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इरादा पूरा कैसे होगा?

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

आईएमईसी की घोषणा के साथ प्रश्न उठा कि इसकी फंडिंग का सिस्टम क्या होगा, टेक्नोलॉजी और सामग्रियां कौन उपलब्ध कराएगा, परियोजनाओं पर अमल कौन-सी कंपनियां करेंगी और प्रोजेक्ट तैयार होने पर उनका प्रबंधन कौन करेगा?नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक महत्त्वपूर्ण पहल यह हुई कि भारत से पश्चिम एशिया होते हुए पूर्वी यूरोप तक एक आर्थिक गलियारा बनाने का एलान हुआ। इसे इंडिया- मिडल ईस्ट- यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी) नाम दिया गया है। इरादा यह है कि इस पूरे क्षेत्र को जोडऩे के लिए रेल और जल मार्गों का विकास किया जाएगा। विभिन्न देशों के बीच बंदरगाहों को जोड़ा जाएगा, जिससे कारोबार आसान हो जाएगा। अमेरिकी पहल पर हुए इस करार की जब घोषणा हुआ, तो सहज ही इसके पहले की अमेरिका की दो बड़ी घोषणाएं याद आईं। राष्ट्रपति बनने के कुछ महीनों के बाद ही राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड नाम से इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की महत्त्वाकांक्षी परियोजना शुरू करने का एलान किया था। मौका जी-7 का शिखर सम्मेलन था। तब उन्होंने कहा था कि इसके लिए निजी क्षेत्र से 200 बिलियन डॉलर की रकम जुटाई जाएगी। साल भर बाद यानी 2022 के जून में जब जी-7 देशों के नेता फिर मिले, तो बाइडेन ने इस परियोजना का नाम बदल कर ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट करने का एलान किया। फिर 200 बिलियन डॉलर जुटाने की बात कही। अब 2023 के सितंबर में इस प्रोजेक्ट ने उन्होंने एक बार फिर 200 बिलियन डॉलर जुटाने की बात दोहराई।जाहिर है, ये प्रोजेक्ट कहीं नहीं पहुंचा है। इसीलिए आईएमईसी की घोषणा के साथ प्रश्न उठा कि इसकी फंडिंग का सिस्टम क्या होगा, टेक्नोलॉजी और सामग्रियां कौन उपलब्ध कराएगा, परियोजनाओं पर अमल कौन-सी कंपनियां करेंगी और प्रोजेक्ट तैयार होने पर उनका प्रबंधन कौन करेगा? ये प्रश्न इसलिए अहम हैं, क्योंकि जो देश इसमें शामिल हुए हैं, उनके पास ऐसी उत्पादक क्षमताओं का अभाव है, जिससे इतने बड़े पैमाने पर किसी योजना को लागू किया जा सके। फिर निजी क्षेत्र की भूमिका समस्याग्रस्त है, क्योंकि बड़ी सब्सिडी या तुरंत मुनाफे की आस ना होने पर इस क्षेत्र की कंपनियों की कोई दिलचस्पी नहीं रहती। चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को इसलिए लागू कर पाया है, क्योंकि उसके पास सार्वजनिक क्षेत्र और उत्पादक अर्थव्यवस्था है। यह बात खुद जो बाइडेन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन स्वीकार कर चुके हैं।

 

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