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संसद में आक्रामकता

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

संसद सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो चुका है। राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित किया जा चुका है, लेकिन जो देश के मानस को निरंतर मथता रहेगा, वह संसदीय अराजकता है। यह बिल्कुल भी अपेक्षित और स्वीकार्य नहीं है। संसद में अब नियमों का उल्लंघन किया जाता रहेगा। राज्यसभा में उपराष्ट्रपति एवं सभापति और लोकसभा में स्पीकर मर्यादा और गरिमा की बार-बार दुहाई देना छोड़ दें, क्योंकि अब संसद में हिट एंड रन की राजनीति खेली जाएगी। अब संसद में भी प्रधानमंत्री एवं लोकसभा सदन के नेता का भाषण बाधित किया जाता रहेगा। यह मोदी-विरोधी रवैया और रणनीति है। आखिर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संसदीय अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के संदर्भ में अंतिम जवाब कौन देगा? राष्ट्रपति ने किसे प्रधानमंत्री बनाया है? अधिकांश जनादेश किसके पक्ष में है?

विपक्ष के मुताबिक, सत्ता पक्ष के एक-तिहाई जनादेश के मायने क्या हैं? विपक्ष को इन सवालों के जवाब कौन समझाएगा? हमने लोकसभा में यह पहली बार देखा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने धन्यवाद प्रस्ताव पर दो घंटे 13 मिनट का भाषण दिया और उतनी ही देर तक विपक्ष के सांसद ‘वेल’ में और अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी करते रहे। कमाल की क्षमता है भई! नारों का शोर इतना कानफाड़ू था कि प्रधानमंत्री के भाषण के तथ्य और भाषा बाधित हो रहे थे। अंतत: प्रधानमंत्री को हैडफोन लगाना पड़ा, ताकि उन्हें शोर कम सुनाई दे और वह अपनी बात आराम से कह सकें। प्रधानमंत्री उस माहौल में भी बोलते रहे, क्योंकि मुख्यमंत्री रहते हुए और 2019 के प्रधानमंत्री काल में वह ऐसे शोर और विरोध को झेलते रहे हैं। सांसदों को नेता प्रतिपक्ष ने ‘वेल’ में जाने को उकसाया और बाध्य किया, लिहाजा स्पीकर ओम बिरला को उन्हें चेतावनी देनी पड़ी। क्या नेता प्रतिपक्ष की यह भूमिका भी होती है? जब नेता विपक्ष सदन में बोल रहे थे, तब प्रधानमंत्री समेत कुछ मंत्रियों ने उनके कथन पर आपत्ति जरूर की थी। सत्ता पक्ष ने शोर मचा कर, नारेबाजी करते हुए बाधित नहीं किया था। स्पीकर ने नियमों और संसदीय अनुशासन के बार-बार पाठ पढ़ाए, लेकिन विपक्षी सांसद आमादा थे कि प्रधानमंत्री के भाषण में रोड़े जरूर अटकाने हैं।

यही उनकी राजनीतिक रणनीति थी, एजेंडा था। राज्यसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर संसद की चर्चा के जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी करीब एक घंटा 50 मिनट तक बोले। विपक्ष उच्च सदन में भी नारेबाजी कर हंगामा मचाता रहा। चूंकि वहां विपक्ष की संख्या कम है और सांसद भी कम थे, लिहाजा विपक्ष ने संविधान के मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष को न बोलने देने के मुद्दे पर बहिर्गमन की रणनीति अख्तियार की। सभी ने वॉकआउट किया। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने टिप्पणी की कि देश देख रहा है कि झूठ फैलाने वालों में सत्य सुनने की ताकत नहीं है। उन्होंने जो सवाल उठाए, उनके जवाब सुनने की हिम्मत नहीं थी, लिहाजा मैदान छोड़ कर बाहर चले गए। बेशक संसद में अवरोध पैदा किए जाते रहे हैं, विपक्ष ने नारेबाजी-पोस्टरबाजी समेत हंगामे भी किए हैं, भाजपा ने भी विपक्ष के तौर पर कई-कई दिन तक सदन की कार्यवाही नहीं चलने दी, लेकिन प्रधानमंत्री के संभाषण या बयान को कभी अवरुद्ध नहीं किया गया। विपक्ष का मौजूदा अवरोध और विरोध ही संसद की अराजकता है। संसदीय नियम भी हैं और परंपरा भी रही है कि प्रधानमंत्री भाषण देते हैं, तो कमोबेश उसे सुना जाता है। नेता प्रतिपक्ष हस्तक्षेप कर अपनी बात कह सकते हैं, लेकिन यह दृश्य अराजकता और असंसदीय आचरण ही लगा कि प्रधानमंत्री बोलते रहे और विपक्षी सांसद नारेबाजी का शोर मचाते रहे। हालांकि प्रधानमंत्री ने सभी जरूरी मुद्दों पर अपनी बात कही। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने हिंदू पर जो कहा था अथवा महापुरुषों के चित्र दिखाए थे, उनसे संबंधित सभी बयानों को स्पीकर ने रिकॉर्ड से निकलवा दिया, फिर भी प्रधानमंत्री ने हिंदुत्व पर अपनी बात कही। उन्होंने नेता विपक्ष के संबंध में ‘बचकाना हरकत’ और ‘बालक-बुद्धि’ सरीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कई तंज किए। कमोबेश यह भी संसदीय नहीं माना जाना चाहिए। संसद में ऐसी बहस होनी चाहिए और शब्दों की मर्यादा भी इतनी शालीन हो कि उसे भविष्य की पीढिय़ां आदर्श मान सकें। ऐसे छोटेपन की राजनीति से कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता।

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