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नीतीश कुमार पुराने ढर्रे पर

-सिध्दार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

विधानसभा चुनाव में जदयू को मिली करारी शिकस्त ने नीतीश कुमार को फिर से नए सोशल इंजीनियरिंग करने पर विवश कर दिया है। राजद के लालू प्रसाद के एम-वाई समीकरण की जगह उन्होंने लव-कुश का समीकरण तैयार किया है। विधानसभा में हार के बाद उन्होंने पहले जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अपनी ही जाति (कुर्मी) के ब्यूरोक्रेट व पार्टी महासचिव आरसीपी सिंह को गद्दी सौंप दी। अब जदयू के प्रदेश अध्यक्ष पद राजपूत समाज के वशिष्ठ नारायण सिंह के स्थान पर कुशवाहा समाज के नेता को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंप दिया। इसके माध्यम से नीतीश कुमार लव-कुश (कुर्मी-कोईरी) के माध्यम से सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार की गद्दी संभालने के बाद उन्होंने बिहार में नया सोशल इंजीनियरिंग की शुरुआत की थी। जिसमें यादव, सवर्ण, कुशवाहा, अति पिछड़ा व महादलित को जोड़कर नया राजनीतिक स्वरूप दिया था। राष्ट्रीय अध्यक्ष पर शरद यादव और प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी न किसी सवर्ण को बैठाकर लालू प्रसाद के एमवाई के समीकरण को काटने की कोशिश की थी।

नीतीश ने पिछड़ों में अति पिछड़ा और दलितों में महादलित को अलग कर एक नए सामाजिक समीकरण तैयार किया और अपनी सत्ता को 15 वर्षों तक खींच लाए। सत्ता की बागड़ोर को आगे खींचने के लिए उन्होंने कई जातियों को पिछड़े वर्ग से अति पिछड़े वर्ग में शामिल किया। निषादों को साधने के लिए केंद्र के पास अनुशंसा भेजी। थारू जाति को जनजाति का दर्जा मिला। नीतीश कुमार के कार्यकाल में गिरि जाति को पिछड़ा वर्ग का दर्जा दिया। इस विधानसभा में मिली करारी हार को नीतीश कुमार पचा नहीं पा रहे हैं। बिहार की राजनीति में जाति की सच्चाई को मानते हुए नीतीश कुमार फिर से कुर्मी-कुशवाहा की राजनीति को जोडने की कोशिश कर रहे हैं।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अपना राजनीतिक सत्ता को मजबूत करने के लिए मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण तैयार किया जो अभी तक कायम है। अब नीतीश कुमार ने कुर्मी और कुशवाहा को पार्टी में ताजपोशी कराकर यह बता दिया है कि वह इस समीकरण के आधार बनाकर राजनीति की नैया को आगे बढ़ा सकेंगे।

प्रदेश स्तर पर विजय चैधरी, ललन सिंह, वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे सवर्ण नेताओं के बाद प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी कोईरी समुदाय के नेता को सौंपी गई है। नीतीश कुमार ने प्रदेश अध्यक्ष की वेटिंग में खड़े अनुसूचित जाति समुदाय के अशोक चैधरी को कार्यकारी अध्यक्ष ही बना कर रखा। उनको भी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी नहीं मिली।

नीतीश का वापस एजेंडे पर जाना यह भी बता रहा है कि वे आने वाले समय में बिहार में भाजपा को बाहरी नहीं तो अंदरूनी तौर पर टक्कर देने को तैयार हैं। अभी जो चुनाव हुए हैं, उसमें सरकार भले बच गई हो, नीतीश मुख्यमंत्री बन गए हों, मगर उनकी हैसियत रबड़ स्टैंप से ज्यादा नहीं है। यह बात उन्हें भी पता है, इसीलिए दर्द बाहर आ रहा है। कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश के बयान बता रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी यह अनुमान लगाने में विफल रही कि कौन दोस्त थे और कौन नहीं। नीतीश ने कहा, हम यह अनुमान लगाने में विफल रहे कि कौन हमारे दोस्त थे और कौन दुश्मन और किन पर हमेशा भरोसा करना चाहिए था। चुनाव प्रचार के बाद, हम समझ गए कि चीजें हमारे लिए अनुकूल नहीं थीं, लेकिन उस समय तक बहुत देर हो चुकी थी। इस बयान पर अब तक भाजपा खेमे से कोई सफाई नहीं आई है। मतलब साफ है नीतीश जो कह रहे हैं, वह भाजपा को पता है।

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