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केजरीवाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए खर्च कर रहे हैं जनता के करोड़ों रुपए: तिवारी

नई दिल्ली, 25 जुलाई (सक्षम भारत)।

-सरकारी स्कूल के 91 प्रतिशत फेल छात्र री-एडमीशन के लिए भटक रहे

दिल्ली सरकार की ओर से शिक्षा के नाम पर प्रतिदिन विज्ञापनों और शिक्षा सुधार के नाम पर खर्च किये जा रहे करोड़ों रूपये की बरबादी की जा रही है। दिल्ली के करदाताओं के पैसों का केजरीवाल सरकार अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। प्रचार-प्रसार के हर हथकंडे को अपनाने की बजाये बेहतर होता कि दिल्ली सरकार शिक्षा के बिगड़े मूलभूत ढांचे को ठीक करती और सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए ठोस उपाय करती। यह बात दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कही।

उन्होंने कहा कि हैप्पीनेश क्लास के नाम पर निरंतर दिये जा रहे विज्ञापनों से शिक्षा व्यवस्था में कोई सुधार होने वाला नहीं है और न ही शिक्षा से जुड़े बड़े नामों को एक दिन सरकारी स्कूलों में घुमाने से बच्चों के गिरते रिजल्ट में कोई सुधार आने वाला नहीं है। दिल्ली सरकार शिक्षा से जुड़ी बड़ी सखसियतों को अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। अगर दिल्ली सरकार की शिक्षा को बेहतर बनाने की कोई मंशा होती तो नामचीन लोगों को 54 महीने के कार्यकाल में दिल्ली सरकार ले आती और शिक्षा की गुणवत्ता के लिए ठोस काम करती, लेकिन राजनीतिक फायदा लेने के लिए आज दिल्ली सरकार हर तरह के हथकंडें अपना रही है। इससे कुछ समय के लिए दिल्ली सरकार अपने पक्ष में माहौल तो जरूर बना सकती है, लेकिन गिरती शिक्षा व्यवस्था में इससे कोई सुधार होने वाला नहीं है। आज 10वीं और 12वीं के फेल हुये 91 प्रतिशत बच्चों का कहीं भी री-एडमीशन नहीं हो रहा है। उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है लेकिन दिल्ली सरकार आंख मूंद कर बैठी है।

तिवारी ने कहा कि 500 नये स्कूलों को बनाने का वादा करके दिल्ली की सत्ता में आये केजरीवाल ने एक भी नया स्कूल नहीं बनाया,जबकि स्कूल बनाने के लिए 82 प्लाट खाली पडे हैं। स्कूलों के अंदर जो कमरे बनवाये गये उसमें करोड़ों का भ्रष्टाचार किया गया जिसकी शिकायत लोकायुक्त और एसीबी को की जा चुकी है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों में से 75 प्रतिशत बच्चों का रिजल्ट 60 प्रतिशत से कम है जिसके कारण उनका दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी भी कॉलेज में दाखिला नहीं हो पा रहा है और बड़ी संख्या में छात्र ओपन स्कूल और पत्राचार पाठयक्रम के माध्यम से पढने के लिए मजबूर हैं।

तिवारी ने कहा कि दिल्ली सरकार को सेमी परमानेंट स्ट्रेक्चर बनाने की जगह पक्के भवनों का निर्माण ही करना चाहिये था, क्योंकि शिक्षा व्यवस्था कोई अस्थायी व्यस्था नहीं है जिसे बाद में बंद किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि केजरीवाल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने और अपने करीबी लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए शिक्षा के भवन निर्माण की न तो ठोस व्यवस्था की और न ही बच्चों की पढाई की गुणवत्ता पर ध्यान दिया। आज सरकारी स्कूलों में 70 प्रतिशत प्रिंसिपल और 51 प्रतिशत अध्यापकों के पद खाली पड़े हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों की पढाई कितनी बेहतर हो सकती है, यह दिल्ली की जनता भलीभांति समझती है। लेकिन केजरीवाल ने दिल्ली की जतना को जितनी पीढ़ा दी है, विधानसभा चुनाव में दिल्ली के लोग केजरीवाल को बाहर का रास्ता दिखाकर बदला लेंगे।

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