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दिखने लगी अखिलेश की धमक

-शकील अख्तर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

सबसे अच्छी बात यह है कि जैसे मोदी की छवि के सामने बीजेपी और एनडीए के सब नेताओं की छवि दब गई वैसा विपक्ष में नहीं हो रहा। राहुल की अखिल भारतीय छवि के सामने यूपी में अखिलेश यादव की छवि पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा उल्टे वह और चमक गई। बाकी राज्यों में भी ऐसा ही हुआ। हर राज्य में इंडिया गठबंधन का नेता राहुल के साथ खड़ा होकर एक और एक ग्यारह हो गए।

ताजा मिसाल यूपी की है। वहां मंगेश यादव के कथित एनकाउंटर के बाद उपजे जनता के गुस्से को जैसे अखिलेश ने स्वर दिया उससे लोगों को मुलायम सिंह के उन तेवरों की याद आ गई जब उन्होंने यूपी में एक अख़बार के खिलाफ हल्ला बोल आंदोलन शुरू कर के यूपी के उस सबसे बड़े अखबार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। 30 साल पहले। बात 1994 की है। अखबार को माफी मांगना पड़ी थी। आज अखिलेश के तेवरों में लोग वही मुलायम सिंह देख रहे हैं। जिनके बारे में कहा जाता था जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है! अब इनका जलवा अखिलेश में ट्रासंफर हो गया लगता है।

जिस कड़े और तार्किक अंदाज में अखिलेश ने इस एनकाउंटर के बारे में सवाल पूछे उससे लोगों को भरोसा हो गया कि अब यूपी में फर्जी एनकांउटर और बुलडोजर के खिलाफ एक मजबूत आवाज पैदा हो गई है। और फिर इसमें नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के आवाज मिला देने से यूपी में उम्मीद की आस और तेज हो गई है। सवाल सिर्फ फर्जी एनकाउंटर और बुलडोजर चला देने का नहीं है। यूपी में और सब जगह जहां डबल इंजन की सरकारें हैं वहां सिर्फ दिल्ली से बजाए जा रहे हिन्दू-मुस्लिम राग को ही रिप्ले किया जा रहा है। जैसे मोदी सरकार जनता का कोई काम नहीं कर रही है हर समस्या का जवाब एक नए जुमले से देती है। वैसे ही भाजपा शासित राज्य कर रहे हैं।

पहले दस साल हिन्दू-मुसलमान का राग बजाया गया। मगर लोकसभा चुनाव में नहीं चला तो अब विभाजन को नए स्तर पर ले आए हैं। यूपी में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। 66 सीटें घटकर 33 रह गईं। तो अब यूपी में मुसलमानों के बाद यादवों को टारगेट किया जाने लगा। अगर व्यापक अर्थों में देखा जाए तो अखिलेश के सफल सामाजिक समूह पीडीए को। पी से पिछड़ा। जिस का नाम पहले मुख्यमंत्री ने विधानसभा में लिया। एक यादव एक मुसलमान का। लखनऊ में बरसात के पानी को भीड़ द्वारा लोगों पर उछालने के मामले में पुलिस ने कई लोगों को आरोपी बनाया। एक दर्जन से ज्यादा। मगर मुख्यमंत्री योगी ने सिर्फ दो नाम लिए। और उन पर व्यंग्य करते हुए इसे सद्भावना (मुस्लिम यादव की) बताते हुए कहा कि इन पर सद्भावना एक्सप्रेस चलाई जाएगी।

मगर मामले में ट्विस्ट तब आया कि जमानत होने के बाद पवन यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलकर कहा कि वह तो घटना स्थल पर था ही नहीं। यादव होने के नाते मुझे फंसाया गया। ऐसा ही उसने मुसलमान लड़के के बारे में बताया कि वह भी वहां नहीं था। अखिलेश ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा था कि हम इस मामले को भूलेंगे नहीं। और पवन यादव के बहाने सब यादवों पिछड़ों से कहा था कि तुम भी मत भूलना।

तो यह पिछड़े का मामला मंगेश यादव के कथित एनकाउंटर के बाद और गहरा गया। अखिलेश का सीधा आरोप है कि इस मामले में शामिल मुख्य आरोपी को पुलिस ने सरेंडर करवा लिया। बाकी जिन को पकड़ा उनके पांव को छूती हुई गोली मारकर एनकाउंटर बताया। और रात को घर से मंगेश यादव को ले जाकर उसके सिर से सटाकर गोली मारी गई। परिवार वालों ने कहा बहुत मारा है। चेहरा पूरा खराब हो गया। वीभत्स। देखा नहीं जा सकता। अखिलेश ने फोन पर परिवार से बात की।

यह मामला सुल्तानपुर में पड़ी एक डकैती का है। अखिलेश बहुत तीखे सवाल पूछ रहे हैं। उनके पास सूचनाएं आ रही हैं। जब विपक्ष का नेता मजबूत होने लगता है तो अफसरशाही उससे जुड़ने लगती है। अखिलेश ने पूछा कि डकैती का माल कहां है? अगर सारे अपराधी पकड़े गए एक यादव को मार दिया तो करोड़ों रुपए के स्वर्ण आभूषण कहां हैं? वह बरामद क्यों नहीं हुए? पीड़ित ज्वेलर भरतजी सोनी का कहना है कि अभी तक केवल दस प्रतिशत गहनों की ही रिकवरी हुई है। वह भी केवल चांदी के। सोने के जेवर नहीं मिले। पुलिस अब बता रही है कि मंगेश यादव पर इतने केस थे। मगर जौनपुर के उसके गांव में उसका मकान एक झोंपड़ी है। उसकी तस्वीर तक घर के बाहर रखी गई है। गरीब परिवार।

यह पी ज्यादा लंबा हो गया। है भी पिछड़ों की तादाद सबसे ज्यादा। राहुल इन्हीं की गिनती करवाना चाहते हैं। ताकि सरकारी योजनाओं में इन्हें लाभ मिल सके। जितनी आबादी उतना हक। राहुल की जाति गणना देश का पूरा सामाजिक चरित्र बदल देगी। पिछड़ों को फिर इस तरह जुल्म का शिकार नहीं बनाया जा सकेगा। आज समाज में पिछड़ों के लिए एक से एक गंदी गालियां हैं। मुहावरों, कहावतों के तौर पर। … बिना गुनाहम पांच पनाहम! पनहा यानि जूते। इस कहावत के पहली लाइन में कई पिछड़ी जातियों के नाम लिए जाते हैं। आम कहा जाता है कि बिना अपराध के मारो!

अखिलेश के पीडीए में दूसरा अक्षर है डी। डी यानि दलित। जिसे सबसे ज्यादा गालियां दी जाती हैं। यूपी में इनके नाम पर मायावती ने लंबी राजनीति की। चार बार मुख्यमंत्री बनीं। मगर दलितों को सबसे बड़ा धोखा भी इन्होंने ही दिया। खुद को ईडी सीबीआई इनकम टैक्स से बचाने के लिए मोदी के साथ चली गईं। केन्द्र में और यूपी में दोनों जगह भाजपा की सरकार है। मगर वे हर जगह सपा और कांग्रेस का दोष बताती हैं। हाथरस में दलित लड़की के साथ भयानक बलात्कार हुआ। रातों-रात पुलिस ने उसका शव जला दिया। और आरोपियों के समर्थक लड़की के घर बाहर घेराव करके बैठ गए।

राहुल गांधी को एक बार जाने नहीं दिया। रास्ते से वापस आना पड़ा। मगर वे तो राहुल हैं। जो ठान लेते हैं तो कर के ही मानते हैं। दूसरी बार फिर निकले। पुलिस ने धक्का देकर गिरा दिया। उठे और फिर चल दिए। पहुंचे। लेकिन मायावती एक बार भी नहीं गईं। दलित अत्याचार की और भी कई भयानक घटनाएं हुईं। राहुल प्रियंका हर जगह पहुंचे। मगर दलित जिन्हें सम्मान से बहिन जी कहते हैं किसी के आंसू पोंछने नहीं गईं। और इस समय हो रही घटनाओं के लिए वे सपा और कांग्रेस को दोषी ठहराती रहीं। अपने घर बैठ कर। जिसे अब दलित भी गुस्से में महल कहने लगे हैं। और इसी गुस्से में इस बार वे मायावती के साथ न जाकर अखिलेश और राहुल के इंडिया गठबंधन के साथ चले गए। यूपी में यही मायावती और भाजपा को बड़ी चोट लगी। और अखिलेश के पी, पिछड़े के साथ डी दलित भी कामयाब हो गया।

पीडीए में तीसरा है अल्पसंख्यक। भाजपा की राजनीति का मुख्य आधार। पिछले दस साल से मुसलमान के खिलाफ नफरत फैलाकर ही मोदी हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करते रहे हैं। सारी लिंचिंग और बुलडोजर की कार्रवाइयां उसके ही खिलाफ हुई हैं। यूपी में ही नफरत और फैलाने एवं विभाजन को और तीखा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी इतने आगे तक चले गए कि श्मशान और कब्रिस्तान की तुलना करने लगे। और इस लोकसभा चुनाव में यहां तक कह गए कि हिन्दुओं से छीन लेंगे और मुसलमानों को देंगे। मगर दस साल में मुसलमान किसी भड़कावे में नहीं आए। मामलों को बच्चों के स्तर तक ले गए। अभी यूपी में ही एक सात साल के मुस्लिम बच्चे को प्रिंसीपल आतंकवादी कह कर स्कूल से निकाल देता है। और उससे पहले एक महिला शिक्षिका एक मुसलमान बच्चे के गाल में दूसरे बच्चे से थप्पड़ पड़वाती है। कितनी घटनाएं हैं। मगर मुसलमान लोकतांत्रिक व्यवस्था संविधान पर विश्वास रखते हुए खामोश रहा। और उसका असर इन लोकसभा चुनावों में दिख गया। हिन्दू -मुसलमान विभाजन की थ्योरी फेल हो गई। और देश में 240 पर और यूपी में 80 में 33 पर बीजेपी रूक गई।

यही अखिलेश की पीडीए की सफलता है। और अब नए साहस के साथ पिता मुलायम सिंह के अंदाज में बीजेपी को ललकारने ने उनका कद और बढ़ा दिया है। जैसे देश में विपक्ष दिखने लगा है वैसे ही यूपी में अखिलेश की धमक दिखने लगी है।

 

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