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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कमजोरी उजागर

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

जी 20 का आयोजन भारत में हो रहा है। भारत इसका अध्यक्ष है। पिछले 1 साल से जी-20 के सदस्य देशों के विभिन्न स्तर के अधिकारियों और मंत्रियों की कई दौर की बैठक हो चुकी हैं। हाल ही में जो बैठक दिल्ली में आयोजित हो रही है। उसमें सभी राष्ट्रो के राष्ट्र अध्यक्षों को नई दिल्ली आना था। जो जानकारी प्राप्त हो रही है, उसमें रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी नहीं आ रहे हैं। भारत में जी 20 सदस्य देशों के जो राष्ट्राध्यक्ष आ रहे हैं। उन में अधिकांश यूरोपीय देशों के हैं। चीन और रूस जैसी महा शक्तियों के राष्टट्राध्यक्षों को शामिल नहीं होना, भारत की कूटनीतिक हार के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो वाईडेन जी 20 की बैठक में शामिल हो रहे हैं। रूस और चीन के राष्ट्रपति के जी 20 की बैठक में भारत नहीं आने से अब इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया सारी दुनिया के देशों में हो रही है। ब्रिक्स देशों की बैठक में चीन के राष्ट्रपति से भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात हुई। लेकिन उसके कोई सार्थक परिणाम देखने को नहीं आए। उसके तुरंत बाद चीन की ओर से यह खबर आना ‎कि शी जिनपिंग भी नहीं आ रहे हैं। यह भारत के लिए चिंता करने वाली बात है। पिछले 8 महीना से चीन का कोई राजदूत भारत में नहीं है। अमेरिका ने भी करीब ढाई साल तक भारत में अपना कोई राजदूत नहीं रखा था। कहीं ना कहीं भारत विदेशी कूटनीति और भारतीय विदेश नीति को लेकर बिछड़ता हुआ दिख रहा है। भारत हमेशा से एक गुटनिरपेक्ष देश के रूप में पूरी दुनिया में पहचान बनाकर रखी थी। अब वह पहचान धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। हाल ही में श्रीलंका के तट पर चीन अपना सबसे एडवांस जासूसी जहाज शी यान 6 श्रीलंका में तैनात करने जा रहा है। इसके लिए श्रीलंका सरकार भी उसकी अनुमति दे दी है। भारत ने इसके लिए आपत्ति की, लेकिन उस आपत्ति पर ना तो श्रीलंका ने कोई ध्यान दिया, नाही चीन ने अपने कदम को पीछे हटाया। यह माना जा रहा है कि जी-20 की बैठक खत्म होने के तुरंत बाद चीन का जासूसी जहाज श्रीलंका में तैनात हो जाएगा। इससे भारत की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। भारत का चीन के साथ सीमा विवाद चरम पर है। चीन से सबसे ज्यादा व्यापार भारत कर रहा है। रूस और भारत के संबंध बहुत अच्छे थे। रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद यदि सबसे ज्यादा फायदा युद्ध का किसी को हुआ है, तो वह भारत है। इसके बाद भी भारत के रिश्ते रूस और चीन के साथ-साथ अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर एक अलग-थलग पढ़ने की स्थिति आ गई है। जी-20 की बैठक से सारी दुनिया में यह संदेश जाना चाहिए था, कि भारत ही एक ऐसा देश है, जो सारी दुनिया के देशों के बीच में समन्वय बनाकर रख सकता है। यदि ऐसा होता तो भारत की सारी दुनिया में साख बढ़ती, लेकिन ऐसा संभव होता हुआ दिख नहीं रहा है। बहरहाल जी 20 के सम्मेलन के लिए भारत ने बड़े पैमाने पर तैयारी की हैं। चीन के राष्ट्रपति ने अभी अधिकृत रूप से सूचना नहीं भेजी है। रूस के राष्ट्रपति ने जरूर अधिकृत सूचना भेज दी है। जी-20 के इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनके विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के संबंध और विश्वसनीयता को लेकर एक नया अध्याय बनने जा रहा है। यह कैसा होगा, इसके लिए थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी।

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