
-पीके खुराना-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
जब मैं इकोनामिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड या योरस्टोरी में पढ़ता हूं कि फलां-फलां स्टार्ट-अप कंपनी को 20 करोड़ की सीड फंडिंग मिल गई या फंडिंग के दूसरे राउंड में फलां-फलां कंपनी ने लाखों डालर की धनराशि प्राप्त की है तो मुझे बहुत खुशी होती है। अक्सर ऐसी कंपनियों के मालिक युवा होते हैं जो किसी आईआईटी या मैनेजमेंट स्कूल की पृष्ठभूमि के लोग हैं। चूंकि इन युवाओं के लिए बहुत से ऐसे मंच उपलब्ध हैं जहां उन्हें उद्यमिता यानी आंत्रप्रेन्योरशिप की ट्रेनिंग दी जाती है, मार्गदर्शन दिया जाता है, उन्हें अपने जैसे अन्य उद्यमी युवाओं और स्थापित निवेशकों से मिलने का मौका मिलता है, अतः उनकी राह कदरन आसान हो जाती है और वे न केवल उद्यमी बन जाते हैं बल्कि उद्यमी के रूप में उनकी सफलता के अवसर भी बढ़ जाते हैं। स्टार्ट-अप कंपनियों का क्रेज ऐसा है कि देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां और हस्तियां स्टार्ट-अप कंपनियों में बड़ी-बड़ी धनराशि का निवेश कर रहे हैं। रतन टाटा, नंदन नीलेकणी, एनआर नारायण मूर्ति जैसे नामचीन लोगों ने स्टार्ट-अप कंपनियों में पैसा लगाकर उन्हें नया जीवन देना शुरू किया है। इससे देश में उद्यमिता के लिए एक रचनात्मक माहौल तैयार हो रहा है जो निश्चय ही शुभ है। इससे अर्थव्यवस्था, देश और समाज, सभी को लाभ होगा। अब ऐसी संस्थाओं की कमी नहीं है जो उद्यमिता का पाठ उन लोगों को भी पढ़ाने के लिए तैयार हैं जो आईआईएम या आईआईटी में नहीं जा पाए या जो खानदानी व्यवसायी हैं, लेकिन छोटे व्यवसायों से आगे नहीं बढ़ पाए या जो अपना व्यवसाय करना चाहते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे लोग जो कभी रोजगार की तलाश में रहते थे, अब उद्यमी बन गए हैं और रोजगार खोजने वालों की कतार में शामिल होने के बजाय अन्य लोगों के लिए रोजगार का सृजन करने लग गए हैं। यानी जॉब-सीकर्स से बदल कर वे जॉब-प्रोवाइडर्स बन गए हैं।
स्टार्ट-अप कंपनियों के प्रोमोटरों को सर्वप्रथम उद्यमिता की सैद्धांतिक जानकारी दी जाती है, फिर निर्माण परियोजनाओं की जानकारी दी जाती है, प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने, बैंकों से कर्ज लेने की जानकारी के अलावा व्यवसाय शुरू करने की सहायक सेवाएं भी प्रदान की जाती हैं ताकि नया उद्यमी किसी भी पड़ाव पर कठिनाई न महसूस करे। इस दौरान उन्हें बिजनेस प्रोसेस, व्यावसायिक कानून, एकाउंटिंग के आधारभूत नियमों आदि की जानकारी के साथ-साथ स्थानीय परिस्थितियों को समझने, कच्चे माल की उपलब्धता, ट्रांस्पोर्टेशन सुविधा, खाते बनाना और संभालना, उत्पादों की कीमत तय करने का तरीका, बैंकों की भूमिका, वर्किंग कैपिटल का प्रबंधन आदि के अतिरिक्त क्वालिटी कंट्रोल, पैकेजिंग के नियम और तरीके, मशीनों के रखरखाव के आधारभूत नियमों आदि की जानकारी भी दी जाती है। उद्यमिता के क्षेत्र में प्रतियोगिता को समझना तो आवश्यक है ही, कच्चे माल की खरीद कब करें, कहां से करें, कैसे करें, किस दर पर करें आदि की जानकारी भी महत्त्वपूर्ण है। सच तो यह है कि बिक्री से तो लाभ हो ही सकता है, परंतु खरीद में बचाया गया हर पैसा वस्तुतः लाभ ही है। लाभ-हानि का खाता बनाना, फंड के सक्रिय स्रोतों की जानकारी रखना आदि भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इनके बिना किसी भी व्यवसाय का जीवन ज्यादा लंबा नहीं चल सकता।
किसी पड़ाव पर बिजनेस इतना मजबूत हो जाता है कि उसे लाभ चाहे न हो, पर हानि भी न हो, यानी ब्रेक-ईवन प्वायंट की जानकारी, परियोजना की कम कीमत की जानकारी, लाभ-हानि का लेखा-जोखा, सरकारी संस्थाओं की भूमिका, लोन-रीपेमेंट आदि को समझना भी आवश्यक है। इससे भी बड़ी बात यह जानना आवश्यक है कि किसी विशेष व्यवसाय के लिए कितने सरकारी विभागों से अनुमति लेना अथवा लाइसेंस लेना आवश्यक है। इन संस्थाओं का मार्गदर्शन इसलिए आवश्यक है क्योंकि नया बना उद्यमी सारे नियम न जानता है और न जान सकता है। ऐसी सक्षमता वाली संस्थाएं नए उद्यमियों का मार्गदर्शन करके उन्हें कानूनी ढंग से अपना स्टार्ट-अप चलाना सिखा सकती हैं। उद्यमिता के कई लाभ हैं। पहला तो यह कि यह नए रोजगार के सृजन में सहायक है, दूसरा यह अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक है, तीसरा इससे पैसे से पैसा बनता है और एक समय ऐसा भी आता है जब उद्यमी अपने उद्योग में समय लगाए बिना भी उससे पैसा कमा सकता है। उद्यमिता का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी रोजगार प्रदान कर सकता है और उद्यमी की अगली पीढि़यों को अपने लिए रोजगार खोजने की समस्या से नहीं जूझना पड़ता। गरीबी के अभिशाप से बचने का सबसे बढि़या उपाय यही है कि देश में उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए सरकारों की ओर से किए जाने वाले प्रयास इतने आधे-अधूरे हैं कि उनकी उपस्थिति ही महसूस नहीं होती और अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। निजी उद्योग और एनजीओ मिलकर भी कई कार्यक्रम चलाते हैं, जिनसे सीमित लाभ ही मिल पाता है।
मोदी सरकार ने बहुत से अभिनव कदम उठाए हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए भी सरकार कोई सार्थक कदम उठाएगी। दरअसल आरक्षण, सब्सिडी आदि की बैसाखियों के सहारे चलना सीखना एक बात है और उसे जीवन भर का संबल बना लेना बिलकुल अलग बात है। यह खेद का विषय है कि हमारे देश में लोग मैरिट पर आगे बढ़ने के बजाय आरक्षण का सहारा लेने को आतुर हैं, चाहे उसमें कितना ही अपमान छिपा हो। अपमान सहकर भी पिछड़ी जातियों में शामिल होने की यह ललक केवल भारतीय समाज में ही है। उद्यमिता में ऐसी किसी बैसाखी की आवश्यकता नहीं होती। यहां आपकी कल्पनाशक्ति, मेहनत, मार्केटिंग और संपर्कों के बल पर अपने व्यवसाय को उन्नति के शिखर पर ले जा सकते हैं। अतः देश को गरीबी के गर्त से निकालने के लिए यह आवश्यक है कि बचपन से ही बच्चों को उद्यमिता का पाठ पढ़ाया जाए, उद्यमिता के गुरों की जानकारी दी जाए, प्रतियोगिता को समझने और प्रतियोगिता के बावजूद अपने लिए नई पोजीशनिंग ढूंढने की कला किसी व्यवसाय की सफलता की गारंटी है। सवाल सिर्फ यही है कि हम जॉब सीकर बने रहना चाहते हैं या जॉब प्रोवाइडर बनना चाहते हैं। सरकार तो इस दिशा में काम करती ही है, बहुत से निजी संस्थान भी इस ओर ध्यान दे रहे हैं और कोविड के कारण उद्यमिता की महत्ता और बढ़ी है। इसी क्रम में ‘समाचार-मीडिया’ की ओर से 30 और 31 जनवरी को पत्रकारिता वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पत्रकारिता का हुनर सिखाने के अलावा इस हुनर से उद्यमी बनने के विकल्पों के बारे में भी मार्गदर्शन दिया जाएगा। ऐसे ही सार्थक प्रयासों से देश की अर्थव्यवस्था को संबल मिलेगा और हम एक विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी में आ सकेंगे। यह खुशी की बात है कि सरकार, समाज और उद्योग मिलकर इस दिशा में काम कर रहे हैं जिससे गरीबी और बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्ति मिलेगी और हमारा युवा वर्ग और भी सामर्थ्यवान बन सकेगा।