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अधिकारी अपनी जेब से दे, ब्याज का पैसा : हाईकोर्ट

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की पीठ ने पशुपालन विभाग के एक अधिकारी को अपनी जेब से 14 वर्ष का ब्याज भुगतान करने का सख्त आदेश पारित किया है। इस आदेश का पालन करने के लिए हाईकोर्ट ने 30 दिन का समय संबंधित अधिकारी को दिया है।याचिकाकर्ता चमन लाल पशुपालन विभाग में कार्यरत था। सेवानिवृत्ति के पश्चात वेतन निर्धारण में लगातार विलंब किए जाने तथा याचिकाकर्ता द्वारा बार-बार अभ्यावेदन प्रस्तुत करने के बाद भी विभागीय अधिकारियों ने बकाया भुगतान के संबंध में मनमाने ढंग से निर्णय लेते हुए कृत्रिम बाधाएं उत्पन्न की। सेवानिवृत्ति कर्मचारियों को समय पर भुगतान नहीं हुआ। जिससे वह प्रताड़ित होता रहा। उल्टे याचिकाकर्ता को गलत ढंग से भुगतान की गई राशि को वापस करने के लिए तथा पदोन्नति का लाभ नहीं दिए जाने को लेकर अधिकारी लगातार गलत निर्णय लेते रहे। याचिकाकर्ता के खाते में गलत तरीके से राशि का भुगतान हुआ था।जिसे याचिकाकर्ता द्वारा वापस भी कर दिया गया था। उसके बाद भी कर्मचारी को पशुपालन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था। हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश विवेक अग्रवाल ने पशुपालन विभाग से संबंधित अधिकारी को जबरदस्त फटकार लगाई। साथ ही अपने आदेश में 14 वर्ष तक भुगतान में जो विलंब हुआ है। उसके लिए संबंधित अधिकारी को जिम्मेदार माना। संबंधित अधिकारी को ब्याज की राशि का भुगतान याचिकाकर्ता को अपनी जेब से करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के इस निर्णय की एक सबसे अच्छी बात यह है, कि अधिकारियों की निर्णय लेते समय व्यक्तिगत जिम्मेदारी होती है। यदि वह अपनी जिम्मेदारी मैं विवेक का पालन नहीं करते हैं, तो उन पर इस तरह से नुकसानी की वसूली करके, जिम्मेदार अधिकारी को जिम्मेदार बनाने की दिशा में यह महत्वपूर्ण आदेश है। हाईकोर्ट के इस आदेश से सरकार के खजाने में कोई बोझ नही पड़ेगा। जिस अधिकारी द्वारा समय पर या सही निर्णय नहीं लिया गया। इसका खामियाजा संबंधित अधिकारी को ही भुगतना पडा। उस लिहाज से हाईकोर्ट का यह आदेश वर्तमान परिपेक्ष को देखते हुए बहुत अच्छा निर्णय है। इसकी सराहना की जानी चाहिए।अभी तक यह होता आया है, कि सरकारी पदों पर बैठे हुए अधिकारी और कर्मचारी गलतियां करते हैं। इसका खामियाजा सरकार के खजाने और आम आदमियों को भुगतना होता है। न्यायालय यदि इस तरीके के निर्णय लेने लगेंगे, मामले की सुनवाई के बाद न्यायालय को ऐसा लगता है, कि किसी भी शासकीय अधिकारी या कर्मचारी ने जानबूझकर किसी को प्रताड़ित किया है। उसे नुकसान पहुंचाने की चेष्टा की है। फैसले में जिम्मेदार ठहराते हुए उसके ऊपर कारवाई करने से शासन और प्रशासनिक तंत्र को बेहतर बनाया जा सकता है। वहीं सरकारी खजाने पर, अधिकारियों की गलती से जो बोझ पड़ता है उसे कम किया जा सकता है।

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