
-सत्यपाल वशिष्ठ-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
खाद्य सुरक्षा की स्थिति तब बनती है जब सभी लोगों के पास हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक पहुंच उपलब्ध होती है, ताकि एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन के लिए उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं एवं खाद्य वरीयताओं की पूर्ति हो सके। खाद्य सुरक्षा इस बात का बहुत महत्वपूर्ण निर्धारक है कि लोग सक्रिय और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं या नहीं, क्योंकि यह पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा करने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों तक उनकी पहुंच निर्धारित करता है। खराब खाने से पनपने वाले खतरे को पहचानने और समझने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के सहयोग से इस वर्ष 7 जून को नए थीम के साथ खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2024 का विषय था- ‘खाद्य सुरक्षा : अप्रत्याशित के लिए तैयारी करें।’ इस वर्ष का थीम खाद्य सुरक्षा, घटनाओं के लिए तैयार रहने के महत्व को रेखांकित करता है, चाहे वे कितनी भी हल्की या गंभीर क्यों नहीं हों। खाद्य सुरक्षा दिवस को मनाने के लक्ष्य हैं : खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि बाजार पहुंच, सतत विकास में योगदान करने, खाद्य जनित जोखिमों का पता लगाने एवं रोकने तथा प्रबंधित करने में मदद हेतु ध्यान आकर्षित करने और कार्रवाई को प्रेरित करने हेतु। एक अनुमान के अनुसार हर साल वायरस, बैक्टीरिया, रासायनिक पदार्थों से दूषित भोजन खाने से लगभग 600 मिलियन लोग बीमार पड़ते हैं और 420000 लोग मारे जाते हैं। इनमें ज्यादातर औरतें और बच्चे होते हैं।
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की हर साल 125000 मौतें होती हैं। सयुंक्त राष्ट्र ने खाद्य सुरक्षा में चुनौतियां चिन्हित की हैं जो हैं : जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान, मौसम की परिवर्तनशीलता, आक्रामक फसल कीट और लगातार चरम मौसमी घटनाओं का खेती कार्यों पर हानिकारक प्रभाव आदि। इससे ऊपज में कमी, पोषण गुणवत्ता की गिरावट और किसान आय में हानि हो रही है। हरित क्रांति से भारतवर्ष में खाद्य असुरक्षा और गरीबी दोनों के स्तरों में कमी आई है। साथ में जनसंख्या की वृद्धि के दबाव को भी सहन किया है। परंतु अभी भी खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने में बहुत सी चुनौतियां हैं जिनमें बढ़ते भूमि क्षरण, मृदा उर्वरता की हानि, जल जमाव, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान (रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण), खाद्य प्रबंधन नीति का अभाव, खाद्यान्नों में लीकेज एवं डायवर्सन, अनाज का सडऩा, बारिश में भीगने से अनाज का खराब होना, फल/सब्जियों का प्रबंधन, नकली राशन कार्ड आदि। इसके लिए सरकार को गोदामों और कोल्ड स्टोरेज, फार्म टू फैक्टरी की सुविधा देनी होगी। भारत में वार्षिक भंडारण हानि 14 मिलियन टन खाद्यान्न है। भारत में आज भी अनाज को तिरपांलिन के नीचे खुले में रखा जाता है जिससे अनाज में नमी के साथ कवक तथा फफूंद आता है। भारत में खाद्य सुरक्षा इसलिए आवश्यक है क्योंकि किसी भी वर्ष देश को राष्ट्रीय आपदा या आपदा जैसे भूकंप, सूखा, बाढ़, सुनामी आदि का सामना करना पड़ सकता है। वस्तुओं की कीमतों को बढऩे से रोकने के लिए भी खाद्य सुरक्षा आवश्यक है। इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार खाद्यान्न खरीदती है तथा इसका बफर स्टॉक रखा जाता है, जिसको जन वितरण प्रणाली के द्वारा जरूरतमंद लोगों को सस्ती दर पर दिया जाता है। भारतीय संसद ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 पारित करके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना की शुरुआत की। बाजार कीमत से कम कीमत पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लक्षित वर्ग को चावल, गेहूं और मोटा अनाज सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता है जिससे नागरिकों को सुरक्षा मिल सके। पूरे संसार में 78.3 करोड़ लोग क्रानिकल भूख से पीडि़त हैं, उधर 19 प्रतिशत खाना बर्बाद किया जाता है। इस बर्बादी को रोकना आवश्यक है।
उच्चतम न्यायालय ने खाने के अधिकार के साथ-साथ स्वास्थ्य का अधिकार तथा सुरक्षित भोजन के अधिकार का भी करार दिया है। इस अधिकार की सुरक्षा के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण को जिम्मेदारी दी है और वह इस जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता है। हाल ही में सिंगापुर, हांगकांग, मालदीव, ऑस्ट्रेलिया और नेपाल ने भारतीय लोकप्रिय ब्रांड एमडीएच एवं एवरेस्ट मसाले में इथिलीन ऑक्साइड की मिलावट होने के परिणामस्वरूप इनके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। इस रसायन की अधिक मात्रा होने से कैंसर तथा अन्य बीमारियां हो सकती हैं। एफएसएसएआई ने परीक्षण के बाद इसका खंडन भी किया। एमडीएच/एवरेस्ट मसालों के अतिरिक्त पतंजलि स्वास्थ्य उत्पाद, कुछ बेबी फूड, जैनेटिक मॉडिफाई फसलें आदि के ऊपर भी उंगलियां उठी हैं जो उपभोक्ताओं की सुरक्षा के ऊपर गंभीर प्रश्न है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक और लोक लेखा समिति ने 2017 में आडिट में पाया कि विनियमन के कार्यान्वयन में लापरवाही थी। उद्योगों द्वारा अनुपालना भी कम थी। कर्मचारियों की भी बहुत कमी थी। लोक लेखा समिति ने पाया कि मानकों के उल्लंघन करने वालों को अपराधी ठहराने की दर भी बहुत ही कम है, हालांकि उनके बहुत से नमूने फेल हुए हैं।
खाद्य सुरक्षा भारत में नाममात्र की है जो लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद जो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आता है, वो भारतीयों के लिए आहार के दिशा-निर्देश जारी करता है। भारत में इस समय जो चुनौतियां हैं, उनमें कुपोषण तथा हृदय, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां और मोटापा हैं। एक से 19 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप के प्रारंभिक संकेत मिल रहे हैं। इसके लिए अत्यधिक प्रसंस्कृत भोजन जिसमें नमक, वसा और चीनी की मात्रा अधिक है, जिम्मेदार है। इनके विज्ञापन तथा विपणन इतने आक्रामक तरीके से हो रहे हैं कि युवा पीढ़ी इस ओर आकर्षित हो रही है। भारत सरकार को खुद ही वर्तमान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत भ्रमित विज्ञापनों एवं अस्वस्थ उत्पादों पर रोक लगानी चाहिए। मिड डे मील की गुणवत्ता जांच नियमित रूप से हो।