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देशव्यापी बाल अश्लीलता पर न्यायालय का अंकुश

-प्रमोद भार्गव-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

सर्वोचच न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि बच्चों के यौन षोशण से जुड़े अष्लील वीडियो और कंटेंट डाउनलोड करने, देखने, रखने या उसे किसी को भेजने पर बाल यौन अपराध (पाॅक्सो) कानून और आईटी एक्ट के तहत अपराध माना जाएगा। मुख्य न्यायाधीष डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, अगर किसी को ऐसी सम्रगी अनजाने में भी मिली है और वह इसे डिलीट नहीं करता है तो भी पाॅक्सो एक्ट की धारा-15 के तहत अपराध होगा। भले ही उस व्यक्ति ने वीडियो किसी को फाॅरवर्ड नहीं किया हो। इसके साथ ही चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने उच्च न्यायालय मद्रास का वह आदेष रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्न देखना और डाउनलोड करना पाॅक्सो तथा आईटी कानून में अपराध नहीं है। इस न्यायालय ने एक युवक के विरुद्ध पाॅक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले को यह कहकर निरस्त कर दिया था कि उसने बाल पोर्न डाउनलोड तो किया लेकिन किसी को भेजा नहीं था। इसके साथ ही षीर्श न्यायालय ने देषव्यापी यौन षिक्षा कार्यक्रम चालू करने की नसीहत भी भारत सरकार को दी है। न्यायालय ने पोर्न देखने और रखने को अपराध जरूर माना है, लेकिन इससे बाल पोर्न पर अंकुश लग जाएगा, यह कहना मुश्किल है। क्योंकि पोर्न का कारोबार विश्वव्यापी है और इसके सूत्रधार अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में बैठे हुए हैं।

अंतर्जाल की आभासी व मायावी दुनिया से अष्लील सामग्री पर रोक की मांग सबसे पहले इंदौर के जिम्मेबार नागरिक कमलेष वासवानी ने सर्वोच्च न्यायालय से की थी। याचिका में दलील दी गई थी कि इंटरनेट पर अवतरित होने वाली अष्लील वेबसाइटों पर इसलिए प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि ये साइटें स्त्रियों एवं बालकों के साथ यौन दुराचार का कारण तो बन ही रही हैं, सामाजिक कुरूपता बढ़ाने और निकटतम रिष्तों को तार-तार करने की वजह भी बन रही हैं। इंटरनेट पर अष्लील सामग्री को नियंत्रित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण जहां इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, वहीं दर्षक संख्या भी बेतहाषा बढ़ रही है। ऐसे में समाज के प्रति उत्तरदायी सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह अश्लील प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण की ठोस पहल करें। हालांकि अब इस अपराध पर नियंत्रण के लिए पॉक्सो एक्ट और आईटी कानून में प्रावधान कर दिए गए हैं। न्यायालय ने इनमें कठोरता के नए प्रावधान भी कर दिए हैं।

वस्तुस्थिति यह है कि इंटरनेट पर अष्लीलता का तिलिस्म भरा पड़ा है। वह भी दृष्य, श्रव्य और मुद्रित तीनों माध्यमों में। ये साइटें नियंत्रित या बंद इसलिए नहीं होती, क्योंकि सर्वरों के नियंत्रण कक्ष विदेषों में स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मायावी दुनिया में करीब 20 करोड़ अष्लील वीडियो एवं क्लीपिंग चलायमान हैं, जो एक क्लिक पर कंप्युटर, लैपटाॅप, मोबाइल, फेसबुक, ट्यूटर, यूट्यूब और वाट्सअप की स्क्रीन पर उभर आती हैं। लेकिन यहां सवाल उठता है कि इंटरनेट पर अष्लीलता की उपलब्धता के यही हालात चीन में भी थे। परंतु चीन ने जब इस यौन हमले से समाज में कुरूपता बढ़ती देखी तो उसके वेब तकनीक से जुड़े अभियतांओं ने एक झटके में सभी वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया। गौरतलब है, जो सर्वर चीन में अश्लीलता परोसते थे, उनके ठिकाने भी चीन से जुदा धरती और आकाश में थे। तब फिर यह बहाना समझ से परे है कि हमारे आईटी विशेषज्ञ इन साइटों को बंद करने में क्यों अक्षम साबित हो रहे हैं? चीन यही नहीं रुका, उसने अब गूगल की तरह अपने सर्च-इंजन बना लिए हैं। जिन पर अश्लील सामग्री अपलोड करना पूरी तरह प्रतिबंधित है।

इस तथ्य से दो आषंकाएं प्रगट होती हैं कि बहुराश्ट्रीय कंपनियों के दबाब में एक तो हम भारतीय बाजार से इस आभासी दुनिया के कारोबार को हटाना नहीं चाहते, दूसरे इसे इसलिए भी नहीं हटाना चाहते क्योंकि यह कामवर्द्धक दवाओं व उपकरणों और गर्भ निरोधकों की बिक्री बढ़ाने में भी सहायक हो रहा है। जो विदेषी मुद्रा कमाने का जरिया बना हुआ है। कई सालों से हम विदेषी मुद्रा के लिए इतने भूखे नजर आ रहे हैं कि अपने देष के युवाओं के नैतिक पतन और बच्चियों व स्त्रियों के साथ किए जा रहे दुश्कर्म और हत्या की भी परवाह नहीं कर रहे? अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और चीन से विदेशी पूंजी निवेश का आग्रह करते समय क्या हम यह शर्त नहीं रख सकते कि हमें अश्लील वेबसाइटें बंद करने की तकनीक और गूगल की तरह अपना सर्च-इंजन बनाने की तकनीक दें? लेकिन दिक्कत व विरोधाभास यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कोरिया और जापान इस अष्लील सामग्री के सबसे बड़े निर्माता और निर्यातक देष हैं। लिहाजा वे आसानी से यह तकनीक हमें देने वाले नहीं हैं। गोया, यह तकनीक हमें ही अपने देशज स्रोतों से विकसित करनी होगी।

ब्रिटेन में सोहो एक ऐसा स्थान हैं, जिसका विकास ही पोर्न वीडियो फिल्मों एवं पोर्न क्लीपिंग के निर्माण के लिए हुआ है। यहां बनने वाली अष्लील फिल्मों के निर्माण में ऐसी बहुराश्ट्रीय कंपनियां अपने धन का निवेष करती हैं, जो कामोत्तेजक सामग्री, दवाओं व उपकरणों का निर्माण करती हैं। वियाग्रा, वायब्रेटर, कौमार्य झिल्ली, कंडोम, और सैक्सी डाॅल के अलावा कामोद्दीपक तेल बनाने वाली ये कंपनियां इन फिल्मों के निर्माण में बढ़ा पूंजी निवेष करके मानसिकता को विकृत कर देने वाले कारोबार को बढ़ावा दे रही हैं।

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री षिल्पा षेट्टी के पति राज कुंद्रा की कंपनी भी ब्रिटेन को पोर्न फिल्में बेचती थी। यह षहर ‘सैक्स उद्योग‘के नाम से ही विकसित हुआ है। बाजार को बढ़ावा देने के ऐसे ही उपायों के चलते ग्रीस और स्वीडन जैसे देषों में क्रमषः 89 और 53 फीसदी किषोर निरोध का उपयोग कर रहे हैं। यही वजह है कि बच्चे नाबालिग उम्र में काम-मनोविज्ञान की दृष्टि से परिपक्व हो रहे हैं। 11 साल की बच्ची रजस्वला होने लगी है और 13-14 साल के किशोर कामोत्तेजना महसूस करने लगे हैं। इस काम-विज्ञान की जिज्ञासा पूर्ति के लिए अब वे फुटपाथी सस्ते साहित्य पर नहीं, इंटरनेट की इन्हीं साइटों पर निर्भर हो गए हैं, उनकी मुट्ठियों में मोबाइल थमाकर हम गर्व का अनुभव कर रहे हैं।

अश्लीलता का अंतर्जाल

बच्चों के यौन षोशण और उससे संबंधित सामग्री को सोषल मीडिया पर परोसने और प्रसारित करने के मामले में 83 लोगों के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो ने चार साल पहले बड़ी कार्यवाही की थी। देष के 14 राज्यों के 76 ठिकानों पर सघन तलाषी का अभियान चलाया था। तलाषी की इस मुहिम से पता चला था कि लगभग पूरे देष में अष्लीलता का यह जंजाल नषे के कारोबार की तरह फैल गया है। यही नहीं अनेक महाद्वीपों में फैले सौ देषों के नागरिक इस गोरखधंधे में षामिल हैं। षहर तो षहर मध्य-प्रदेष के डबरा तहसील के ग्राम अकबई में भी बाल यौन षोशण से जुड़ी अष्लील फिल्में बनाने का कारोबार मिला था। यह अत्यंत चिंता का विशय है। 31 सदस्यों का एक वाट्सएप समूह इस कारोबार का संचालन करता था।

पोर्न फिल्में बनाने और उन्हें अनेक सोशल साइट व एप्स पर अपलोड करने के मामले में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को भी मुंबई पुलिस ने हिरासत में लिया था। वे अश्लील फिल्में बनाने, बेचने और इससे धन कमाने के धंधे में शामिल थे। तीन महिलाओं ने उनके विरुद्ध शिकायत की थी। किराए के बंगले में राज कुंद्रा की कंपनी और उनके सहयोगी फिल्में बनाते थे। कुंद्रा की कंपनी आम्र्स प्राइवेट लिमिटेड ने हाॅटषाट्स एप बनाया और इसे ब्रिटेन में एक रिष्तेदार के नाम से रजिस्टर्ड कंपनी केनरिन को बेच दिया था। कुंद्रा के साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां अंतरराश्ट्रीय पोर्नोग्राफी गिरोह के षिंकजे में भी पाई गई थीं। इस मामले में कुंद्रा को पोर्न फिल्म रैकेट का मुख्य साजिषकर्ता माना था। इस मामले से पता चलता है कि फिल्म, टीवी, सोषल मीडिया और आईटी कंपनियों की अनेक हस्तियां इस नीले कारोबार से जुड़ी हैं।

दिल्ली में घटी एक घटना में 27 किषोर दोस्त सोषल मीडिया के इंस्टाग्राम पर एक समूह बनाकर अपने साथ पढ़ने वाली छात्राओं के साथ सामूहिक बलात्कार की शड्यंत्रकारी योजना बना रहे थे। ये सभी दक्षिण दिल्ली के महंगे विद्यालयों में पढ़ते थे। और 11वीं व 12वीं के छात्र होने के साथ अति धनाढय परिवारों से थे। साफ है, स्मार्ट मोबाइल में इंटरनेट और सोषल साइटें बच्चों का चरित्र खराब करने का बड़ा माध्यम बन रही हैं और इस कारोबार में सेलिब्रिटीज शामिल हैं।

 

 

 

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