ़ता, कुशलता, का परिचय दिया, कांग्रेस उससे मजबूत हुई है। कांग्रेस के वे भावी नेता है जिनमें अधिकांश कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे है। लोकसभा चुनाव में भी राहुल बनाम मोदी का मुद््दा उभर सकता है। पर राहुल गांधी की बचकानी हरकतें उन्हें कमजोर करती जा रही है। ऐसे परिवेश में राहुल गांधी को गंभीर व्यक्तित्व उभारना होगा। प्रियंका बडेरा अच्छी वक्ता है।इसी परिवार से जुड़ा एक और गांधी परिवार वरूण गांधी, मेनका गांधी है जो फिलहाल भाजपा में है। वरूण गांधी अच्छे वक्ता है जिनके फिलहाल तेवर वर्तमान भाजपा सरकार के खिलाफ है। गांधी परिवार से अलग हटकर कई कांग्रेसी नेता अभी भी कांग्रेस में मौजूद है जिनके आगे होने से कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
विपक्षी एकता का चुनाव पूर्व क्या स्वरूप होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता पर कांग्रेस के सामने अनेक चुनौतियां है। जहां उसके दुश्मन ज्यादा, मित्र बहुत कम है। कांग्रेस में अच्छें नेताओं की आज भी कमी नहीं है। पर ऐसे परिवेश में कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने एवं बेहतर बनाने की दिशा में अच्छे नेताओं को जो किसी कारण गुमनाम हो रहे है, आगे कर महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है। इसके लिये, कांग्रेस से बाहर जाते कदम पर विराम लगाना एवं बाहर गये कांग्रेस नेताओं को ऐनकेन प्रकारेण वापिस लाना सकरात्मक प्रयास हो सकता है। जिसमें वर्तमान गांधी परिवार की भूमिका अग्रणी हो सकती है। गांधी परिवार के प्रयास से पूरा गांधी परिवार एक जगह तो बैठ सकता ही है, पुराने सुलझे हुये कांग्रेसी नेता भी सक्रिय हो सकते। सत्ता की लड़ाई में इस तरह का कदम कांग्रेस के लिये हितकर साबित हो सकता है।

 

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