EducationPolitics

वंशवाद और भ्रष्टाचार लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन.

-बाल मुकुन्द ओझा-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

राजनीतिक वंशवाद के विरुद्ध देश में एक बार फिर आवाज उठी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक वंशवाद और भ्रष्टाचार को देश और लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए युवाओं से इसे जड़ से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया है। उन्होंने इसे लोकतंत्र में तानाशाही का एक नया रूप करार देते हुए कहा कि यह देश पर अक्षमता का बोझ भी बढ़ा देता है। राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव के समापन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि वंशवाद की वजह से राजनीति में आगे बढ़े लोगों को लगता है कि उनके पहली की पीढियों के भ्रष्टाचार का हिसाब नहीं हुआ तो उनका भी कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वे तो अपने घर में ही इस प्रकार के विकृत उदाहरण भी देखते हैं इसलिए ऐसे लोगों का कानून के प्रति ना सम्मान होता है, ना ही उन्हें कानून का डर होता है।
राजनीतिक वंशवाद का देश की सियासत से पुराना नाता है। राजशाही में राजा का बेटा राजा होता था। भारत में यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही थी जो आजादी के बाद समाप्त हुई। मगर आजादी के उदय के साथ अनेक शक्तिशाली राजनीतिक परिवारों ने लोकतंत्र की आड़ में वंशवाद को प्रश्रय दिया और देश पर शासन का मंसूबा संजोया। नेहरू गाँधी से लेकर अब्दुला परिवारों में राजनीतिक वंशवाद खूब फला फूला। आज भी देश में एक दर्जन परिवार ऐसे है जिन्होंने वंशवाद की फसल को बाखूबी काटा। वंशवाद और भ्रष्टाचार का चोली दामन का साथ है इसे देशवाशियों ने देखा और परखा।
देश की आजादी के बाद नेहरू-गांधी परिवार राजवंश की राजनीति को बढ़ावा देने की अगुवा मानी जाती रही है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, बिहार में तेजस्वी यादव, कर्नाटक में कुमार स्वामी, बिहार में चिराग पासवान, पंजाब में बादल, हरियाणा में चैटाला, कश्मीर में अब्दुल्ला, ओडीशा में पटनायक, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव का परिवार, मध्य प्रदेश में सिंधिया परिवार, महाराष्ट्र में ठाकरे और सुप्रिय सुले तथा कांग्रेस में राहुल गाँधी देश में वंश और परिवारवाद की कमान थामे हुए है। भारत में राजनैतिक वंशवाद का सबसे महत्वपूर्ण कारण व्यक्ति पूजा रहा है। नेहरू गाँधी परिवार अपनी असीम लोकप्रियता और व्यक्ति पूजा के कारण सियासत में अब तक अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल रहा है। मोतीलाल नेहरू से राहुल गाँधी तक कांग्रेस नेहरू- गाँधी परिवार के कब्जे में रही है। मोतीलाल ,जवाहर लाल, इंदिरा गाँधी ,राजीव गाँधी ,सोनिया गाँधी और अब राहुल गाँधी ने देश की सबसे पुरानी पार्टी का नेतृत्व किया है। आजादी के बाद कांग्रेस को अनेकों जंझावतों का सामना करना पड़ा। पहले समाजवादी बाहर निकले। फिर इंडिकेट सिंडिकेट का झगड़ा सामने आया। शरद पंवार और ममता के अलग होने के बाद कांग्रेस का नेतृत्व पूरी तरह सोनिया के हाथों में आगया। सोनिया के बाद अब राहुल कांग्रेस का नेतृत्व संभालेंगे। अब इसे आप परिवारवाद भी कह सकते है मगर इसका कोई विकल्प नहीं है।
परिवारवाद केवल कांग्रेस में ही नहीं है अपितु देश की लगभग सभी पार्टियां परिवारवाद की शिकार है। देश में लगभग एक दर्जन राजनीतिक दल ऐसे है जो एक ही परिवार की बपौती है। इनमें शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, डीएमके, एनसीपी, देवेगौड़ा की जनता दल धरम निरपेक्ष, शिरोमणि अकाली दल, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, लोक जनशक्ति पार्टी, हरियाणा में चैटाला परिवार की पार्टियां, झारखंड के सोरेन परिवार की पार्टी टीआरएस ऐसे दल हैं जिनमें वंशवाद की झलक साफ तौर पर देखने को मिलती है। ये पार्टिया पूरी तरह परिवार के मोह में फंसी है। भाजपा सहित अन्य पार्टियों में भी अनेक नेताओं के परिवार राजनीति में सक्रिय है। वामपंथी पार्टियां अवश्य इस रोग से दूर है।
हमारे देश की राजनीति में परिवारवाद बढ़ता ही जा रहा है। अधिकांश राजनीतिक दलों के मुखिया ने प्रमुख पदों पर अपने परिवार के सदस्यों को ही विराजमान कर दिया है। जितनी तेजी से राजनीतिक दलों में परिवारवाद पांव पसार रहा है, वह दिन दूर नहीं जब शायद कोई आम आदमी चुनाव लड़ सके। देश में बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में एक-दो को छोड़कर बाकी सभी एक विशेष परिवार तक सिमट कर रह गई हैं। कहा जाता है कि इंसान अपने जन्म से नहीं कर्म से जाना जाता है,ये हम सब जानते है। आज नेता अपने खानदान से ज्यादा जाने जाते है अपने कर्मो और योग्यता के लिए कम जाने जाते है। लोकतंत्र ने आज पूरी तरह परिवारतंत्र का जामा पहन लिया है। बड़े बड़े आदर्शों की बात करने वाले नेता परिवारमुखी होगये है। देश वंशवाद से कब मुक्त होगा यह बताने वाला कोई नहीं है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker